Lakshmi Pratap Singh
अब पॉलिटिकल लिखना तो नहीं चाहता लेकिन आज लिख रहा हूं. क्योंकि जो लोग खुद को एकदम तटस्थ मानते हैं वो भी लालू यादव का नाम आने पे अलग रिएक्ट करते हैं. खूब भाजपा के विपक्षी बने लेकिन लालू यादव के नाम पे चारा चोर कहेंगे, उनसे बस इतना पूछ लो कि असली केस क्या था तो बता नहीं पाएंगे. पैसा निकाला किसने था और जेल मुख्यमंत्री कैसे चला गया तो मुंह खुला रह जाएगा. जगन्नाथ मिश्रा और उसके लड़के का नाम मीडिया में क्यों कभी "चारा चोर" का पर्याय नहीं बना ? पहली FIR इस मामलें में किसने की थी तो कुछ पता नहीं होगा. उस मामले में यूपी में जो गौशाला चल रही, इन मामलों में क्या अंतर है तो पता नहीं होगा.
समस्या ये है कि ज्यादातर लेखक वर्ग 2013-14 के बाद एक्टिव हुआ है. उनका सोर्स ही मीडिया की वो रिपोर्ट है, जो लालू का शिकार करने के लिए लिखी गयी थीं. मीडिया हमेशा से केंद्रीय पार्टियों का हिमायती रहा हैं और वो सिर भाजपा, कांग्रेस रही है. मीडिया के अधिकतम लोग इन्हीं सरकारों से जुड़े सवर्ण रहे हैं, जिन्हें लालू यादव फूटी आंख पसंद नहीं था.
यदि आपको जानकारी नहीं है तो दक्षिण का राजनैतिक इतिहास पढ़िए. 1982 में जब तेलगुदेशम आई थी तो नेशनल मीडिया NTR के खिलाफ लिखती थी. जबकि उसने कांग्रेस को पहले चुनाव में खत्म कर दिया था. अब आपको तेलगुदेशम या आंध्र की पॉलिटिक्स समझनी हो तो Aajtak, Times of india नहीं तेलुगु अखबार "इनाडु" पढ़ना पड़ेगा. वहीं जो बाद में E-TV बन गया और जिसे बाद में अंबानी ने खरीद लिया. आप मूर्खों के लिखे किताब पढ़ के ज्ञानी नहीं बनेंगे. जो मीडिया हाउस की रिपोर्ट देख रहे वो एकतरफा है. ये जानने के लिए आपको बहुत कुछ और जानना पड़ेगा. खैर वो फिर कभी.
जिस वक्त भारत में हिंदू-मुस्लिम के बीच नफरत बढ़ाने का काम शुरू हुआ था, उस वक्त लालू यादव ने आडवाणी की यात्रा रोक के उन्हें अरेस्ट किया था. आडवाणी से सुचिता के साथ पूछा था कि आपको जेल में कोई दिक्कत तो नहीं है. उसका बदला भाजपा ने लालू को जेल भेजकर लिया. और जज ने पूछा जेल में दिक्कत तो नहीं. जब लालू यादव ने कहा कि ठंड लगती है एक कंबल दे दो तो जज बोला "तबला बजाओ".. ये सजा नहीं बदला है. राहुल, प्रियंका से लेकर उद्धव, शरद पवार कोई विपक्षी जेल में इतने दिन नहीं रहा है, जितना लालू को रखा गया है. कोई जाता भी है तो बाहर आ जाता है. कारण हम सब को पता है.
लालू के मामले में भाजपा से ज्यादा नुकसान तो कांग्रेस ने किया है. लालू के बरी होने के बाद ED से केस तो कांग्रेस ने ही खुलवाए हैं तो उस काल की मीडिया के सुर भी लालू के खिलाफ ही रहेंगे. इसलिए ये तर्क मत दीजिए कि सरकार तो कांग्रेस की थी.
क्षेत्रीय नेताओं को भाजपा और कांग्रेस दोनों पसंद नहीं करते. खास तौर पर अगर उनका दबदबा हो और वो चुनाव जीतने में सक्षम हों. केंद्र सरकार हमेशा गुंडई से चुनाव प्रभावित करती है जैसा आपने महाराष्ट्र, गोवा, असम और मध्य प्रदेश में देखा. इसे रोकने के लिए ताकत चाहिए, जिसके पास ताकत हो उसे गुंडा घोषित कर दो, जंगल राज घोषित कर दो. अगर वो नेता OBC, मुस्लिम, SC वर्ग से हुआ तो आपको ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी. हर स्वर्ण लेखक, पत्रकार, मीडिया हाउस पीढ़ियों तक उसे फ्री में शूट करने को तैयार रहेगा.
डिस्क्लेमर : यह लेखक के निजी विचार हैं.
Leave a Comment