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नेपाल का संदेशः टैक्स हमारा, रईसी तुम्हारी

श्रीलंका के बाद बंग्लादेश. बंग्लादेश के बाद नेपाल. नेपाल के बाद फ्रांस. हर जगह एक ही जैसा नारा- टैक्स हमारा, रईसी तुम्हारी. एक ही जैसी समस्या- नेपोटिज्म, असमानता, बेरोजगारों की फौज. यह सब नहीं चलेगा. सब जगह एक ही जैसे सवाल. एक ही जैसा गुस्सा- नेताओं के खिलाफ, उद्योगपतियों के खिलाफ. आखिर पूरी दुनिया में इस तरह का आक्रोश क्यों भड़क रहा है?

 

आम लोगों के बीच पनप रहे आक्रोश की वजहें क्या हो सकती हैं. वजहों में यह सवाल तो नहीं हैं- नेताओं व उसके परिवार के पास इतनी अमीरी कहां से आती है. हमारा रोजगार, अच्छी शिक्षा, अच्छी सड़क, बेहतर हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर, बिजली-पानी कौन खत्म कर रहा है? ठेकेदार कल्याण योजना से कौन लाभ कमा रहा है? अमीरी-गरीबी के बीच खाई चौड़ी क्यों होती जा रही है? 

 

भले ही श्रीलंका, बंग्लादेश, नेपाल और बुधवार को फ्रांस में जनता सड़क पर उतरी है. सभी अलग-अलग देश हैं. रहन-सहन, खान-पान, सोच-समझ अलग-अलग हैं, लेकिन हर जगह आम लोगों, खासकर युवाओं में गुस्से की वजहें एक जैसी हैं.

 

आर्थिक असमानता, रोजगार का ना होना, सत्ता में शामिल लोगों का अचानक अमीर बनना, मुनाफावसूली के कारण तेजी से बढ़ती महंगाई. इन सबसे आम लोगों में आक्रोश है. 

 

अगर समय रहते दुनिया के नेताओं, अफसरों, उद्योगपतियों, बिल्डर, कारोबारियों ने खुद के लिए कायदे-कानून लागू नहीं किये. वैध-अवैध कमाई के लिए लक्ष्मण रेखा नहीं खींचा.

 

मुनाफे को तय नहीं किया, नेपोटिज्म को खत्म नहीं किया, तो आने वाले कुछ सालों में दुनिया के अन्य देशों में भी इस तरह की चिंगारी भड़क सकती हैं. तब नेपाल जैसे ही हालात होंगे. नेताओं को देश छोड़ना पड़ेगा. उद्योगपतियों के घर लूट लिये जाएंगे. और इन सबके लिए जिम्मेदार वे खुद होंगे. 

 

ऐसा नहीं है कि जहां की जनता ने बगावत नहीं की है, वहां उन देशों के आम लोग आक्रोश में या गुस्से में नहीं हैं. लोग गुस्से में हैं- बस उन्हें अभी तक वह ट्रिगर नहीं मिला है, जैसा कि श्रीलंका, बंग्लादेश, नेपाल या फ्रांस के लोगों को मिल गया और वह सड़क पर उतर आये.

 

एक ही दुनिया में, एक ही देश में, एक ही शहर में असमानता की खाई, जितनी गहरी होती जायेगी, आक्रोश उतना ही बढ़ता जायेगा. इसलिए अब यह जरूरी हो गया है कि हर तबके के लोग अपने लिए लक्ष्मण रेख खींच लें. अन्यथा ना रहेगा ताज-ना साम्राज्य.

 

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