Rajagopal PV
मैं उन अनुभवों को रखना चाहता हूं, जिन्होंने अहिंसा और शांति के प्रति मेरे विचारों को ज्यादा ठोस बनाया. मैंने अपनी शांति यात्रा की शुरुआत एक भयानक संघर्ष वाले क्षेत्र से की. दिल्ली से लगभग तीन सौ किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में चंबल घाटी है, जहां सर्वोदय के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के साथ काम करने के दरम्यान मेरा सामना डकैतों की हिंसा से हुआ. उन्हें वहां ‘बागी’ कहा जाता है. मैं कुछ समय तक उनके बीच रहा और उन्हें हथियार छोड़ने के लिए राजी किया. उन्होंने अहिंसा के विचारों से प्रभावित होकर आत्मसमर्पण किया और जेल की सजा काटकर समाज की मुख्यधारा में वापस आ गए. हमने पिछले साल उनके आत्मसमर्पण की 50वीं वर्षगांठ मनायी थी. हमने देखा कि कैसे 578 डकैतों में से अधिकांश के लिए हिंसा के मार्ग को छोड़कर शांति के मार्ग को अपनाने का यह परिवर्तन अहिंसा के प्रति लगाव से ही हुआ.
इस अनुभव के बाद मैं भारत में अन्य स्थानों पर चला गया, जहां मैं कुछ मूल सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए काम कर सकता था. उन सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए बहुत कम लोगों ने हिंसा का मार्ग अपनाया था, फिर भी मैं समझने लगा कि ‘प्रत्यक्ष हिंसा’ या हथियारों का उपयोग ‘ढांचागत हिंसा’ या अन्याय का परिणाम था और इस अन्याय को दूर करने से ‘प्रत्यक्ष हिंसा’ कम हो सकती है. दूसरे शब्दों में कहूं तो मैंने शारीरिक हिंसा को खत्म करने से आगे बढ़कर ‘अप्रत्यक्ष’ या ढांचागत या व्यवस्थागत हिंसा को खत्म करने का काम करना शुरू किया. मेरा मानना है कि गरीबी, भेदभाव और बहिष्कार के कारणों का समाधान करने से ही शांति आ सकती है.
इस दरम्यान मुझे यह समझ भी हुई कि अहिंसा का उपयोग करते हुए न्याय पर आधारित एक शांतिपूर्ण समाज का निर्माण करना चरणबद्ध प्रक्रिया है. अहिंसा मेरे लिए प्रेरक शक्ति रही है, जिसने मुझे लगातार इस पर काम करने के लिए प्रेरित किया है. इस प्रक्रिया में मैं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और उनके दिए ‘ताबीज’ से प्रभावित हुआ. उन्होंने कहा है- “सबसे गरीब और सबसे कमजोर व्यक्ति का चेहरा याद करें, जिसे आपने अपने जीवन में देखा हो और अपने आपसे पूछें कि क्या आप जो कदम उठाने का विचार कर रहे हैं, वह उसके लिए उपयोगी होगा.”
मैं अपनी इस यात्रा में भारत और कुछ अन्य देशों के उन हजारों लोगों के योगदान को स्वीकार करता हूं, जो इतने वर्षों से मेरे साथ खड़े हैं. इनमें कई लोग शामिल हैं, जैसे कि हाशिये पर रहने वाले समुदाय के वे लोग, जिन्होंने कई कठिन संघर्षों में भाग लिया. बड़ी संख्या में महत्वपूर्ण आयोजनों के लिए कष्ट उठाने वाले कार्यकर्ताओं की टीम, मध्यमवर्गीय मित्रों की टोली, राजनीतिक कार्यकर्ता और अधिकारी, जिन्होंने नीतिगत बदलाव में योगदान देकर हमारे सपनों को आगे बढ़ाने में मदद की. हम वर्तमान में क्या कर रहे हैं? हमने शांति निर्माण के लिए चार स्तरीय दृष्टिकोण अपनाया है, जिसमें- 1. अहिंसक शासन, 2. अहिंसक सामाजिक कार्रवाई, 3. अहिंसक अर्थव्यवस्था, 4. अहिंसक शिक्षा-शामिल हैं.
विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे कई क्षेत्रों में प्रगति करने के साथ हमें यह मानना चाहिए कि सत्ता और पदों पर बैठे लोगों द्वारा अधिक सभ्य व्यवहार किया जाए. दुर्भाग्य से जब हम कई देशों में नेतृत्व को देखते हैं तो ऐसा नहीं लगता. इस संदर्भ में हम नीति निर्माताओं को वंचित समुदायों के प्रति अधिक जवाबदेह बनाने के लिए काम कर रहे हैं. कई जगहों पर हमने एक तरह की जन-आधारित नीति की हिमायत की है. हमने विरोध करने वाली आवाजों को शांत करने के लिए पुलिस बल को नियुक्त करने के बजाय समस्याओं को हल करने के तरीके के रूप में बातचीत को प्रोत्साहित किया है. हमने जल, जंगल और जमीन के मुद्दों के संबंध में सामाजिक रूप से समावेशी नीतियां बनाने के लिए कई नीति निर्माताओं के साथ काम किया है. हम नीति परिवर्तन पर ही नहीं रुके. हमने राजस्थान सरकार के साथ मिलकर ‘शांति विभाग’ स्थापित किया है और भारत तथा विदेशों में शांति मंत्रालयों की स्थापना की वकालत करना जारी रखा है. कोई भी शांतिपूर्ण और अहिंसक शासन एक बेहतर व्यवस्था से आता है जो लोगों और राज्य के बीच सहयोग को बढ़ाता है. इस तरह की व्यवस्था में लोग बेहतर स्थिति में होते हैं, क्योंकि उन्हें अपनी समस्याओं को हल करने के लिए अधिक स्वायत्तता प्राप्त होती है.
मौजूदा समय में लाखों लोगों के जीवन और आजीविका पर प्रभाव डालने वाले कई संकट हैं, जिन्हें ‘ढांचागत’ या ‘व्यवस्थागत हिंसा’कहते हैं. लोग संगठित होकर न्याय की मांग कर रहे हैं. हम इस बात से चिंतित हैं कि आज वैसे विरोध प्रदर्शन अधिक हो रहे हैं, जो हिंसक हैं और लोग अपने लक्ष्य को प्राप्त तक नहीं कर पा रहे हैं. इससे लोगों में असंतोष बढ़ रहा है. जो लोग सामाजिक कार्रवाइयों का नेतृत्व कर रहे हैं, उन्हें अहिंसक तरीकों की गहरी समझ होनी चाहिए. इस समझ के अभाव में लोगों को हिंसा के लिए उकसाया जा सकता है. हम जमीनी स्तर पर वंचित समुदायों को संगठित करने के लिए बड़ी संख्या में युवाओं को प्रशिक्षित कर रहे हैं. हमारे काम की अधिकांश सफलता इस पद्धति का प्रत्यक्ष परिणाम है. उदाहरण के लिए, 2007 में हमने एक बड़ी अहिंसक कार्रवाई की, जब 25,000 लोगों ने चंबल से नयी दिल्ली तक एक महीने में 350 किलोमीटर की पैदल यात्रा की. यह लोगों के लिए भूमि पर अधिकार, आजीविका के संसाधनों और आदिवासी आबादी के लिए वनभूमि पर अधिकार हासिल करने के लिए था.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.