Girish Malviya
मोदी काल में दुनिया मे भारत का डंका नहीं बज रहा है, बल्कि डोंडी पिट रही है. मोदी सरकार ने अपने पब्लिक सेक्टर के बैंकों को कह दिया है कि वे अपने विदेशी करेंसी अकाउंट्स से पैसे निकाल लें. क्योंकि इन बैंकों का कैश सीज किया जा सकता है. क्योंकि अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने भारत सरकार और ब्रिटिश फर्म केयर्न के मध्य हुए विवाद में केयर्न के पक्ष में फैसला सुनाया था. और भारत सरकार को केयर्न को 1.4 अरब डॉलर का भुगतान करने को कहा था. यह फैसला दिसंबर 2020 में आया था.
अब केयर्न एनर्जी इन बैंकों का कैश सीज करने की कोशिश कर सकती है. रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, यह बात दो सरकारी अधिकारियों और एक बैंकर ने रॉयटर्स से कही है.
केयर्न ने इस फैसले के बाद भारत के खिलाफ अमेरिका, ब्रिटेन, नीदरलैंड, कनाडा, फ्रांस, सिंगापुर, क्यूबेक की अदालतों में पहले ही अपील दायर कर दी थी. इसलिए उसको भारत सरकार की विदेशी संपत्तियों को सीज करना और मध्यस्थता न्यायाधिकरण द्वारा तय रकम की वसूलना बहुत आसान है.
वित्त मंत्रालय ने इस तरह की नकदी की रक्षा के लिए बैंको को अतिरिक्त सतर्कता बरतने के लिए कहा है. ताकि केयर्न द्वारा किए गए ऐसे किसी भी प्रयास की तुरंत शिकायत की जा सके. भारत सरकार परिसंपत्तियों को जब्त करने के खिलाफ कानूनी विकल्पों का सहारा ले सकेगी. क्योंकि बैंकों में जमा धन भारत सरकार का नहीं, बल्कि जनता का है.
मोदी सरकार पिछले साल अंतराष्ट्रीय पंचनिर्णय अदालतों में एक ओर चर्चित मामले में मुकदमा हार गयी थी. यह वोडाफोन कंपनी से जुड़ा मामला था. जिसमें सरकार ने टैक्स के तौर पर 20 हजार करोड़ रुपये की मांग की थी. अंतरराष्ट्रीय कोर्ट ने इस मामले में भी भारत सरकार के खिलाफ फैसला सुनाते हुए वोडाफोन को बरी कर दिया था. लेकिन यहां सरकार केयर्न से यह रकम वसूल कर चुकी है, जब केयर्न से जुड़े शेयरों को आयकर विभाग ने अपने कब्जे में ले लिया था.
कुछ महीने पहले जब बीच का रास्ता निकल सकता था, तब वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने केयर्न के CEO से मिलने से इनकार कर दिया था.
तो अब आप मानेंगे कि डंका नहीं बज रहा बल्कि डोंडी पिट रही है ?
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.