- GST के तहत TAX चोरी का अपराध PMLA के तहत अपराध नहीं है.
- GST परिषद का दृष्टिकोण करदाताओं पर आपराधिक दायित्व थोपने में सतर्क रहने का रहा है.
इससे पहले तक Director General of Goods and services Tax intelligence (DGGI) द्वारा फर्जी GST बिल बनाने वालों के खिलाफ थाने में IPC (अब BNS) के तहत प्राथमिकी दर्ज करने के लिए अनुमति की जरूरत नहीं होती थी. थाने में दर्ज प्राथमिकी के आधार पर ही ED मामले में ECIR दर्ज कर जांच करती थी. Additional Director (Int) द्वारा जारी आदेश के आलोक में अब फर्जी GST बिल बना कर सरकार को आर्थिक नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ IPC (अब BNS) के बदले सिर्फ GST अधिनियम की धाराओं के तहत ही कार्रवाई की जायेगी. GST अधिनियम की कोई भी धारा PMLA के Schedule Offence में शामिल नहीं है. इससे GST घोटाले से जुड़े किसी भी मामले की जांच अब ED अपने स्तर से नहीं कर सकेगी.

Additional Director के हस्ताक्षर से जारी इस आदेश से GST बिल बना कर सरकार को आर्थिक नुकसान पहुंचाने वालों को बड़ी राहत मिलेगी. क्योंकि फर्जी GST बिल बनाने वालों के खिलाफ GST अधिनियम की धारा 122(1A) के तहत कार्रवाई का प्रावधान है. इसमें फर्जी जीएसटी बिल बनाने वालों के खिलाफ जेल की सजा के बदले सिर्फ आर्थिक दंड लगाने का नियम है. फर्जी GST बिल बना कर सरकार को आर्थिक नुकसान पहुंचाने वालों को जेल की सजा दिलाने के लिए GST की धारा 122(1A) की कार्रवाई पूरी करने के बाद धारा 132 के तहत Prosecution launch करना पड़ता है. GST की धारा 132 के तहत पांच करोड़ रुपये से अधिक की गड़बड़ी में छह महीने से लेकर पांच साल तक के जेल का प्रावधान है. 2-5 करोड़ के मामले में छह महीना से तीन साल और 1-2 करोड़ तक के मामले में अधिकतम एक साल तक की सजा का प्रवाधन है.
दूसरी तरफ फर्जी GST बिल बना कर सरकार को आर्थिक नुकसान पहुंचाने के मामले में IPS (BNS) की धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज होने पर ED खुद ही ECIR दर्ज करने में सक्षम थी. ED की कार्रवाई में फर्जी GST बिल बना कर सरकार को आर्थिक नुकसान पहुंचाने वालों को PMLA की धाराओं के तहत पांच से सात साल तक जेल की सजा का प्रावधान है. इसके अलावा जालसाजी के सहारे हुई कमाई से अर्जित चल-अचल संपत्ति को स्थायी रूप से जब्त करने का प्रावधान है.
Additional Director (Int) के हस्ताक्षर से जारी ताजा आदेश के आलोक में अब GST इंटेलिजेंस के अधिकारियों को फर्जी GST बिल बना कर सरकार को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ थाना में प्राथमिकी दर्ज करने के लिए DGGI के Pr.Director से ना केवल अनुमति लेनी पड़ेगी, बल्कि उसके लिए उचित कारण भी बताना पड़ेगा. अनुमति लेने के लिए धोखाधड़ी करने वालों की भूमिका और उससे संबंधित दस्तावेजी सबूत भी पेश करने होंगे.
फर्जी GST बिल से हर साल हजारों करोड़ का नुकसान
संसद में फर्जी GST बिल से हुए आर्थिक नुक़सान के मुद्दे सवाल पूछा गया था. इस सवाल के जवाब में वित्त मंत्रालय की ओर से संसद मे यह जवाब दिया गया कि वित्तीय वर्ष 2024-25 में कुल 2.23 लाख करोड़ रुपये टैक्स की चोरी हुई है. टैक्स चोरी के 30,056 मामले पकड़ में आये. इसमें से करीब आधे मामले फर्जी GST बिल जारी करने से संबंधित है. फर्जी GST बिल के सहारे 2024-25 में 58,772 करोड़ रुपये टैक्स की चोरी की गयी है. वित्तीय वर्ष 2024-25 में अप्रैल से अक्तूबर तक की अवधि में 17000 प्रतिष्ठानों के सहारे फर्जी GST बिल बना कर 35,132 करोड़ रुपये की चोरी की गयी थी. वित्तीय वर्ष 2023-24 में विशेष अभियान चलाया गया था. इसमें 30 हजार प्रतिष्ठानों के सहारे फर्जी GST बिल जारी कर 44,015 करोड़ रुपये की टैक्स चोरी का मामला पकड़ में आया था. वित्तीय वर्ष 2018-19 से 2022-23 तक की अवधि में फर्जी GST बिल के सहारे ITC का 1,15,457 करोड़ रुपये का गलत लाभ लेने का मामला पकड़ में आया था.
क्या कहा नये आदेश में
- Additional Director (Int) के हस्ताक्षर से जारी आदेश में कहा गया है कि DGGI द्वारा दर्ज मामले की सूचना Central Economic Intelligence Bureau (CEIB) और Regional Economic Intelligence Council (REIC) माध्यम से साझा करने की व्यवस्था है. इसके आधार पर दूसरी जांच एजेंसिया अपने-अपने कानूनों के तहत कार्रवाई कर सकती हैं.
- ऐसा पाया गया है कि जोनल इकाईयों द्वारा GST कानून की जांच के दौरान थाने में IPC (अब BNS) की धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज करायी है. IPC/BNS की धाराएं PMLA के तहत अपराध होने की वजह से ED ने ECIR दर्ज किये हैं.
- DGGI और CBIC का यह स्थायी मत रहा है कि GST एक विशेष अधिनियम है. इसमें दंड का प्रावधान है. GST के तहत TAX चोरी का अपराध PMLA के तहत अपराध नहीं है. GST में TAX चोरी के अपराध को PMLA में शामिल करने से Ease of doing business पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
- जब विशेष और सामान्य अधिनियम में अपराध की समानता होती है, तो विशेष अधिनियम को वरीयता दी जाती है.
- DGGI के अधिकारियों द्वारा पुलिस में शिकायत दर्ज कराने से कार्यभार हमारी क्षमता से अधिक बढ़ जाएगा.
- GST परिषद का दृष्टिकोण करदाताओं पर आपराधिक दायित्व थोपने में सतर्क रहने का रहा है. अतः उपरोक्त दृष्टिकोण से भिन्न होने के लिए कोई औचित्य नहीं है.
- यदि किसी नकली चालान मामले को ED को संदर्भित करना है या स्थानीय पुलिस में शिकायत दर्ज करनी है, तो इसके लिए अनिवार्य रूप से प्रधान महानिदेशक, DGGI की पूर्व अनुमति आवश्यक होगी. अनुमति के लिए तथ्य, आरोपियों की भूमिका और दस्तावेजी प्रमाण आवश्यक होगा.
- नकली चालान के मामलों को ED को संदर्भित करते समय अथवा स्थानीय पुलिस में FIR दर्ज करते समय इन दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करें.
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