Lakshmi Pratap Singh
मोदी सरकार ने कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया (कॉनकोर ) को प्राइवेटाइज करने का फैसला लिया है. यह कंपनी भारतीय रेल के पास है और रेलवे ट्रैक्स पर जो मालगाडियां चलती हैं, वो सरकार और प्राइवेट सेक्टर की साझेदारी वाली (अर्ध सरकारी) फर्म कॉनकोर (कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया) ऑपरेट करती है. फ़िलहाल केंद्र सरकार का इसमें 54.8% हिस्सा है. इसलिए इसका कंट्रोल सरकार के पास है. भारत से जो भी माल एक्सपोर्ट यानी निर्यात होता है, उसका लगभग 90% हिस्सा इसी कॉनकोर के द्वारा कंटेनर्स में भरकर पोर्ट पर भेजा जाता है. जहां से पानी के जहाजों पर लोड होकर विदेशो में जाता है.
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मोदी सरकार में सबसे पहले अडानी ग्रुप को समुद्री पोर्ट डेवलप करने को दिए गए. उसके बाद सरकार ने अपने ही कानून तोड़कर अडानी ग्रुप को 6 एयरपोर्ट्स भी मैनेज करने के लिए दे दिए. वर्ष 2019 की एयरपोर्ट नीलामी समय में नीति आयोग और वित्त मंत्रालय ने अडानी को एयरपोर्ट दिए जाने का विरोध किया था. कानून के मुताबिक प्राइवेटाइजेशन में एक कंपनी को दो से अधिक एयरपोर्ट नहीं दिए जा सकते. लेकिन मोदी सरकार ने कानून तोड़कर अहमदाबाद, लखनऊ, जयपुर, मंगलुरु, गुवाहाटी, थिरुवनंतपुरम और गुवाहाटी एयरपोर्ट्स को 50 साल के लिए अडानी को दे दिया.
आज अडानी पोर्ट्स भारत की सबसे बड़ी पोर्ट कंपनी है. पोर्ट्स जिसके हाथ में हैं, उसके हाथ में भारत के उद्योगों की एक बहुत बड़ी कड़ी है. इस बीच खबर यह भी है की, आज भारत में जितना भी कोयला आता है वो अडानी ग्रुप के पोर्ट्स से आता है. अडानी पोर्ट्स ने उसमें 0.5% की पिलफ्रेज (यानी लीगल चोरी) दिखा रखी है. लाखो टन कोयले में से अडानी के पोर्ट पर हज़ारो टन कोयला फ्री में उतार लिया जाता है. जो उसी मार्केट में बेचने के लिए भेज दिया जाता है, जिसके लिए मंगाया गया था. अंतर बस इतना है की अडानी ने इस कोयले का कोई मूल्य नहीं दिया है. तो मार्केट के भाव से उसका कोयला सस्ता बिकता है. कोयला मंगवाने वाले असली व्यापारिक कंपनी इसका घाटा उठा रहे हैं. कुछ समय बाद वो कोयला मंगाना बंद कर देंगे. उसके बाद सिर्फ अडानी ग्रुप कोयला मंगाएगा और मनमाने रेट पर बेचेगा.
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ये मार्केट को डिसरप्ट करने की सोची समझी साजिश है. ये धंधा नहीं है ये दादागिरी है. जिसका लाइसेंस उसे सरकार से मिला है. कोयला कई उद्योगों जैसे बिजली से लेकर रेलवे, स्टील, आयरन ओर, पाइप, तार, कंस्ट्रक्शन तक में उपयोग होता है. इसका कंट्रोल एक कंपनी के हाथ में जाने के बाद आपके जीवन की बहुत सारी रोज-मर्रा की चीजों के दाम बढ़ेंगे और आपको पता भी नहीं चलेगा कि ये सब एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा हैं. जिसमें सरकार और अडानी की मिलीभगत है.
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