New Delhi : मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन के एक फैसले से गैर भाजपाई सांसद नाराज हैं. नाराज इतने कि विपक्ष के 120 सांसदों ने कल मंगलवार को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को जस्टिस स्वामीनाथन को उनके पद से हटाने के लिए कार्यवाही शुरू करने का प्रस्ताव दिया.
इन सासंदों का आरोप है कि न्यायाधीश का आचरण निष्पक्ष, पारदर्शी नहीं है. उनका आचरण न्यायपालिका के धर्मनिरपेक्ष चरित्र पर प्रश्नचिह्न खड़े करता है.मामला यह है कि इसी माह 1 दिसंबर को जस्टिस स्वामीनाथन ने मदुरै के तिरुपरंकुंड्रम पहाड़ी पर स्थित एक स्तंभ पर कार्तिगई दीपम जलाने की परंपरा को बहाल करने का निर्देश दिया.
दरअसल यह स्थल हिंदू मंदिर प्रशासन और पास ही स्थित एक दरगाह के बीच विवाद का विषय बना हुआ है. जस्टिस के कार्तिगई दीपम जलाने के आदेश पर तमिलनाडु के राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गयी. सत्तारूढ़ डीएमके ने आरोप लगाया है कि विधानसभा चुनाव से कुछ माह पूर्व राज्य में सांप्रदायिक विवाद खड़ा करने की कोशिश हो रही है.
विपक्षी सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष को दिये अपने अपने प्रस्ताव में लिखा है कि जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ कार्रवाई तीन आधारों पर की जानी चाहिए.
1. न्यायाधीश का आचरण निष्पक्षता और पारदर्शिता के खिलाफ है.
2. एक विशेष वरिष्ठ वकील एम श्रीचरण रंगनाथन के पक्ष में अनुचित पक्षपात
3. एक विशिष्ट समुदाय और विशेष राजनीतिक विचारधारा के प्रति झुकाव और भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के विपरीत निर्णय.
जान लें कि मुख्यत: यह प्रस्ताव डीएमके के नेतृत्व में ओम बिड़ला को सौंपा गया. प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने वालों में प्रमुख रूप से कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा, गौरव गोगोई, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, डिंपल यादव, धर्मेंद्र यादव, शरद पवार की बेटी और एनसीपी (एसपी) सांसद सुप्रिया सुले, असदुद्दीन ओवैसी, डीएमके के टी आर बालू, ए राजा, कनिमोझी शामिल हैं. हालांकि टीएमसी और आम आदमी पार्टी के सांसद हस्ताक्षर करने वालों में शामिल नहीं हैं.
जस्टिस स्वामीनाथन ने एक दिसंबर के दिये आदेश में तिरुपरंकुंड्रम पहाड़ी पर दीपम जलाने की परंपरा पुनर्जीवित करने का निर्देश हिंदू मंदिर प्रशासन को दिया था. लेकिन जब प्रशासन द्वारा आदेश को दरकिनार किया गया, तो जस्टिस ने अवमानना आदेश करते हुए 11 लोगों को CISF की सुरक्षा में पहाड़ी पर चढ़कर दीप जलाने का निर्देश दिया था.
जस्टिस स्वामीनाथन के बारे में कहा जाता है कि वे अपने भाषणों और लेखों में अक्सर हिंदू दर्शन, प्राचीन तमिल परंपरा और धार्मिक निरंतरता का उल्लेख करते हैं. उनका मानना है कि कोई भी राज्य तटस्थता, सार्वजनिक व्यवस्था या प्रशासनिक कारणों को आधार बना कर हिंदू धार्मिक प्रथाओं को कमजोर नहीं कर सकता.
Lagatar Media की यह खबर आपको कैसी लगी. नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में अपनी राय साझा करें.

Leave a Comment