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ट्रंप सरकार के खिलाफ 70 लाख से अधिक लोग सड़क पर उतरे, नो किंग्स का नारा दिया

Lagatar Desk

अमेरिका की ट्रंप सरकार के खिलाफ अब तक का सबसे बड़ा आंदोलन हुआ है. अमेरिकी के 50 राज्यों के करीब 2500 जगहों पर यह आंदोलन हुआ. आंदोलन का नाम था "नो किंग्स". यानी लोकतंत्र में राजा की तरह फैसले ले रहे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का विरोध. इस आंदोलन ने अमेरिकी सरकार को हिला करके रख दिया है.

 

आंदोलन कर रहे लोग राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को लोकतंत्र पर खतरे के रुप में देख रहे हैं. इससे पहले जून 2025 में भी अमेरिकी राष्ट्रपति के खिलाफ लाखों लोग सड़क पर उतरे थे. लोगों का आरोप है कि ट्रंप राजा की तरह फैसले ले रहे हैं. लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर रहे हैं. लोगों की बोलने की आजादी को खत्म कर रहे हैं. प्रेस की आवाज को दबा रहे हैं और अदालतों पर दबाव बना रहे हैं. 

 

लोग ट्रंप के जिन फैसलों का विरोध कर रहे हैं, उनमें इमिग्रेशन से संबंधित नए नियमों और इसे लागू कराने के नाम पर की जा रही कार्रवाई, पोर्टलैंड, सिकागों जैसे शहरों में सेना व नेशनल गार्ड की तैनाती, स्वास्थ्य, शिक्षा व पर्यावरण से संबंधित सरकारी योजनाओं में बजट की कटौती, टैरिफ नीतियां और सरकारी शटडाउन आदि शामिल हैं.

 

अमेरिका में 18 अक्टूबर को हुए इस "नो किंग्स" आंदोलन को विशेषज्ञ श्रीलंका, बंग्लादेश व नेपाल के आंदोलनों से जोड़ करके भी देख रहे हैं. जिस तरह दुनिया भर में सरकार की तानाशाही बढ़ी है, आर्थिक संकट बढ़ रहा है, अमीर और अमीर बनते जा रहे हैं और गरीब और गरीब, सरकार में भ्रष्टाचार के खिलाफ कई मुल्कों में बड़ा आंदोलन शुरु हो रहा है, अचानक से लाखों लोग सड़क पर उतर जा रहे हैं, अमेरिका में भी वही सब हो रहा है. अन्य देशों की तरह ही अमेरिका में हुए आंदोलन को भी युवा ही लीड कर रहे थे. जिन्हें जेन-जी कहा जाता है. हालांकि नो किंग्स आंदोलन एक शांतिपूर्ण आंदोलन था. 

 

अमेरिका से आ रही रिपोर्ट्स के मुताबिक "नो किंग्स" आंदोलन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दूसरे कार्यकाल में जनता के असंतोष को सामने लाता है. यह एक दिवसीय आंदोलन अब तक का सबसे बड़ा एक दिवसीय आंदोलन था. इस आंदोलन की खासियत थी कि इसमें युवा और अलग-अलग समूहों के लोग शामिल हुआ. आंदोलन अमेरिकी के तकरीबन हर बड़े शहर न्यूयार्क वाशिंगटन और अटलांटा में हुए. ट्रंप सरकार ने इस आंदोलन को नफरत वाली रैलियां कहा है. लेकिन आंदोलन के आयोजकों ने दावा किया है कि आंदोलन शांतिपूर्ण रहा और यह सार्वजनिक सेवाओं में कटौती, महंगाई और राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ था.

 

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