NewDelhi : AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे कानून का उल्लंघन है. कहा कि काशी की ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वेक्षण करने का ऑर्डर 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का खुला उल्लंघन है. उन्होंने अयोध्या राम मंदिर का जिक्र करते हुए कहा कि उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह अधिनियम भारत की धर्मनिरपेक्ष विशेषताओं की रक्षा करता है, जो संविधान की बुनियादी विशेषताओं में से एक है.
This order to survey Kashi’s Gyanvapi Masjid* is open violation of 1991 Places of Worship Act, which prohibits conversion of religious places. SC in Ayodhya judgement had said the Act protects “secular features of Indian polity which is 1 of basic features of Constitution”1/2 https://t.co/ed5yyS9ieL
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) May 7, 2022
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सुप्रीम कोर्ट की खुलेआम अवहेलना की जा रही है
ओवैसी ने सर्वे के फैसले को एंटी मुस्लिम हिंसा का रास्ता खोलने वाला करार दिया. AIMIM चीफ ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कोर्ट द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेश की खुलेआम अवहेलना की जा रही है. इस आदेश से कोर्ट 1980-1990 के दशक की रथ यात्रा के हुए खून-खराबे और मुस्लिम विरोधी हिंसा का रास्ता खोल रहा है.
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प्रधानमंत्री मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी चर्चा के केंद्र में
बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी चर्चा के केंद्र में है. काशी विश्वनाथ और ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी समेत कई विग्रहों का सर्वे किया जा रहा है. वाराणसी के सीनियर जज डिविजन के आदेश पर सर्वे हो रहा है. कल शुक्रवार को जब सर्वे करने के लिए टीम यहां पहुंची तो दोनों पक्षों की ओर से जमकर नारेबाजी की गयी. जान लें कि काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर में आज शनिवार को भी वीडियोग्राफी होनी है.
ज्ञानवापी मस्जिद का केस 1991 से चल रहा है
काशी विश्वनाथ मंदिर और उसी परिक्षेत्र में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद का केस वर्ष 1991 से वाराणसी के स्थानीय अदालत में चल रहा है. हाईकोर्ट के आदेश के बाद मामले की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रही है. इस मामले में नया मोड़ मां श्रृंगार गौरी का केस है, जो महज साढ़े 7 माह पुराना है. खबरों के अनुसार 18 अगस्त 2021 को वाराणसी की पांच महिलाओं ने बतौर वादी वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना दर्शन-पूजन की मांग सहित अन्य मांगों के साथ एक वाद दर्ज कराया था.
इसे कोर्ट ने स्वीकार करते हुए मौके की स्थिति को जानने के लिए वकीलों का एक कमीशन गठित करने, अधिवक्ता कमिश्नर नियुक्त करने और तीन दिन के अंदर पैरवी का आदेश दिया था. साथ ही विपक्षियों को नोटिस जारी करने के साथ ही सुनवाई की अगली तिथि भी तय कर दी थी, लेकिन दो-दो बार कोर्ट कमिश्नर के बैकफुट पर चले जाने के चलते विवादित स्थल का मौका मुआयना नहीं हो सका था.
10 मई से पहले मांगी गयी है रिपोर्ट
वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक के जज रवि कुमार दिवाकर ने अपने 18 अगस्त के आदेश को दोहराते हुए पिछले माह आठ अप्रैल को कोर्ट कमिश्नर अजय कुमार मिश्रा को नियुक्त कर वीडियोग्राफी की कार्रवाई करने की फिर से अनुमति दे दी थी. इसके बाद प्रतिवादियों में से वाराणसी जिला प्रशासन और कमिश्नरेट पुलिस ने आपत्ति दर्ज कराते हुए कार्रवाई को रोकने के लिए सुरक्षा व्यवस्था और मस्जिद में मुस्लिमों और सुरक्षाकर्मियों के ही जाने की दलील दी. लेकिन कोर्ट ने सुनवाई के बाद दलील को खारिज करते हुए अपने पुराने आदेश के जारी रखा. कोर्ट ने ईद के बाद कमीशन और वीडियोग्राफी की कार्रवाई कर 10 मई के पहले तक रिपोर्ट मांगी है और सुनवाई की तारीख भी 10 मई तय कर दी है.
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