NewDelhi/London : अंग्रेजों का भारत पर लगभग 200 साल तक राज रहा. ब्रिटेन ने 1765 से 1900 के बीच एक शताब्दी के उपनिवेशवाद के समय भारत से 64.82 खरब अमेरिकी डॉलर की लूट की. इस राशि में से लगभग 33.8 खरब डॉलर ब्रिटेन के सबसे अमीर लोगों की जेब में गये. आकलन है कि यह राशि इतनी थी, जिससे कि ब्रिटेन की राजधानी लंदन 50 ब्रिटिश पाउंड के नोटों से चार से अधिक बार तक ढंकी जा सकती है. आज सोमवार को जारी वैश्विक असमानता पर काम करने वाले ब्रिटेन के अधिकार समूह ऑक्सफैम की रिपोर्ट यह कहती है. बता दें कि हर साल विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) की वार्षिक बैठक से एक दिन पहले रिपोर्ट जारी की जाती है.
204 new billionaires were minted in 2024, and billionaire wealth surged by $2 trillion. When the math of inequality is this absurd, change isn’t just possible – it’s inevitable. Learn what that could look like in our latest report #TakersNotMakers #FightInequality… pic.twitter.com/fvpHfcoPda
— Oxfam International (@Oxfam) January 20, 2025
फायदा ग्लोबल नॉर्थ (अमेरिका, यूरोप के विकसित देश) के सबसे अमीर लोग उठा रहे हैं
‘Takers, Not Makers’ नामक इस रिपोर्ट में कई अध्ययनों और रिसर्च पेपर का हवाला देते हुए दावा किया गया है कि वर्तमान समय में बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां केवल उपनिवेशवाद की ही देन हैं. रिपोर्ट के अनुसार ऐतिहासिक उपनिवेशवाद के समय में दुनिया में जो असमानता और लूट का चलन था, आधुनिक जीवन को वही आकार दे रहा हैं. इससे एक ऐसी दुनिया बन गयी जो नस्लवाद पर आधारित है. एक ऐसी दुनिया बन गया है, जहां ग्लोबल साउथ (एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के कम विकसित या विकासशील देश) से व्यवस्थित रूप से धन का दोहन जारी है और इसका फायदा ग्लोबल नॉर्थ (अमेरिका, यूरोप के विकसित देश) के सबसे अमीर लोग उठा रहे हैं.
वर्तमान समय में विशालकाय मल्टीनेशनल कंपनियां उपनिवेशवाद की देन हैं
स्टडीज और रिसर्च पेपर के आधार पर ऑक्सफैम ने भारत क संदर्भ में गणना की है कि 1765 और 1900 के बीच ब्रिटेन के सबसे धनी 10 प्रतिशत लोगों ने अकेले भारत से आज के हिसाब से 33.8 खरब अमेरिकी डॉलर की संपत्ति निकाली. खुलासा किया कि ब्रिटेन में आज सबसे अमीर लोगों की एक बड़ी संख्या अपने परिवार की अमीरी का श्रेय गुलामी और उपनिवेशवाद को देती है.
ऑक्सफैम की रिपोर्ट कहती है कि वर्तमान समय में विशालकाय मल्टीनेशनल कंपनियां उस उपनिवेशवाद की देन हैं जिनका नेतृत्व कभी ईस्ट इंडिया कंपनी जैसी कंपनियों ने किया है. कंपनियां खुद में एक कानून बन गईं और इन्होंने उपनिवेशवाद के दौरान कई अपराधों में लिप्त रहे.
1700 में भारत अकेला दुनिया की 22.6 फीसद दौलत पैदा करता था
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय मनमोहन सिंह ने इसका जिक्र करते हुए एक बार कहा था, ‘इसमें कोई संदेह नहीं कि ब्रिटेन सरकार के खिलाफ हमारी शिकायतों का ठोस आधार है. 1700 में भारत अकेला दुनिया की 22.6 फीसद दौलत पैदा करता था, जो पूरे यूरोप द्वारा पैदा की गयी संयुक्त दौलत के लगभग बराबर थी. लेकिन यह हिस्सा 1952 में घटकर 3.8 फीसद रह गया है. 1750 में भारत का वैश्विक औद्योगिक उत्पादन में लगभग 25 प्रतिशत योगदान था. ऑक्सफैम की रिपोर्ट में कहा गया है कि 1900 तक यह आंकड़ा तेजी से घटकर मात्र 2 प्रतिशत रह गया.
ग्लोबल साउथ के देशों में असमानता उपनिवेशवाद के कारण
ऑक्सफैम की रिपोर्ट में कहा गया कि अमीर शेयरधारकों की तरफ से चलाई जा रही निजी बहुराष्ट्रीय कंपनियां औपनिवेशिक युग की देन थी और इनमें से कई कंपनियों ने अपने खिलाफ विद्रोह को दबाने के लिए अपनी सेना रखी थी. कहा गया है कि भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कुल 260,000 सैनिक थे. ऑक्सफैम के अनुसार ये सैनिक भूमि अधिग्रहण, हिंसा, विलय और अधिग्रहण में शामिल थे. सन 1830 से 1920 तक 37 लाख भारतीय, चीनी, अफ्रीकी, जापानी, मेलानेशियाई और ग्लोबल साउथ के लोगों को बागानों और खदानों में काम करने और बंधुआ मजदूरी कराने के लिए ब्रिटेन जैसे देशों में भेजा गया.
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