घर-परिवार छोड़ महीनों जंगल और जेल में रहा : दुलाल भुइयां
alt="" width="279" height="300" /> झारखंड आंदोलन की उपज पूर्व मंत्री दुलाल भुइयां ने बताया कि अलग राज्य आंदोलन के दौरान घर परिवार छोड़कर कई महीनों तक जंगलों में रहना पड़ा. हिंसात्मक आंदोलन के दौरान उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा. बिहार में भी वे जेल में रहे. बाद में रांची के होटवार जेल में रहे. आंदोलनकारियों का सपना झारखंड के महापुरूषों का झारखंड बनाने का था, लेकिन उस अनुरूप राज्य का सृजन नहीं हो पाया. आज 20 वर्ष हो गए अलग राज्य बने. लेकिन आज भी झारखंड के आदिवासी-मूलवासी दर-दर भटकने को मजबूर हैं. उन्होंने कहा कि जो सपना हमारे महापुरूषों और झारखंड अलग राज्य के पुरूधाओं ने संजोया था. वह पूरा नहीं हो पाया है. हमें अलग राज्य तो मिला. लेकिन गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा बीमारी आज भी कायम है. झारखंड आदोंलनकारियों का दर्द बताते हुए उन्होंने कहा कि आज भी कई आंदोलनकारी एक अदद सम्मान को तरस रहे हैं. दिशोम गुरु खुद आंदोलनकारी रहे हैं. उनके पुत्र राज्य की गद्दी पर बैठे हैं. हम उम्मीद करते हैं कि हेमंत सोरेन छूटे हुए आंदोलनकारियों को सम्मान प्रदान करेंगे.
सरकार ने आज तक आंदोलनकारी घोषित नहीं किया : शशि भूषण लोहार
alt="" width="225" height="300" /> मूलतः खूंटी जिले के तमाड़ के रहने वाले शशि भूषण लोहार ने बताया कि 80-90 के दशक में आजसू (ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन) के बैनर तले झारखंड अलग राज्य की लड़ाई में वे शामिल हुए. आर्थिक नाकेबंदी में हाईवे पर गाड़ियों को रोका और रास्ता रोको आंदोलन में भाग लिया. राजनगर में आंदोलन के साथ पुलिस से भिड़ंत में शामिल रहे. पूर्व सांसद कृष्ण मार्डी एवं आजसू नेता सूर्य सिंह बेसरा के साथ कई आंदोलन में हिस्सा लिया. लेकिन दुर्भाग्य है कि उन्हें आज तक आंदोलनकारी घोषित नहीं किया गया. उन्होंने बताया कि आंदोलनकारी चिन्हितीकरण आयोग में कृष्णा मार्डी सहित कई आंदोलनकारियों ने उनके नाम की अनुशंसा की. सूची राज्य सरकार को भी भेजी गई. लेकिन राज्य बने 21 वर्ष हो गए. आज तक उन्हें सम्मान नहीं मिला.
आंदोलन में शामिल हुआ, जेल नहीं गया इसलिए नहीं मिला सम्मान : मोहन भगत
alt="" width="252" height="300" /> मोहन भगत ने कहा कि झारखंड आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. आजसू नेता सूर्य सिंह बेसरा के साथ वे आर्थिक नाकेबंदी सहित कई मोर्चे पर काम किए. कई बार उनकी पुलिस से भिड़ंत भी हुई, लेकिन वे पकड़ में नहीं आए. इसके कारण जेल नहीं गए. झारखंड आंदोलनकारी चिन्हितीकरण आयोग की ओर से आंदोलनकारियों की बनाई गई सूची में उनका नाम शामिल किया गया, लेकिन आज तक उन्हें किसी प्रकार का सम्मान नहीं मिला. जिसका उन्हें मलाल है.
72 घंटे के झारखंड बंद में विस्फोटक सामग्री ढोया, टेस्टिंग की : डेमका सोय
alt="" width="300" height="290" /> डेमका सोय ने कहा कि झारखंड आंदोलन के दौरान आजसू (ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन) की जमशेदपुर सिटी कमेटी के कोषाध्यक्ष के रूप में बुधराम सोय के नेतृत्व वाली टीम का अहम हिस्सा रहे. लेकिन आज तक सरकारी सम्मान से वंचित हैं. उन्होंने बताया कि 72 घंटे के ऐतिहासिक झारखंड बंद के दौरान विस्फोटक सामग्री ढोने से लेकर इसकी टेस्टिंग तक की गुप्त कार्रवाई में भी जान जोखिम में डालकर झारखंड आन्दोलन को हमेशा सफल बनाने के लिए काम करता रहा. वर्ष 1989 के बाद लगातार चले झारखंड आन्दोलन के संघर्ष को राजनैतिक मुकाम तक पहुंचाने में हमेशा अग्रणी भूमिका में रहा. लेकिन झारखंड अलग राज्य बनने के बाद राजनैतिक विद्वेष के तहत आंदोलनकारियों को सम्मान से वंचित रखा गया. झारखंड आन्दोलनकारियों को चिन्हित न कर पाना आयोग के साथ-साथ सरकार के बड़े-बड़े पदाधिकारियों की अक्षमता का प्रमाण है. [wpse_comments_template]

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