हार के खौफ की छटपटाहट

Nishikant Thakur पिछले सप्ताह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भाजपा द्वारा आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण की आज देशभर में चर्चा है. उनका सीधा प्रहार इसी वर्ष कई राज्यों के विधानसभा तथा अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा नीति के विरुद्ध संगठित हुए विपक्षी महागठबंधन और विशेष रूप से कांग्रेस पर था. प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया कि `भ्रष्टाचार के बिना कांग्रेस सांस भी नहीं ले सकती. कांग्रेस की विचारधारा में ही भ्रष्टाचार है. जब मैं यह कहता हूं तो लोग मुझे भला-बुरा कहते हैं और मेरी कब्र खोदने की धमकी दे रहे हैं, मेरे खिलाफ षड्यंत्र रच रहे हैं, लेकिन मैं भी बता रहा हूं कि जो डर जाए, वह मोदी नहीं हो सकता.` सच बात है विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत का प्रधानमंत्री जब इस तरह की बात करता है, तो एक सामान्य जनता असहज होने लगती है और उनका कहना होता है कि इस तरह के धमकाने वाले शब्दों का प्रयोग प्रधानमंत्री की गरिमा के अनुकूल नहीं है, क्योंकि चुनौती वाली बात तो वे गली-चौराहों पर सुनते ही रहे हैं, इसलिए प्रधानमंत्री का बार-बार सीना ठोंक-ठोंककर संसद या सदन के बाहर इस बात को दोहराना अप्रिय लगता है. संभवतः देश के किसी भी प्रधानमंत्री ने आजादी के बाद से इस तरह सीना ठोंक-ठोंक कर जनता को विश्वास दिलाने का प्रयास नहीं किया, क्योंकि इस तरह की बातों से उनके मन में सत्तारूढ़ नेताओं के प्रति विश्वास नहीं, बल्कि डर पैदा करता है. प्रधानमंत्री देश की जनता के लिए सर्वशक्तिमान राजनेता होते हैं और इसलिए उनपर देश की जनता का अटूट विश्वास होता है. वह जब स्वयं इस तरह की धमकी दें तो फिर उन निरीह जनता की रक्षा कौन करेगा? हमारा संविधान हमें उनके कामकाज की भी आलोचना करने का अधिकार देता है. इसलिए विश्व सहित हमारे भारत में भी विपक्षी दलों का महत्व है. आज जब भारत में विपक्ष नगण्य है, फिर जो भी हैं, वे जनता के हितों की तो बात करेंगे ही, लेकिन सत्तारूढ़ दल की सोच यह हो कि देश विपक्षविहीन रहे तो फिर कुछ दिन बाद सामान्य जनता के मन में भी ज्वार उमड़ेगा. सत्तारूढ़ भाजपा ने पहले यह नारा दिया कि देश कांग्रेस मुक्त हो, फिर जोरशोर से प्रचार करके उनके नेताओं को बौना साबित करने का भरपूर प्रयास किया गया और कहा गया कि आजादी के बाद से देश का विकास कांग्रेस के सत्ता में होने के कारण नहीं हुआ. साथ ही यह भी कहा और कहलवाया गया कि वर्तमान सरकार के सत्तारूढ़ होने के बाद ही देश का स्वरूप बदला है. लेकिन, यह कहावत यहां चरितार्थ होती है कि झूठ के पांव नहीं होते. यह सच है कि एक झूठ को बार-बार कहने से कुछ काल के लिए वह सच लगने लगता है, लेकिन वह टिकाऊ नहीं होता. इसे आज के परिप्रेक्ष्य में भी लिया जा सकता है. पिछले लगभग नौ वर्षों में केंद्रीय सत्तारूढ़ द्वारा देश की जनता से इतने लुभावने वादे किए गए, जिनसे मुग्ध होकर लोग सब कुछ करने को तैयार हो गए, लेकिन अब उन्हें लगने लगा कि वे सारे वादे झूठे थे और उनके भरोसे का अबतक उपहास ही उड़ाया गया. सत्तारूढ़ दल द्वारा यह भी प्रचारित किया जाता है कि भारत की पहचान विश्व में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही हुई, भारत की प्रतिष्ठा विश्व मानचित्र पर भी तभी बढ़ा जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने. इसका खंडन भी विपक्षी दल के नेता करते हैं और कहते हैं कि यदि भारत 2014 के बाद से विश्व के मानचित्र पर सामने आया है, तो फिर फिरंगियों ने इस देश को सोने की चिड़िया क्यों कहा और दो सौ वर्षों तक शासन क्यों किया. अब तक जो कुछ देश में हुआ, वह तो हुआ ही, लेकिन अब देश के विकास की गति और तेज होगी. ऐसा इसलिए कि जब हम आजाद हुए थे, संसाधनों का घोर अभाव था वैसे इतने अभाव में भी उसके विकास को नेतृत्व की दूरदर्शिता ने इतना आगे बढ़ाया. 2024 के लोकसभा चुनाव में यदि भाजपा की सरकार फिर बनती है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही होंगे, क्योंकि गुजरात हाईकोर्ट के निर्णय के बाद राहुल गांधी के विवाद को यदि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी उसी निचली अदालत के निर्णय को बहाल रखा जाता है तो फिर राहुल गांधी चुनाव लड़ने से वंचित रहेंगे. फिर यदि महागठबंधन की सरकार बनती है तो तीन नामों पर विचार किया जाएगा. इनमें मल्लिकार्जुन खड़गे, नीतीश कुमार तथा यदि प्रियंका गांधी चुनाव लड़ती हैं तो उनका नाम भी सामने आएगा. प्रियंका गांधी को छोड़कर कांग्रेस अध्यक्ष और नीतीश कुमार मंझे हुए और पढ़े-लिखे राजनीतिज्ञ हैं, अतः देश का निश्चित रूप से विकास होगा. अगर आज की तरह आक्रामक राजनीति आगे भी चलती रही तो फिर वर्तमान सत्तारूढ़ का क्या हश्र उस काल में होगा, इसे आसानी से समझा जा सकता है. वैसे, जिस प्रकार के कटु और गैर संसदीय भाषा का प्रयोग अब तक होता आ रहा है, वह तो निश्चित रूप से बंद हो ही जाएगा, क्योंकि सत्ता की सर्वोच्च दौड़ में जिनका नाम ऊपर उल्लेखित है, उन्हें आज तक उनके राजनीतिक जीवन में कभी खम और छाती ठोंककर किसी को चुनौती देते नहीं देखा गया. जब कटुता नहीं होगी, विपक्षियों के लिए खम और छाती ठोंककर चुनौती देने की बात नहीं होगी, कोई 56" के सीने की भी बात नहीं करेगा, क्योंकि तब वे बौद्धिक क्षमता की बात करेंगे, फिर जहां ऐसा होगा वहां विकास भी होगा और उन्नति भी होगी. हम हिंदू-मुस्लिम, भारत-पाकिस्तान की बात करना बंद कर देंगे, देश समझ चुका है कि इस प्रकार की बातों से किसी का भला अब तक तो नहीं ही हुआ है और जब सब यह समझ चुके होंगे कि इन बातों पर चर्चा करना फिजूल है. डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. [wpse_comments_template]
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