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झारखंड में जल्द लागू हो पेसा कानूनः केंद्रीय धुमकुड़िया

Ranchi: झारखंड आंदोलनकारी सूर्य सिंह बेसरा ने कहा कि पेसा पांचवी अनुसूची वाली क्षेत्र में आदिवासियों की पारंपरिक व्यवस्था है. इसके लिए पेसा कानून एक्ट 1996 बनाया गया है. लेकिन इस कानून को पी पेसा बोलकर समाज को दिगभ्रमित करने का काम हो रहा है. गुरुवार को केंद्रीय धुमकुड़िया के आह्वान पर करमटोली में दर्जनों आदिवासी संगठनों के बीच पेसा कानून पर महाबहस पर बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि देश का संविधान 26 जनवरी 1950 को बना. इस समय 13 संशोधन पारित हुआ. 24 दिसम्बर 1986 में राष्ट्रपति हस्ताक्षर किए. संविधान के भाग 9 और अनुच्छेद 243 में पंचायत व्यवस्था अंकित है. दिलिप सिंह भूरिया कमेटी ने पेसा एक्ट 1996 बनाया है. जिसमें 15 लोग शामिल थे. पूर्व सीएम शिबू सोरेन सदस्य बने थे.

8 राज्य में पेसा कानून लागू है

पूर्व मंत्री देवकुमार धान ने कहा कि 8 राज्य में पेसा कानून लागू है. झारखंड और उड़िसा में पेसा कानून लागू नहीं हुआ है. पेसा कानून में ग्रामसभा को फोकस किया है. सरकारी कामकाज और योजना का धरातल पर लानेके लिए पेसा एक्ट बनाया गया है. पेसा के लिए कानूनविद लोगों का एक टीम बनाना होगा. समाज के बीच जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है.

गांव में ग्रामसभा को शक्ति प्रदान की गई हैः फूलचंद तिर्की

केद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष फुलचंद तिर्की ने कहा कि पेसा पंचायत को दिया गया अधिकार है. गांव में ग्रामसभा को शक्ति प्रदान की गई है. पेसा का मतलब अनुसूचित क्षेत्रों में रूढ़ीवादी संस्कृति, जो गांव को अधिकार दिया गया है. इसमें सर्वेसर्वा ग्रामप्रधान होता है. जो गांव के लोग चुनाव करेंगे. पांचवी क्षेत्र में नगर निगम चुनाव अंसवैधानिक है. क्योकि रांची पांचवी अनुसूची वाला क्षेत्र के अंतर्गत होता है.

शिड्यूल क्षेत्र में उद्योग लगाने पर ग्रामसभा से लेना होगा अनुमति

भारत आदिवासी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष प्रेम शाही मुंडा ने कहा कि राज्य में पेसा एक्ट 1996 लागू होना है. इसके लिए राज्य सरकार को हाईकोर्ट ने दो महीना का समय दिया है. लेकिन झारखंड में विधायक सांसद चुप हैं. पेसा कानून राज्य में लागू होगा तो न्याय की प्रक्रिया ग्रामसभा को प्राप्त होगी. इसके साथ ही आदिवासी जमीन की लूट भी रूकेगी.

पेसा कानून का मतलब गांव की सरकार 

आदिवासी लोहरा समाज के अध्यक्ष बालमुकुंद लोहरा ने कहा कि पेसा कानून का मतलब गांव का सरकार है. आदिवासियों की सुरक्षा के संविधान में पांचवी अनुसूची का प्रावधान है. पारंपरिक व्यवस्था अखरा को बचाना है.लड़ाई झगड़ा का निबटारा होगा. गांव का पाहन ही ग्रामप्रधान होगा. गांव में मिनी अधिकार चलेगा.

आदिवासियों का अधिकार ग्रामप्रधान द्वारा संचालित होगा

पूर्व वार्ड एक पार्षद नकुल तिर्की ने कहा कि देश संविधान और कानून से चलता है. आजादी के 76 साल में भी आदिवासी हासिये पर खड़े हैं. दिलीप सिंह भुरिया कमेटी ने पेसा कानून बनाया. आदिवासियों के सर्वांगीण विकास के लिए पेसा कानून बनाया गया है. सभी अधिकार ग्रामप्रधान द्वारा संचालित होगा.

पेसा एक्ट कानून 1996 को जल्द लागू करना चाहिएः कुंदरसी 

समाजसेवी कुंदरसी मुंडा ने कहा कि पेसा नियमावली जल्द लागू होना चाहिए. गांव को संरक्षित के लिए पेसा एक्ट लागू होना चाहिए. नगर निगम का चुनाव असंवैधानिक है. झारखंड में पंचायत चुनाव शुरू हुआ. मुखिया ,पंचायती समिति, जिला परिषद बनाया गया. इसके बाद भी गांव का विकास नहीं हुआ है. ग्राम प्रधान को पंचायत में स्थान नहीं दिया गया. इसे भी पढ़ें – महाकुंभ">https://lagatar.in/maha-kumbh-international-team-from-abroad-took-a-dip-in-the-confluence-were-overwhelmed-story-of-baba-bageshwar-dham-from-24th/">महाकुंभ

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