NewDelhi : अमेरिकी नॉन प्रॉफिट प्यू रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना वायरस ने भारत को करारी चोट दी है. इसकी वजह से मध्यम वर्ग कमजोर हुआ है. साथ ही गरीबों की संख्या पहले से लगभग दोगुनी हो गयी है.. कोरोना का कहर सारे विश्व में जारी रहा. कोरोना ने तमाम देशों की अर्थव्यवस्था को चौपट करके रख दिया. भारत के परिपेक्ष्य में बात करें तो वायरस को रोकने के लिए लगाये गये लॉकडाउन की वजह से इकॉनोमी लगभग चौपट हो गयी.
भारत में मिडिल क्लास के लोगों की संख्या 6.6 करोड़ तक सिमट गयी
प्यू रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना काल में भारत में मिडिल क्लास के लोगों की संख्या 6.6 करोड़ तक सिमट गयी. कोरोना संकट से पहले यह आंकड़ा 9.9 करोड़ था. गरीबों की संख्या 13.4 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है. कोरोना से पहले इनकी संख्या तकरीबन 5.9 करोड़ थी. बता दें कि भारत के परिपेक्ष्य में रोजाना 10 से 20 डॉलर (725 से 1450 रुपए) तक की कमाई करने वालों को मिडिल क्लास में माना जाता है. रिपोर्ट के अनुसार, गरीब की श्रेणी में उन लोगों को रखा जाता है जिनकी रोजाना आय 2 डॉलर (145 रुपए) से कम होती है. रिपोर्ट कहती है कि मनरेगा (महात्मा गांधी नेशनल रूरल डेवलपमेंट स्कीम) के तहत आने वाली डिमांड में बहुत ज्यादा उछाल आया है. इसकी लॉचिंग के बाद यह सबसे ज्यादा है. चीन खुद को संभालने में सफल रहा
विश्व के परिपेक्ष्य में चीन इस दौरान खुद को संभालने में सफल रहा. भारत और चीन दुनिया की दो तिहाई आबादी को अपने में समेटे हुए हैं. कोरोना से पहले के हालात में विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में जीडीपी 5.8 परसेंट रहने का अनुमान जताया गया था. चीन की जीडीपी 5.9 परसेंट रहने की बात इसमें की गयी. कोरोना के बाद के दौर में भारत की जीडीपी माइनस 9.6 परसेंट रहने का कयास लगाया गया है, तो चीन प्लस 2 परसेंट की रफ्तार से खुद को आगे बढ़ाने में कामयाब हो रहा है, कोरोना के चलते मिडिल क्लास की आबादी में बड़ी गिरावट आयी है. नौकरी गंवाने की वजह से करोड़ों लोग गरीबी रेखा के नीचे आ गये हैं. रिपोर्ट के अनुसार कोरोना के चलते लगाये गये लॉकडाउन से आर्थिक गतिविधियां थम गयी. इससे भारत 40 साल में सबसे बड़ी आर्थिक मंदी में डूब गया.
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