Shyam Kishore Choubey
इधर जेवीएम में ऊहापोह का दौर चल रहा था, उधर हेमंत सोरेन के नेतृत्ववाली यूपीए मंत्रिपरिषद का ढांचा तय नहीं हो पा रहा था. झामुमो और कांग्रेस के निर्वाचित विधायक हरचंद कोशिश-पैरवी में लगे थे कि उनको मंत्री बना दिया जाये. कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी आरपीएन सिंह का भाव सातवें आसमान पर चढ़ा हुआ था. सर सर रटते विधायकों को अपनी अबूझ मुस्कुराहट के साथ वे तसल्ली
देकर टरका रहे थे. कांग्रेस की जीती चार महिला विधायकों में से दीपिका पांडेय सिंह को अपेक्षाकृत अधिक उम्मीद थी क्योंकि वे यूथ कांग्रेस में बड़े पद पर रह चुकी थीं और कुछ वर्षों पूर्व अपने माता-पिता द्वारा कांग्रेस छोड़ देने और भाजपा जॉइन कर लेने के बावजूद वे कांग्रेस में टिकी हुई थीं. उधर ममता देवी को आरपीएन के जातीय समीकरण पर भरोसा था. झामुमो में एक तरह से हेमंत ही आलाकमान थे और मुख्यमंत्री थे. नाम के आगे टिक भी उनको ही लगाना था. क्षेत्रीय संतुलन, जातीय समीकरण और फरमाबरदारी भी उनको ही देखनी थी. झामुमो में कई वरीय विधायक थे, जबकि प्रो. स्टीफन मरांडी जैसा व्यक्तित्व भी था, जो उपमुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष आदि-आदि डिग्रियों से लैस थे.
ऐसे ही अनिश्चय भरे माहौल में मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण के महीना भर बाद 27 जनवरी को खबर आई कि अगले दिन मंत्रिपरिषद में नये नाम जोड़े जायेंगे. हेमंत ने होशियारी दिखाते हुए कांग्रेस से दो अन्य मंत्रियों का नाम मंगा लिया था. कांग्रेस आरंभ में तो पांच मंत्री पद के लिए अड़ी हुई थी लेकिन हेमंत सोरेन शुरू से ही चार से अधिक बर्थ देने को राजी न थे. यह आंकड़ों का भी खेल था. समानुपातिक तरीके से पद वितरण में कांग्रेस के हिस्से में चार से अधिक मंत्री आते नहीं दिख रहे थे. आलमगीर आलम और रामेश्वर उरांव को मुख्यमंत्री के साथ ही मंत्री का ताज पहनाया जा चुका था. ऐसी स्थिति में हेमंत के दिल्ली प्रवास के दौरान काफी मोलभाव के बाद कैबिनेट में सीट शेयरिंग का फार्मूला बना. झामुमो ने अपने हिस्से के छह मंत्रियों के नाम तय कर लिया था, जिनमें एक स्वयं मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाल चुके थे.
काफी जोड़-घटाव और गुणा-भाग के बाद 27 जनवरी की रात हेमंत को कांग्रेस द्वारा भेजे गये फैक्स संदेश में शेष दो मंत्रियों का नाम मिला. ये नाम थे जरमुंडी के विधायक बादल पत्रलेख और जमशेदपुर पश्चिम सीट से जीते बन्ना गुप्ता. अगली सुबह यानी 28 जनवरी 2020 को बादल और बन्ना के अलावा झामुमो के चंपाई सोरेन, हाजी हुसैन अंसारी, जगरनाथ महतो, जोबा मांझी और मिथिलेश कुमार ठाकुर को मंत्री पद की शपथ दिलायी गई. हेमंत ने पूर्ववर्ती रघुवर सरकार की तरह मंत्री का 12वां पद दूर ऊपर लटका कर रखा ताकि बाकी विधायक उसे रोज-रोज देखें और सोचें कि यह अंगूर पककर उनके ही मुंह में गिरेगा.
उसी समय यह राज सामने आया था कि कोटे के मंत्री पद के लिए कांग्रेस के कुल जमा चार नाम देख हेमंत एकबारगी सन्न रह गये थे. उन नामों में एक भी महिला नहीं थी. महिला विहीन कैबिनेट आलोचना-प्रत्यालोचना का शिकार बनती
क्योंकि यूपीए खेमे में कांग्रेस की चार दीपिका पांडेय सिंह, पूर्णिमा नीरज सिंह, ममता देवी, अंबा प्रसाद और झामुमो की तीन सीता मुर्मू, जोबा मांझी, सविता महतो महिला विधायक जीतकर आयी थीं. कांग्रेस द्वारा किसी भी महिला विधायक को मंत्री न बनाये जाने की सूचना मिलने के तत्काल बाद हेमंत को झामुमो कोटे के मंत्रियों के नाम में फेरबदल करनी पड़ी जोबा मांझी की अचानक लॉटरी लग गयी. उनका नाम मंत्रियों की सूची में शामिल कर लिया गया. उम्मीद चाईबासा सीट से दोबारा जीते दीपक बिरूआ को भी थी क्योंकि वे एक तो हो आदिवासी समुदाय के हैं, दूसरे उन्होंने घोर भाजपा काल में वीआरएस लेकर चुनाव मैदान में उतरे तत्कालीन गृह सचिव वरिष्ठ आइएएस अधिकारी जेबी तुबिद को हराया था. तुबिद के पिता पूर्व में विधायक रह चुके थे. उनकी पत्नी राजबाला वर्मा मुख्य सचिव बनीं और तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर की काफी करीबी थीं.
जाहिर है कि हेमंत कैबिनेट के इस ढांचे से कांग्रेस और झामुमो के मंत्री पद से वंचित विधायकों के अंदर असंतोष पनपना ही था. कांग्रेसी तो हाय-हाय कर रह गये लेकिन झामुमो में कानाफूसी और दबे स्वर में ही सही विरोध शुरू हो गया. दीपक बिरूआ को विधानसभा में सत्तापक्ष का मुख्य सचेतक बनाकर संतुष्ट करने की कोशिश की गयी. वैसे है तो यह पद कैबिनेट मंत्री की सुविधाओं
वाला लेकिन कहां माननीय मंत्री और कहां मुख्य सचेतक? क्षेत्र में कौन जानता-समझता है कि मुख्य सचेतक कौन सी तोप है? नौकरशाही में भी मंत्री की अधिक पूछ होती है. वह कैबिनेट में अपने प्रस्ताव लाता है और दूसरों की खबर भी रखता-लेता है. उसका अमला-काफिला और प्रभामंडल ही अलग होता है. इसी प्रकार स्टीफन मरांडी को बीस सूत्री कमिटी का उपाध्यक्ष का पद सौंपा गया, जो राज्यमंत्री के समतुल्य होता है. स्टीफन ने इनकार कर दिया तो उनको कार्यकारी अध्यक्ष का पद सौंप उसे कैबिनेट रैंक का बना दिया गया. मथुरा प्रसाद महतो, नलिन सोरेन, लोबिन हेम्ब्रम, रामदास सोरेन, सरफराज अहमद आदि-आदि कुहंक कर रह गये. यहां तक कि तीसरी मर्तबा विधायक चुनी गयीं मुख्यमंत्री की भाभी सीता मुर्मू भी थोड़ा-बहुत मुंह फुलाकर मौन साधने को विवश हो गयीं. परिवारवाद और क्षेत्रीय संतुलन के नाम पर उनको मौन साधना ही पड़ा.
एक अन्य महत्वपूर्ण प्रकरण यह कि चुनाव परिणाम के तत्काल बाद रांची से लेकर दिल्ली तक झामुमो और कांग्रेस में चल रही पद बारगेनिंग के दौरान कांग्रेस ने पांच मंत्री पद की मांग रखी थी और ऐसा न होने पर उसने चार मंत्री पद के साथ अपने स्पीकर का प्रस्ताव रखा था. हेमंत ने इस मंशा और प्रस्ताव को दरकिनार करते हुए नाला से तीसरी बार विधायक चुने गये स्वदलीय रवींद्र नाथ महतो को स्पीकर के बतौर प्रेजेंट किया. (जारी)
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