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स्त्री की आबरू पर सियासी रोटी

Nishikant Thakur आज तो सत्तालोभ में आकंठ डूबे राजनीतिज्ञ उसमें भी अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करने के लिए प्रताड़ित पक्ष को ही दोषी ठहराते हैं. आज विश्व में भारत का जो अपमान हो रहा है, देश के राजनीतिज्ञ उसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं और उसके ही खिलाफ विषवमन कर अपनी कमी स्वीकारने के स्थान पर पीड़ित का साथ देने वालों को ही देशद्रोही बताकर अपराध पर मिट्टी डालने की कोशिश करते हैं. फिलहाल, लोकसभा में मणिपुर प्रकरण पर अविश्वास प्रस्ताव मंजूर हो गया है और अब सदन में प्रधानमंत्री मणिपुर पर बोलेंगे. साथ ही 4 मई को हुई घटना की जांच अब सीबीआई करेगी. केंद्र सरकार नियम 176 के तहत मणिपुर हिंसा पर सदन में चर्चा करने को तैयार है. आज देश का कोई व्यक्ति ऐसा नहीं है, जो मणिपुर की दुर्भाग्यपूर्ण घटना से अपरिचित हो. जिस तरह से मणिपुर में नारियों का अपमान किया गया है, जिनके मर्मभेदी चीत्कार से पूरा देश मर्माहत हुआ और सम्पूर्ण भारत हिल गया. ऐसा संभवतः भारत में आज तक कभी नहीं किया गया है. जिस प्रकार निर्वस्त्र करके सार्वजनिक रूप से महिला को सरेआम घुमाया गया, खेत में ले जाकर उसके साथ दुष्कर्म किया गया, इस सभ्य समाज में आज तक कहीं ऐसा नहीं किया गया होगा, न किसी ने कभी सुना होगा. पश्चिम बंगाल भाजपा के अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा कि पंचायत चुनाव के दौरान दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाया गया. प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पश्चिम बंगाल की भाजपा सांसद लॉकेट चटर्जी रोने लगीं. मणिपुर में दरिंदगी पर गुस्सा शांत भी नहीं हुआ और बंगाल-बिहार से महिलाओं के साथ हैवानियत की तस्वीरें सामने आ गईं. बंगाल में चोरी के आरोप में दो महिलाओं को बुरी तरह पीटा गया, उनके कपड़े फाड़ डाले गए, तो बिहार में टीचर के साथ आपत्तिजनक स्थिति में दिखी लड़की पर लोगों का गुस्सा ऐसा भड़का कि वे हैवान बन गए. बिना कपड़े में ही बुरी तरह से पिटाई कर दी. अब कुछ मणिपुर के शानदार इतिहास को समझने की कोशिश करते हैं. 1947 में जब अंग्रेजों ने मणिपुर छोड़ा, तब से मणिपुर का शासन महाराज बोधचंद्र सिंह के कंधों पर आ पड़ा. 21 सितंबर, 1949 को हुई विलय संधि के बाद 15 अक्टूबर, 1949 से मणिपुर भारत का अंग बना. 26 जनवरी, 1950 को भारतीय संविधान लागू होने पर यह एक मुख्य आयुक्त के अधीन भारतीय संघ में भाग ‘सी’के राज्य के रूप में शामिल हुआ. बाद में इसके स्थान पर एक प्रादेशिक परिषद गठित की गई, जिसमें 30 चयनित तथा दो मनोनीत सदस्य थे. इसके बाद वर्ष 1962 में केंद्रशासित प्रदेश अधिनियम के अंतर्गत 30 चयनित तथा तीन मनोनीत सदस्यों की एक विधानसभा स्थापित की गई. 19 दिसंबर, 1969 से प्रशासक का दर्जा मुख्य आयुक्त से बढ़ाकर उपराज्यपाल कर दिया गया. 21 जनवरी, 1972 को मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और 60 निर्वाचित सदस्यों की विधानसभा गठित की गई. इसमें 19 अनुसूचित जनजाति और एक अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. राज्य में लोकसभा में दो और राज्यसभा में एक प्रतिनिधि है. मणिपुर में 3 मई से हिंसा की शुरुआत हो चुकी थी. मणिपुर में तीन मई को मैतेई (घाटी बहुल समुदाय) और कुकी जनजाति (पहाड़ी बहुल समुदाय) के बीच हिंसा शुरू हुई थी. दरअसल, मणिपुर में मैतेई समाज की मांग है कि उसको कुकी की तरह राज्य में अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाए. कुकी जनजाति भारत के मणिपुर और मिजोरम राज्य के दक्षिण-पूर्वी भाग में एक जनजातीय समूह हैं. कुकी भारत, बांग्लादेश, और म्यांमार में पाई जाने वाले कई पहाड़ी जनजातियों में से एक हैं. उत्तर-पूर्व भारत में, अरुणाचल प्रदेश को छोड़कर वे सभी राज्यों में मौजूद हैं. आरक्षण विवाद के बीच मणिपुर सरकार की अवैध अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई ने आग में घी डालने का काम किया. ढेरों अपमान और आघात सहने के बावजूद वही सरकार है, वही एन. वीरेंद्र सिंह मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने एक राष्ट्रीय चैनल को टेलीफोन पर इंटरव्यू देते हुए कहा था कि `ऐसी घटनाएं कितनी हुई हैं, उसे याद रखना संभव नहीं है.` कितना बड़ा दुर्भाग्य है राज्य की निरीह जनता का, जहां की सरकार को सब कुछ पता है, लेकिन मामले को महीनों दबाकर रखा जाता है. मुख्यमंत्री ने स्वयं इस बात को स्वीकार किया कि इन्हीं सब कारणों से इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई थीं. लेकिन अब जब उसे शुरू किया गया तो इस प्रकार की घटनाओं की जानकारियां सामने आ रही हैं. जनता इस बात से हैरान है कि इतना सख्त निर्णय लेने वाला प्रधानमंत्री उस मुख्यमंत्री का, जिसके कारण अब तक सैकड़ों लोग हलाक हो गए और अरबों-खरबों की सरकारी और निजी संपत्ति आग के हवाले कर दी गई है, साथ ही विश्वभर में भारत की बदनामी हुई है, उसको अब तक बर्खास्त क्यों नहीं कर पा रहे हैं? सच तो यह भी है कि केंद्र में किसी की भी सरकार रही हो, `सेवन सिस्टर्स` के नाम से मशहूर पूर्वोत्तर के इन सभी खूबसूरत सात राज्यों को उपेक्षित और देश की मुख्य धारा से सदैव अलग रखा गया. विश्लेषक यह भी कहते हैं कि इन सात राज्यों से केंद्र में कभी सरकार नहीं बन सकती है, इसलिए केंद्र में सत्तारूढ़ चाहे कोई दल रहा हो, ये सातों राज्य सदैव उपेक्षा के शिकार ही होते रहे. इन सभी सातों राज्यों में कोई राज्य ऐसा नहीं है, जहां रह-रहकर माहौल बिगड़ता न हो. हां, मणिपुर में इस बार जो शर्मनाक घटना घटी है, उससे सरकार को सबक मिले और निकट भविष्य में इन राज्यों को भारत का अभिन्न अंग मानते हुए उनके आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक स्थिति को ठीक करने का बीड़ा उठा ले, तभी लंबे समय बाद इनकी दशा और मानसिकता में बदलाव आएगा, अन्यथा जिस तरह की घटना घटी है, वह आखरी घटना नहीं बन सकेगी. डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं. [wpse_comments_template]

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