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अमृत काल का राजनीतिक गदर

Shyam Kishore Choubey देश की राजधानी दिल्ली और झारखंड की राजधानी रांची में 25 जुलाई को दो-तीन महत्वपूर्ण राजनीतिक/न्यायिक घटनाएं हुईं. पहले से चले आ रहे सियासी गुट एनडीए संसदीय दल की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हफ्ता भर पहले बने प्रतिपक्षी गुट इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायन्स (इंडिया) को प्रकारांतर से कह दिया कि यह ईस्ट इंडिया कंपनी और इंडियन मुजाहिदीन के समान है. ‘इंडिया’ने तत्काल अपने ढंग से करारा जवाब दिया. मोदी ने यह तब कहा, जब मणिपुर मामले पर सदन में प्रधानमंत्री के वक्तव्य की मांग लेकर प्रतिपक्ष संसद का 17 दिनी मॉनसून सत्र पांच दिनों से चलने नहीं दे रहा था. दूसरी ओर गृह मंत्री अमित शाह ने उसी दिन प्रतिपक्षी नेताओं को पत्र लिखकर सदन में सकारात्मक रवैया अपनाने की अपील की. एक तरफ चिढ़ाना, दूसरी तरफ सहलाना, दोनों में कोई समन्वय नहीं दिखता. प्रतिपक्ष ने दूसरे दिन सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने का एलान कर दिया. दरअसल, जिच इस बात पर है कि 82 दिनों से नस्ली हिंसा में 150 लोगों के कत्ल, अरबों की संपत्ति फूंकने, पुलिस के तकरीबन चार हजार हथियार लूटने, महिलाओं की घनघोर बेइज्जती, 50 हजार से अधिक लोगों के पलायन का गवाह बने मणिपुर के हालात पर प्रतिपक्ष राज्यसभा में नियम 267 के तहत चर्चा की मांग कर रहा था. इस नियम के अनुसार बहस के लिए लंबा समय मिलता है, जबकि गृह मंत्री ने सदन को बताया कि सरकार नियम 176 के तहत चर्चा को राजी है. इस नियम के अनुसार छोटी चर्चा होती है. लंबी बहस के बाद जाहिर है कि प्रधानमंत्री को जवाब देना होता है. इन्हीं दो बिंदुओं को लेकर सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने की हद तक जाने की नौबत इसलिए आई, ताकि इस प्रस्ताव पर होनेवाली बहस में प्रधानमंत्री सदन में मौजूद रहें और अपनी बात रखें. अब झारखंड की बात. यहां की महागठबंधन सरकार ने पूर्ववर्ती एनडीए सरकार के पांच मंत्रियों की संपत्ति की प्रारंभिक जांच करने का आदेश एसीबी को दिया. किन्हीं पंकज कुमार यादव ने 2020 में हाईकोर्ट में याचिका लगाकर इन पांचों पूर्व मंत्रियों की संपत्ति की जांच कराने की मांग की थी. याचिका में कहा गया है कि 2014 और 2019 के चुनाव के समय इन लोगों द्वारा दायर शपथ-पत्र में दर्ज संपत्ति के ब्योरे में 198 से 1120 फीसद तक अप्रत्याशित बढ़ोतरी दिखायी गयी है. ये पांचों लोग भाजपा के हैं, जिनमें से चार अभी भी विधायक हैं. अमर बाउरी ने 2014 में अपनी संपत्ति 7.33 लाख दिखायी थी, जबकि 2019 में 89.41 लाख बतायी. रणधीर सिंह ने 2014 में अपनी संपत्ति 78.95 लाख दिखायी थी, जबकि 2019 में पांच करोड़ बतायी. नीरा यादव ने 2014 में अपनी संपत्ति 80.59 लाख बतायी थी, जबकि 2019 में 3.65 करोड़ बतायी. लुईस मरांडी ने 2014 में अपनी संपत्ति 2.25 करोड़ दिखायी थी, जबकि 2019 में 9.06 करोड़ बतायी. नीलकंठ सिंह मुंडा ने 2014 में अपनी संपत्ति 1.46 करोड़ बतायी थी, जबकि 2019 में 4.35 करोड़ दिखायी. हाईकोर्ट ने सरकार को जांच का आदेश दिया था. सरकार के निर्णय के तीसरे दिन 28 जुलाई को विधानसभा का छह दिनी मानसून सत्र प्रारंभ होनेवाला है. सरकार का निर्णय विपक्ष के शोर मचाने और सत्ता पक्ष द्वारा चोर मचाये शोर चिल्लाने के लिए काफी है. दिल्ली से लेकर रांची तक के विधानमंडल की दशा-दिशा का गवाह बन रहा है अमृत काल. कहां, अमृत काल यानी आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष द्वारा देश/राज्य को दिन दूनी, रात चैगुनी तरक्की की राह पर ले जाने का जरिया तलाशना चाहिए था, कहां, दोनों आपस में ही उलझे रहते हैं. तरक्की का आलम यह कि कोई आयुष्मान कार्ड दिखाता है तो कोई मुफ्त सौ यूनिट बिजली. कोई पांच साल में हजार गुणा से अधिक अर्जित कर ले रहा है तो कोई फोटो खिंचाकर पांच रुपये में चावल, दाल, चोखा खाने को अभिशप्त है. 2019-20 के बाद देश भर में सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष के बीच दुश्मनी की हद तक विभाजक रेखा खिंच गई है. इसका खुल्लमखुल्ला प्रदर्शन उच्च संवैधानिक पदों पर आसीन राजनेता सरकारी समारोहों में भी करने में नहीं हिचकिचाते. यह जहर गांव-गिरांव तक फैल गया है. जिस मणिपुर पर संसद में खुली चर्चा नहीं हो पा रही, उसी मणिपुर पर यूरोपीय यूनियन, इंग्लैंड और अमेरिका तक टीका-टिप्पणी हुई. मणिपुर का प्रभाव मिजोरम, नगालैंड, असम, मेघालय जैसे पूर्वोत्तर राज्यों पर पड़ने लगा है. विधानमंडल पर हर दिन जनता की गाढ़ी कमाई का भारी-भरकम खर्च होता है. अमृतकाल में भी क्या इस पर आम अवाम के रहनुमाओं का ध्यान कभी जाता है? यदि जाता ही तो 138 करोड़ में से 80 करोड़ आबादी मुफ्त पांच किलो अनाज लेने के लिए बेचैन क्यों रहती? विधायक/सांसद तो बहुत-बहुत ऊंची चीज हो गये, वार्ड काउंसलर बनते ही कोई महान क्यों बन जाता है? समाधान अकेले चुनाव नहीं है, अमृत-मन से विधानमंडल सुविचारित कदम उठाते तो निश्चय ही अमृत काल में ये समस्याएं न रहतीं, न उठाई जातीं. काश! जवाबदेह बनकर अमृत काल राजनीतिक गदर के बजाय समदर्शिता की मिसाल बनाया जा पाता तो नगालैंड में महिला आरक्षण के मसले पर 25 जुलाई को ही सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एसके कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ को यह नहीं कहना पड़ता कि आप अपनी पार्टी की सरकारों पर कार्रवाई क्यों नहीं करते, जबकि अन्य पर अतिवादी रुख अपनाते हैं. देश की सबसे बड़ी अदालत का यह सवाल हर किसी की आंख खोलने के लिए काफी है, क्योंकि आज इनकी तो कल उनकी बारी ही लोकशाही है. डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं. [wpse_comments_template]  

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