Ranchi: पिता की मौत के बाद औलिया कुजूर को मां ने सुमन प्रकाश एक्का के बच्चे को पालने के लिए दिल्ली भेज दिया था. किताबों की तरफ औलिया के आकर्षण को देख कर सुमन प्रकाश जी ने अपने बच्चे के साथ दिल्ली नगर निगम(MCD) के स्कूल में एडमिशन करा दिया. मुश्किलों का सामना करते हुए पढ़ाई जारी रखी. अब वह JNU से PHD कर रही हैं. उनके शोध का विषय है” आदिवासी केंद्रित उपन्यासों में पितृसत्तात्मक और पर्यावरणीय हिंसा की अभिव्यक्ति(1980-2024 तक).
औलिया 15 साल बाद अपने गांव पहुंची हैं. अपनी पुश्तैनी जमीन का लगान रसीद के लिए अंचल कार्यालय का चक्कर काटने के बाद वह कहती हैं कि राज्य गठन के बाद शहरों में बैठकर जैसा सोचा जाता है जमीनी हकीकत वैसी नहीं है.
औलिया कुजूर, गुमला जिले के चैनपुर थाना के नतापोल गांव की रहने वाली है. उनके पिता का नाम रामजन कुजूर और मां का नाम बलमदीना कुजूर है. पिता की मौत के बाद परिवार के सामने आर्थिक परेशानियां पैदा हुई. मां ने विधवा पेंशन पाने की कोशिश की. लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली.
परिवार पर आर्थिक बोझ कम करने के लिए उन्होंने औलिया को सुमन प्रकाश एक्का के साथ यह कहते हुए दिल्ली भेज दिया कि इन्हें तुम चाचा-चाची समझना. उनको एक बाबू हुआ है. तुम्हें उसी बाबू के पास रहना है. उसे देखना है. उसके साथ खेलना है. मां के कहने पर औलिया सुमन प्रकाश के साथ दिल्ली चली आयीं. सुमन प्रकाश भी कूरियर कंपनी में काम करते थे. उनकी पत्नी लोगों के घर में काम करती थी.
सुमन प्रकाश का बच्चा सुदीप एक्का जब थोड़ा बड़ा हुआ, तो उसके लिए पढ़ने की किताबें आयीं. औलिया भी इन किताबों की तरफ आकर्षित हुई. इसे देखकर सुमन प्रकाश ने औलिया से पढ़ाई के सिलसिले में पूछा. औलिया ने भी स्कूल जाने की इच्छा जतायी. इसके बाद दोनों MCD के स्कूल में जाने लगे. औलिया की उम्र ज्यादा थी. इसलिए उनका एडमिशन क्लास-थ्री में हुआ.
पांचवी के बाद औलिया का एडमिशन बच्चन प्रसाद सर्वोदय कन्या विद्यालय में करा दिया गया. यहां से उन्होंने 2014 मैट्रिक और 2016 में इंटर पास किया. पढ़ाई के खर्चे को पूरा करने के लिए उन्होंने 10वीं की अपनी पढ़ाई के दौरान ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया. 12वीं के बाद उनका एडमिशन DU के शहीद भगत सिंह कॉलेज में हुआ. यहां से ग्रजुएशन के बाद PG के लिए जीसस एंड मैरी कॉलेज में एडमिशन कराया.
MA करने के बाद JNU का रूख किया. फिलहाल JNU से PHD कर रही हैं. अभी PHD का तीसरा वर्ष है. रिसर्च के दायरे में आदिवासी और ग़ैर आदिवासी लेखकों के उपन्यासों और झारखंड,राजस्थान,असम सहित अन्य राज्यों के आदिवासियों को शामिल किया है. NET क्वालिफ़ाई कर लिया है. रिसर्च के लिए Fellowship भी मिला हुआ है. इसलिए पढ़ाई में अब आर्थिक परेशानिंया दूर हो गयी हैं.
करीब 15 वर्षों के बाद वह अक्टूबर 2025 में अपने गांव पहुंची हैं. इसके बाद से अपनी पैतृक जमीन का लगान रसीद कटवाने के लिए अंचल कार्यालय के चक्कर लगा रही थीं. ज़मीन के ऑनलाइन ब्योरे में प्लॉट नंबर नहीं चढ़ाया गया था. अंचल कार्यालय का चक्कर लगाने के दौरान आठ नवंबर को उनकी मुलाक़ात DRDA को निदेशक विद्याभूषण कुमार से हुई. वह अंचल कार्यालय का निरीक्षण करने पहुंचे थे. उन्होंने औलिया की समस्या सुनी और उसका समाधान कर दिया.
औलिया ने कहा कि शिक्षा व जागरूकता के अभाव में कई लोग तमाम नीतियों व योजनाओं से आज भी वंचित हैं, जिसका प्रभाव उनकी आर्थिक व शैक्षणिक व्यवस्था पर पड़ता है.
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