Ranchi: निजी स्कूल संचालक अभिभावकों से पैसे वसूलने के लिए नए हथकंडे अपना रहे हैं. आज के समय बच्चों का भविष्य बनाने में स्कूल अहम भूमिका निभाते हैं. अभिभावक अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. वहीं प्राइवेट स्कूल संचालकों के लिए शिक्षा बिजनेस का खुला मार्केट बन चुका है. अलग-अलग तरीकों से पेरेंट्स से पैसे निकलवाए जा रहे हैं. न्यू सेशन को लेकर कॉपी-किताब और यूनिफॉर्म की मार झेल रहे पेरेंट्स से अब एक्टिविटी और स्मार्ट बोर्ड के नाम पर पैसे वसूले जा रहे हैं.
हर महीने स्कूलों में कोई न कोई फंक्शन, कॉम्पटीशन या अन्य कोई इवेंट होते हैं, जिसमें पेरेंट्स से चार्ज के रूप में बच्चों को पैसे लाने को कहा जाता है. लगभग सभी स्कूलों की यही कहानी है. इसे लेकर जानिए क्या कहते है रांची के अभिभावक और स्कूल के प्रिंसिपल.
रीमा सिंह (अशोक नगर), अभिभावक
स्कूल का नाम न बताने की शर्त पर अशोक नगर की रहने वाली रीमा सिंह ने कहा कि उनकी बेटी कक्षा चौथी और बेटा कक्षा एक में गया है. उन्होंने कहा कि स्कूल छोटी क्लास के बच्चों की एक्टिविटी के नाम पर बहुत खर्च करवाते हैं. क्लास 4 में बेटी को फैंसी ड्रेस कॉम्पटीशन में फेयरी बनना था, 500 रुपए के अलावा घर से शूज, एक्सेसरीज समेत कई चीजों के लिए मार्केट में भटकना पड़ा. 500 रुपए के अलावा करीब एक हजार रुपए और खर्च हो गए. वहीं बेटे को भी एक प्रतियागिता में शामिल होना था, उसके लिए भी विभिन्न सामानों में करीब एक हजार रुपए खर्च हो गए. सिर्फ एक्टिविटीज के नाम पर सालाना पांच से सात हजार रुपए खर्च हो जा रहे हैं. स्कूल को इसके बारे में विचार करना चाहिए.
रमेश सिंह (रातू रोड), अभिभावक
रातू रोड के रहने वाले रमेश सिंह ने कहा कि आजकल स्कूल मैनेजमेंट अलग-अलग एक्टिविटीज के नाम पर ज्यादा खर्च करवा रहे हैं. स्कूल का नाम न बताते हुए उन्होंने कहा कि मेरा बेटा कक्षा दूसरी का छात्र है. उसके स्कूल में फूड एक्टिविटी हुई. बच्चों को दो दिन पहले बताया गया कि कोई एक फूड उसे बनाना है, और इसका सारा सामान घर से लेकर आना है. बेटे को पनीर सेंडविच बनाना था. घर में सैंडविच का पूरा सामान नहीं था, बाजार से सामान अरेंज किया. इसके बाद बच्चे को सामान देकर स्कूल भेजा. इससे क्लास दो के बच्चे को क्या लाभ मिला समझ नही आया. उन्होंने कहा कि ऐसे एक्टिविटी स्कूल वाले हर हफ्ते करते रहते हैं. कई बार तो ठीक है. पर हमेशा होने से पेरेंट्स को दिक्कत होती है.
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अशोक कुमार, प्रिंसिपल , डीएवी आलोक (पुंदाग)
डीएवी आलोक के प्रिंसिपल अशोक कुमार से बात करने पर उन्होंने बताया कि अलग-अलग पेरेंट्स अलग तरह की बात करते हैं. पहले पैरेंट्स अपने बच्चे को शहर के सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ना चाहते हैं, उसके बाद बच्चे का एडमिशन भी उस स्कूल में हो जाता है. उसके बाद स्कूल डिमांड करना शुरू करता है, उस पर पैरेंट्स को दिक्कत होती है. प्रिंसिपल अशोक कुमार ने कहा कि पैरंट्स को समझना चहिए कि सभी स्कूल सीबीएसई एफिलिएटेड होते हैं. कई बार एक्टिविटीज सीबीएसई के द्वारा दी जाती है. और कई बार बड़े-बड़े ब्रांड वाले स्कूल से. उन्होंने कहा कि पैरंट्स अपनी मर्जी से अपने बच्चे को बड़े ब्रांड वाले स्कूल भेजते हैं. फिर परेशान होते हैं, जो गलत है.