Ranjeet Kumar
Ranchi : राज्य में झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण संशोधन अधिनियम 2017 झारखंड के सभी निजी स्कूलों पर प्रभावी है और अधिनियम की कंडिका 7 (1) में स्पष्ट रूप से लिखा है कि हर स्कूल के अंदर शुल्क निर्धारण समिति का गठन अनिवार्य रूप से किया जाना है. इसमें अभिभावक के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे और उस समिति के अनुशंसा पर ही कोई शुल्क की बढ़ोतरी की जा सकती है. उसमें भी यह प्रावधान है कि शुल्क को 2 वर्ष के अंदर 10 प्रतिशित से ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता. इसके बाद अगर शुल्क में बढ़ोतरी की जा रही है, तो उसकी अनुशंसा जिला कमिटी के पास की जाएगी. इसके अध्यक्ष संबंधित जिले के उपायुक्त होंगे. यह कमिटी अभी तक फंक्शन में नहीं आयी है. इसका फायदा राज्य के निजी स्कूल उठा रहे हैं और मनमाने तरीके से शुल्क बढ़ा रहे हैं.
जब इस कमिटी गठन के बारे शिक्षा निदेशक हर्ष मंगला से बात की, तो उन्होंने बताया कि कमेटी गठन की फाइल विधि विभाग को भेजी है. फाइल वहां से आते ही गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी.
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जानें, अभिभावकों की क्या है परेशानी
कोरोना संक्रमण ने देश की अर्थव्यवस्था को झकझोर कर रख दिया है. कई अभिभावकों की आय के स्रोत कम हो गए हैं. इस कारण वे अपने बच्चों की भारी भरकम स्कूल फीस देने में असमर्थ हो गए हैं, लेकिन लगता है कि रांची के कई गब्बर टाइप स्कूल की योजना उनके बचे-खुचे पैसों को हड़प जाने की है. लगता है कि सरकार ने भी इस मामले पर आंखे मूंदकर उन्हें समर्थन दे रखा है. सरकार के आदेश की धज्जियां उड़ाने वाले स्कूलों की सूची में ऑक्सफोर्ड पब्लिक स्कूल, संत माइकल स्कूल, संत एंथोनी स्कूल, संत फ्रांसिस स्कूल, सुरेंद्रनाथ सेंटेनरी स्कूल, ब्रिजफोर्ड स्कूल, होली फैमिली चाइल्ड स्कूल और लोयला स्कूल आदि हैं.
पिछले साल सरकार ने जो आदेश जारी किया था, जानें प्रमुख बिंदुओं को
झारखंड सरकार ने पिछले वर्ष अभिभावको और स्कूलों से वार्ता करने के बाद 25 जून 2020 को एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया था. राज्य सरकार के आदेश में सीबीएसई के पत्र और झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण अधिनियम के आलोक मे निर्द्श जारी किए गए थे, जिसमें कुल नौ बिंदु थे. निर्देश के पांचवें बिंदु में यह स्पष्ट लिखा गया है कि स्कूल बंद रहने की अवधि तक किसी भी प्रकार का वार्षिक शुल्क, यातायात शुल्क या अन्य किसी भी प्रकार का शुल्क अभिभावकों से नहीं लिया जाएगा. उक्त से संबंधित शुल्क विद्यालय में पुन: शिक्षण कार्य प्रारंभ होने के बाद समानुपातिक आधार पर अभिभावकों से ली जा सकेगी. लेकिन राज्य के ख्याति प्राप्त स्कूलों ने सरकार के इस बिंदु को कोई तवज्जो नहीं देते हुए ट्यूशन फीस के अतिरिक्त बिल्डिंग चार्ज, डेवलपमेंट चार्ज, मेडिकल चार्ज, स्पोर्टस डे, सिक्यूरिटी चार्ज के रूप में भी भारी भरकम राशि वसूल की.
वहीं तीसरे बिंदु में अंकित है कि किसी भी परिस्थिति में शिक्षण शुल्क जमा नहीं करने के कारण किसी छात्र का नामांकन रद्द नहीं किया जाएगा और ऑनलाइन शिक्षण व्यवस्था की सुविधा से वंचित नहीं किया जाएगा. अभिभावकों के शुल्क जमा करने के बाद भी अधिकतर स्कूलों ने बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा से वंचित कर दिया. क्योंकि वे अतिरिक्त राशि जमा नहीं जमा कर सके थे. अपने बच्चो को ऑनलाइन शिक्षा से वंचित करने से दुखी कई अभिभावक रांची उपायुक्त से इस मामले में कार्रवाई की मांग कर चुके हैं, जबकि सरकार के आदेश के सातवें बिंदु में यह लिखा है कि विद्यालय में कार्यरत शिक्षक या शिक्षेकतर कर्मचारियों के वेतनादि में किसी प्रकार की कटौती नहीं की जाएगी. जबकि अधिकतर स्कूल अपने शिक्षको और अन्य कर्मियों को आधी सैलरी दे रहे हैं.
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प्राइवेट स्कूलों के सामने सरकार हैं लाचार
सरकार के आदेश के आखिरी बिंदु में इस बात का उल्लेख किया गया है कि उपरोक्त निर्देशों का पालन नहीं करने की स्थिति में संबद्धता के लिए राज्य सरकार द्वारा निर्गत अनापत्ति प्रमाण पत्र रद्द या पुनर्विचार किया जाएगा और आवश्यकतानुसार विधि सम्मत कार्रवाई की जाएगी. जबकि राज्य के तथाकथित बड़े स्कूल खुलेआम सरकार के नियमों का माखौल उड़ाते रहे. सरकार ने किसी भी स्कूल पर कार्रवाई करने की जहमत नहीं उठायी.