Search

पंचायतों में जनता की सरकार बने, न कि ठेकेदारों की- मंच

Chaibasa: झारखंड गठन के बाद त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थानों के कार्यकाल का 10 वर्ष होने को है. लेकिन अभी भी योजनाओं के क्रियान्वयन में अफसरशाही हावी है. पंचायती राज बहाल होने के बाद भी प्रखंड कार्यालय ही शासन का केंद्र बना हुआ है. ग्रामीणों को अभी भी अपने काम को लेकर प्रखंड कार्यालयों का चक्कर लगाना पड़ता है. राज्य में पंचायती राज संस्था विकेंद्रीकरण के नाम पर मजाक बनती जा रही है.

अफसरों की मनमानी पर लगे लगाम

आज भी अफसर मनमानी और गैर जवाबदेह तरीके से काम कर रहे हैं. ग्राम सभाओं को सशक्त करने की जगह अपने इशारों पर चलाने की कोशिश करते हैं. इस पूरे मामले को लेकर पांचवी अनुसूची क्षेत्र में आज भी प्रशासन का विरोध और आक्रोश देखा जा सकता है. गांव के विकास और पंचायतों को समृद्ध करने के नाम पर ग्रामसभाओं को दरकिनार करने का काम पिछले 10 सालों में हुआ है.

स्वशासन व्यवस्था बहाल करने की मांग

हाल के दिनों में पंचायत चुनाव के विरोध में स्वर उठने लगे हैं. पांचवी अनुसूची क्षेत्र में पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था बहाल करने की मांग की जा रही है. त्रिस्तरीय पंचायती राज एक विकेंद्रीकृत विकास की अवधारना है. जो राज्य में पिछले 10 सालों में पूरा नहीं हुआ. कई संगठनों का मानना है कि चुनाव से पूर्व राज्य सरकार कुछ ठोस पहल करे जिससे स्थानीय स्वशासन व्यवस्था मजबूत हो. इस मांग को लेकर राज्य सरकार को पश्चिमी सिंहभूम के स्थानीय जनसंगठन खाद्य सुरक्षा जन अधिकार मंच ने कुछ अहम विषयों को रखा है. जिसमें झारखंड पंचायती राज अधिनियम को पेसा, पांचवी अनुसूची प्रावधानों एवं पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था के अनुरूप संशोधित किया जाए. सभी विभागों का पूर्ण विकेंद्रीकरण कर ग्राम सभा व पंचायत के हवाले करना चाहिए. पेसा कानून की नियमावली बनाकर कानून को पूर्ण रूप से लागू किया जाए. सरकार की ओर से अगर इन सुझावों को अमल में लाया जाता है तो योजना में भ्रष्टाचार की व्यवस्था पर चोट होगा. जिससे गांव का विकास सिर्फ कागजों पर न रह कर धरातल पर भी दिखेगा. NOTE: त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थानों की झारखंड के विकास में भूमिका और 10 सालों के अनुभव क्या हैं, आपकी राय हमें 300 शब्दों में Lagatar.in">http://lagatar.in">Lagatar.in

पर भेजें.
 

Comments

Leave a Comment

Follow us on WhatsApp