बैजनाथ मिश्र
रक्षाबंधन से पहले राहुल गांधी एटम बम फोड़ने वाले हैं. इसका विस्फोट इतना भयानक होगा कि निर्वाचन आयोग तिनके की तरह बिखर जाएगा. ऐसा स्वयं राहुल ने कहा है. उनका कहना है कि उनके पास ऐसे परिष्कृत कागजात उपलब्ध हैं जिनके विस्फोट से नरेंद्र मोदी के लिए वोटों की चोरी करने-कराने वाले निर्वाचन आयोग की चूलें हिल जायेंगी.
वैसे तो राहुल महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों में आयोग की पक्षधरता से पहले ही खफा थे, उपर से बिहार में सघन मतदाता पुनरीक्षण जैसी कार्यवाही से उनकी भृकुटि तन गई है. इसलिए वह निर्वाचन आयोग नामक विषाणु को सदा सर्वदा के लिए खत्म कर देना चाहते हैं ताकि संविधान और लोकतंत्र की रक्षा की जा सके. न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी.
यह विस्फोट थोड़ा पहले ही हो जाता लेकिन गुरुजी यानी शिबू सोरेन के देहावसान के कारण तारीख आगे सरका दी गई हैं. देखना है कि यह बम सचमुच आयोग पर हिरोशिमा-नागासाकी जैसा असर डालता है या मिर्ची बम साबित होगा है.
हालांकि राहुल जी इन दिनों बेहद खुश हैं. अपनी खुशी का इजहार भी उन्होंने खुद किया है. उनका मानना है कि देश की अर्थव्यवस्था के बारे में जो बात वह पिछले दस साल से कह रहे हैं, वही हकीकत डोनाल्ड ट्रंप ने बयां कर दी है. ट्रंप का कहना है कि भारत की अर्थव्यवस्था मृतप्राय है. इससे राहुल को इतनी खुशी मिली है कि दिल में अट नहीं पा रही है. राहुल लगातार कहते रहे हैं देश की अर्थव्यवस्था रसातल में चली गई है. सरकार केवल अडानी की चिंता करती है, उसे देश की कतई परवाह नहीं है. बड़े दिनों के बाद उनके पक्ष में दुनिया का सबसे बड़ा नेता गवाही दे रहा है.
ट्रंप मोदी के दोस्त हैं और दोस्तों में कोई बात चल जाती है तो दोस्ती दुश्मनी में बदल जाती है. अब आएगा ऊंट पहाड़ के नीचे. अर्थव्यवस्था को लेकर मोदी और उनके पिछलग्गू बहुत आंकड़ेबाजी कर रहे थे. ट्रंप के आगे ये आंकड़े पानी भरते दिखेंगे और राहुल की बल्ले बल्ले हो जाएगी. यही मौका और दस्तूर है. जब दुश्मन कई मोर्चों पर उलझा हो तो उस पर निर्णायक प्रहार कर उसे जमींदोज कर देना चाहिए. हालांकि खुद कुछ बेवकूफ कांग्रेसी ट्रंप को ही लताड़ने में लग गये हैं. उनकी राष्ट्र भक्ति कुलांचें भरने लगी है. इनमें कुछ ऐसे भी हैं जो मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों की ढ़ाल की निरंतरता को आधार बनाकर मोदी का बचाव कर रहे हैं. इन्हें कौन समझाए कि सत्ता के बिना राष्ट्र भक्ति बेमानी है.
खैर राहुल गदगद हैं. उन्हें किसी की परवाह नहीं है. वह नेता ही क्या जो अपनी आदत बदल दे और संकल्प छोड़ दे. इसलिए विस्फोट तो होगा और दोहरा होगा. लेकिन इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया है कि राहुल सच्चे भारतीय नहीं हैं, अन्यथा वह यह नहीं कहते कि चीन ने हमारी जमीन हथिया ली है और उसके सैनिकों ने हमारे सैनिकों को अरूणाचल में पीटा था. कोर्ट ने राहुल से इस बाबत प्रमाण भी मांग लिया. लेकिन प्रमाण होता तो राहुल पर केस ही क्यों होता? प्रमाण होता तो कोर्ट के मुंह पर नहीं मार देते.
नेताओं से प्रमाण मांगना सरासर नाइंसाफी है. नेता बोलते हैं. अधिकतर निराधार, धाराप्रवाह बोलते हैं. यह अधिकार उन्हें संविधान ने दिया है. इसे कहते हैं वाक् स्वतंत्रता का अधिकार. बोलने की आजादी का आजादी. कानून की निगाह में यह अधिकार असीम भले ही ना हो, लेकिन वह नेता कैसा जो सीमाएं तोड़ न दे. सीमा नहीं तोड़ेगा तो क्रांतिकारी कैसे कहलाएगा. क्रांतिकारी नहीं कहलाएगा तो खाक इज्जत रहेगी.
सपूत हमेशा लीक तोड़कर चलते हैं. वे अपनी राह खुद बनाते हैं. राहुल बना रहे हैं तो कोर्ट नाहक टिप्पणियां कर रहा है. सावरकर के खिलाफ बोलो तो कोर्ट बिगड़ जाता है, गोडसे को संघी बताना भी गलत बताया जा रहा है. आये दिन राहुल को किसी न किसी अदालत में पेश होना पड़ रहा है. जो चाहे मुंह उठाये चला आता है और राहुल पर मुकदमा ठोंक देता है.
वह विपक्ष के सबसे बड़े नेता हैं. उनसे ठाकुरसुहाती की अपेक्षा कोई कैसे कर सकता है. वह बलिदानी खानदान के हैं. आजादी की लड़ाई लड़ने वाली पार्टी का भविष्य हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि कोर्ट भी मोदी से मिला हुआ है या उनसे डरता है. कोर्ट कौन होता है यह कहने वाला कि कौन सच्चा भारतीय है, कौन नहीं.
जब भारतीय होने न होने पर बिहार में रगड़ा चल रहा है, तब नया शिगूफा क्यों? यह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है. लोकतंत्र की सलामती के लिए विपक्ष को कुछ भी बोलने-करगुजरने की छूट मिलनी ही चाहिए. अन्यथा अभी तो राहुल निर्वाचन आयोग के खिलाफ बम फोड़ने वाले हैं, एक दिन न्यायपालिका के विरुद्ध भी विस्फोट कर बैठेंगे और उसे उसकी सर्वोच्चता का भान जरुर करायेंगे.
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