Ravi Chourasia
Dhanbad : धनबाद के मुसलमानों के लिए भगवान श्रीराम अपने जैसे हैं. इसकी बानगी हर साल रामनवमी में देखने को मिलती है. कोई जुलूस में सशरीर शामिल होता है, तो कोई वर्षों से झंडा बनाकर राम की सेवा. शहर में महावीरी झंडों के लिए छोटे-बड़े बांस की व्यवस्था भी ज्यादातर मुसलमान ही करते आ रहे हैं.
श्रीराम का झंडा बुलंद कर रहे मो. उस्मान और अजीज
धनबाद जिले के गोविंदपुर बसुरिया निवासी मो. उस्मान अंसारी व टुंडी के फतेहपुर में रहने वाले मो. अजीज अंसारी (60 वर्ष) हर साल रामनमवी पर निकलने वाले महावीरी झंडे के लिए बांस बेचकर कमाई करते हैं. धनबाद के पूर्वी टुंडी फतेहपुर के रहने मो. उस्मान कहते हैं कि हिंदू व मुस्लिम अलग नहीं हैं. हम एक परिवार की तरह हैं और एक-दूसरे के धर्म और देवी- देवताओं का सम्मान करते हैं. वे पैसे कमाने के लिए नहीं, बल्कि सेवा भाव से बांस बेचते हैं. जितनी लागत बांस को खरीद कर शहर तक लाने में लगती है, उसमें 2 से 3 हज़ार रुपए की ही कमाई होती है. वहीं, टुंडी के मो. अजीज अंसारी कहते हैं कि वे पिछले 5 वर्षों से रामनवमी पर झंडे के लिए बांस बेच रहे हैं. इसमें धर्म आड़े नहीं आता. उनका मानना है कि हम सब ईश्वर की संतान हैं. आपस में मिल-जुलकर दोनों समुदायों को भाईचारे के साथ त्योहार मनाना चाहिए. अजीज अंसारी की रामनवमी से करीब 5 दिन पहले धनबाद में बांस की दुकान लग जाती है. इन पांच दिनों में 6 से 7 हजार रुपए तक की कमाई हो जाती है. .
25 वर्षों से महावीरी झंडा बना रहे लड्डू भाई
धनबाद के बैंक मोड़ पुराना बाजार स्थित अपनी छोटी सी दुकान में सलीम अख्तर उर्फ लड्डू भाई पिछले 25 वर्षों से रामनवमी के लिए महावीरी झंडे बना रहे हैं. दुकान हर साल रामनवमी से तीन महीने पहले से ही गुलजार हो जाती है. लड्डू भाई का पूरा परिवार झंडे बनाने में तल्लीन रहता है. यहां छोटे-बड़े हर साइज के झंडे तैयार किए जाते हैं, ताकि कोई भी हनुमान भक्त खाली हाथ नहीं लौटने पाए. झंडे की खूबसूरती व गुणवत्ता का भी पूरा ख्याल रखा जाता है. परिवार हर साल करीब 1500 महावीरी झंडे बनाता है. लड्डू भाई कहते हैं कि झंडों की बिक्री से रामनवमी में 20 से 25 हजार रुपए की आमदनी हो जाती है.
हर साल शस्त्र प्रदर्शन में भाग लेते हैं हीरापुर के मो. मोशिम
धनबाद के हीरापुर में रहनेवाले मो.मोशिम हर साल रामनवमी पर निकलने वाले जुलूस में भाग लेते हैं और शस्त्र प्रदर्शन में करतब भी दिखाते हैं. वह 72 साल पुरानी श्रीश्री रामनवमी अखाड़ा समिति हीरापुर हटिया से स्थापना काल से जुड़े हैं. मो. मोशिम बताते हैं कि उम्र के 70 दशक पार कर चुके हैं, लेकिन रामनवमी में आज भी उत्साह 9 साल के बच्चे जैसा है. पूरे जोश के साथ शस्त्र प्रदर्शन करते हैं. साल भर से इस पर्व का इंतजार रहता है. पहले साथ मिलकर तैयारी करते थे. अब ढलती उम्र के कारण उतना नहीं हो पाता. लेकिन अखाड़ा का अभ्यास करना, हरिमंदिर में एकत्रित होकर करतब दिखाना यह सब याद कर मन को काफी सुकून मिलता है. पहले हिंदू और मुसलमान मिलकर एक-दूसरे का पर्व मनाते थे. ईद, होली और रामनवमी की खुशी एक जैसी होती थी.अब तो बस परंपरा निभा रहे हैं.
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