Hazaribagh : विदेशों में मेहनत करने गये प्रवासी मजदूरों की ज़िंदगी सिर्फ काम के दौरान ही नहीं, मौत के बाद भी मुश्किलों से घिरी होती है. इसका ताज़ा उदाहरण है हजारीबाग जिले के बंदखारो गांव निवासी रामेश्वर महतो, जिनकी मौत 15 जून 2025 को कुवैत में हो गयी थी. लेकिन एक महीना बीत जाने के बाद भी उनका शव अब तक भारत नहीं लाया जा सका है.
रामेश्वर महतो विष्णुगढ़ थाना क्षेत्र के जोबार पंचायत अंतर्गत आते हैं. उनकी मौत के बाद से परिजन हर दिन अंतिम दर्शन की उम्मीद में टकटकी लगाए बैठे हैं, लेकिन अब तक उन्हें न शव मिला, न ही कंपनी की ओर से कोई मुआवजा या मदद का आश्वासन मिला है.
परिजन बेहाल, सरकार से मदद की गुहार
परिजनों का कहना है कि वो अपने बेटे के शव को लाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं, लेकिन अब तक कोई मदद नहीं मिली है. उनके लिए न रोज़गार बचा, न ही मानसिक शांति. रामेश्वर की मौत के बाद उनके घर में चूल्हा तक नहीं जला, परिवार गहरे संकट में है.
समाजसेवी कर रहे हैं प्रयास
प्रवासी मजदूरों के मुद्दों पर काम करने वाले समाजसेवी सिकंदर अली लगातार इस मामले को सुलझाने में जुटे हैं. उन्होंने बताया कि गिरिडीह, बोकारो और हजारीबाग के हजारों मजदूर खाड़ी देशों में काम कर रहे हैं. लेकिन मौत के बाद शव लाना और मुआवजा दिलाना एक बड़ी चुनौती बन जाता है.
सरकार से ठोस नीति की मांग
सिकंदर अली ने कहा,जब तक सरकार इस पर सख्त नीति नहीं बनाती, तब तक हर साल सैकड़ों मजदूरों के शव विदेशों में अटके रहेंगे. मुआवजा की प्रक्रिया को पारदर्शी और तेज़ करने की ज़रूरत है.