Vijay Kumar Gope
Ranchi : राजधानी रांची से महज 8 किलोमीटर दूर बोड़ेया बस्ती कृष्ण भगवान का प्राचीन मंदिर स्थित है. जो मदन मोहन मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में पूजा करने से भक्तों की हर मनोकामनाएं पूर्ण होती है. इस मंदिर में दूर- दूर से लोग पूजा करने आते है. ऐसा कहा जाता है कि वृंदावन की परंपरा के अनुरूप पूजा की जाती है.
बता दें कि आज पूरा देश भगवान विष्णु के कृष्ण अवतार का जन्मोत्सव मना रहा है. हिंदू पंचांग के मुताबिक भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को प्रभु श्री कृष्ण ने धरती में जन्म लिया था और कई चमत्कार किया था. इसलिए इस दिन भक्त काफी उत्साह के साथ भगवान कृष्ण के आगमन की तैयारी करते है.
बोडेया के मदन मोहन मंदिर की मान्यता है कि इस गांव के लोग किसी भी शुभ काम से पहले मंदिर में जाकर पूजा- अर्चना करते है. इस मंदिर की स्थापना लक्ष्मी नारायण तिवारी ने 1665 में कराया था.
इस मंदिर में राधा कृष्ण की प्रतिमा विराजमान है. जिसकी पूजा वृंदावन की परंपरा के अनुरूप होती है. इस मंदिर की कई मान्यताएं हैं. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर के नवविवाहित जोड़ा प्रभु से आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं. उसी दिन नवविवाहित वधू गर्भ ग्रह में प्रवेश करती है. इसके बाद कभी भी उन्हें गर्भगृह में प्रवेश की इजाजत नहीं होती है.
जन्माष्टमी के अलावे कई मौकों पर होता है भव्य आयोजन
इस मंदिर में जन्माष्टमी के मौके पर कई भव्य कार्यक्रम आयोजित किया जाता है. जन्माष्टमी के दिन भारी संख्या में लोग भगवान की दर्शन करने आते है. साथ ही इस दिन भजन- कीर्तिन किया जाता है. जन्माष्टमी के अलावा रास पूर्णिमा के अवसर पर भी विशेष कार्यक्रम का आयोजन होता है. होली पर्व के दिन ही राधा कृष्ण को मंदिर से बाहर निकाल कर चंदन स्नान कराया जाता है. जिसके पश्चात लोग प्रभु के चरण पर अबीर गुलाल चढ़ाकर होली महोत्सव मनाते हैं.
लक्ष्मी नारायण तिवारी ने 1665 में कराया था निर्माण
बताया जाता है कि इस मंदिर के निर्माण के पीछे एक अद्भुत कहानी है. आज से साढ़े तीन सौ साल पहले छोटा नागपुर में ब्राह्मणों की घोर कमी थी. उस वक्त रातू महाराज को पूजा पाठ कराने में ब्राह्मणों की कमी खलती थी. जिसको लेकर रातू महाराजा ने 56 ब्राह्मणों का जत्था यूपी के कनौती से बुलाया और छोटा नागपुर के अलग-अलग हिस्सों में बसाया. इसी में से एक जत्था रांची के बोड़ेया में बसा. लक्ष्मी नारायण तिवारी ने रातू महाराज की सेवा के लिए उन्हें आमंत्रित किया. महाराज ने भी उनके आमंत्रण को स्वीकार करते हुए जागरण में पहुंचे. जिनका सेवा संस्कार के बाद हाथी में सोना लाकर विदाई दिया गया. लेकिन महज हाफ किलोमीटर दूर जाते हैं सोना से लदा हाथी बैठ गया और उठ नहीं पाया. उस वक्त रातू महाराज को ब्राह्मण के द्वारा दिए गए उपहार अशुभ महसूस हुआ तो उन्होंने उपहार को लेने से इनकार कर दिया. जिसके बाद लक्ष्मी नारायण तिवारी ने उस उपहार को बेचकर मंदिर का निर्माण कराया. मंदिर का पूरा निर्माण पथल को उकेरकर की गई है. जो आज भी ज्यो का त्यों अथपित है.
356 साल पुराना है इस प्राचीन मंदिर का इतिहास
रांची के बोड़ेया में स्थित है मदन मोहन मंदिर पर सरकार का कोई ध्यान नहीं है. जिसकी वजह से अब तक इस मंदिर को राजकीय पहचान नहीं मिल पाई है. लिहाजा इस प्राचीन मंदिर की पहचान महज कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित रह गई है. कहा जाता है कि यह मंदिर रांची ही नहीं बल्कि झारखंड के प्राचीन मंदिरों में से एक है. कई बार आवेदन देकर ट्रस्ट बनाने की मांग संस्थापक के वंशजों द्वारा की गई, लेकिन अब तक इस दिशा में पहल करने की जहमत किसी ने नहीं उठाई. यही वजह है कि संस्थापक के वंसज ही मंदिर का संचालन करते आ रहे है.
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