Ranchi: स्थानीय समुदायों की पोषण सुरक्षा को बढ़ाने और गैर-कृषि वन खाद्य पदार्थों के महत्व को प्रदर्शित करने के लिए ग्रीनपीस इंडिया ने स्वदेशी आदिवासी भोजन का प्रदर्शनी किया. आजम एम्बा के सहयोग से स्वदेशी रसोइयों द्वारा तैयार स्वदेशी आदिवासी भोजन का प्रदर्शनी किया गया. कार्यक्रम में जलवायु परिवर्तन और झारखंड के आदिवासी व्यंजनों की समृद्ध आहार को प्रदर्शित किया गया. इस मौके पर पारंपरिक खाद्य प्रणाली में बाजरा, दाल और हजारों खाद्य पौधों को शामिल करने के महत्व पर जोर दिया गया. कार्यक्रम में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के लोग शामिल हुए.
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आदिवासी भोजन को पुनर्जीवित करना मिशन
इस मौके पर अरुणा तिर्की ने कहा कि देसी समुदाय के भोजन में जैसे अनाज, साग और फलों में सूक्ष्म पोषक तत्वों में कैल्शियम, आयरन, फोलेट, विटामिन ए और सी के प्रमुख स्रोत के रूप में पाया जाता है. आज के समय मे पारम्पारिक भोजन का कम उपयोग किया जाता है. आजम एम्बा का मिशन है कि स्थानीय स्वाद और गायब आदिवासी भोजन को पुनर्जीवित करना.
जंगली खाद्य पदार्थों में गिरावट: अर्थशास्त्री
अर्थशास्त्री और सामाजिक ज्यां द्रेज ने कहा कि खेती के चक्रों में बदलाव और जंगली खाद्य पदार्थों में गिरावट के कारण समुदायों ने बहुफसली से मोनोक्रॉपिंग सिस्टम में स्विच किया है. इससे स्थानीय भोजन की आदतों में बदलाव आया है. पहले पहाड़ और जंगल शानदार वनस्पतियों से भरे हुए थे. इस प्रचुर वातावरण में आदिवासी समुदायों ने अपने जीवन में अच्छी भोजन प्रणाली विकसित किया. इस खाद्य प्रणाली पारस्परिक सहायता से मजबूत तत्व के साथ स-थ अच्छे पोषण का स्रोत भी होता था. वही ग्रीनपीस इंडिया के वरिष्ठ कृषि प्रचारक रोहिन कुमार ने कहा कि बाजरा, दालों को खान पान में शामिल करके लोहे की कमी वाले एनीमिया को खत्म किया जा सकता है.
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