6 जुलाई को भगवान का नेत्रदान, 7 को रथयात्रा
Ranchi : रांची के प्रसिद्ध जगन्नाथपुर मंदिर में ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन शनिवार को भगवान जगन्नाथ का स्नान यात्रा अनुष्ठान वैदिक मंत्रोच्चार के बीच हुआ. महास्नान के बाद भगवान जगन्नाथ भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ 15 दिनों के एकांतवास में चले गए. पुजारी कौस्तुभ मिश्रा ने बताया कि भगवान पांच जुलाई तक एकांतवास में रहेंगे. इस दौरान उनका दर्शन सुलभ नहीं होगा. श्रद्धालु मंदिर में गणेश, माता लक्ष्मी, श्रीकृष्ण आदि देवताओं के दर्शन पूजन कर सकेंगे. आषाढ़ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानी छह जुलाई को भगवान का एकांतवास समाप्त होगा. विग्रहों को गर्भगृह से बाहर लाकर भगवान का नेत्रदान होगा. इसके बाद भगवान श्रद्धालाओं को दर्शन देंगे.
पुजारी ने बताया कि अगले दिन आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि यानी सात जुलाई को भाई और बहन के साथ भगवान जगन्नाथ रथ पर सवार होकर मौसी बाड़ी जायेंगे. सात जुलाई की शाम भगवान की रथयात्रा निकलेगी. भक्त भगवान का रथ खींचकर मौसीबाड़ी ले जाएंगे. नौ दिनों तक रथ मेला गुलजार रहेगा. 16 जुलाई को घुरती रथयात्रा निकाली जायेगी. भगवान मुख्य मंदिर लौटेंगे.
दर्शन को उमड़े श्रद्धालु, 108 दीपों से उतारी आरती
शनिवार को मंदिर में सुबह में दैनिक पूजन व आतरी हुई. दोपहर में भगवान को अन्न का भोग लगाया गया. दोपहर करीब एक बजे स्नान यात्रा अनुष्ठान प्रारंभ हुआ. मंदिर के पुरोहित कौस्तुभ मिश्रा, रामेश्वर पाढ़ी, श्रीराम मोहंती व सरयू मिश्रा ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच भगवान को 51-51 कलश में रखे 108 वनौषधियों व सुगंधित जल से स्नान कराया. दोपहर 1:35 बजे के बाद परंपरानुसार आदिवासी पाहन और श्रद्धालुओ ने भी दूध, जल, सुगंध आदि से प्रभु को स्नान कराकर विग्रहों का स्पर्श दर्शन किया. फिर पुरोहितों ने शृंगार-पूजन कर 108 मंगल दीपीं से जगत के पालनहार की आरती उतारी. श्री जगन्नाथ अष्टकम और जगन्नाथ गीता द्वादश अध्याय पाठ किया गया. बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने प्रभु के दर्शन-पूजन कर मंगल कामनाएं की और अन्न भोग का प्रसाद पाया. प्रथम सेवक सुधांशु नाथ शाहदेव, मंदिर समिति के सचिव मिथलेश कुमार, उपाध्यक्ष अशोक नारसरिया और कांग्रेस नेता आलोक दुबे ने इसमें मुख्य रूप से हिस्सा लिया. शाम चार बजे जयकारे के बीच विग्रहों को गर्भगृह ले जाया गया.
स्नान के बाद बीमार हुए भगवान
मान्यतानुसार भगवान जगन्नाथ स्नान करने के बाद बीमार पड़ जाते हैं. ऐसे में उनका उपचार किया जाता है. इस दौरान सोंठ, पिंपली, दाल चीनी, गोल मिर्च से बना विशेष काढ़ा भगवान को पिलाया जाता है.