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रांची : कहीं गाइड नहीं तो कहीं विभाग नहीं, जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा में पीएचडी करना कठिन

Rajnish Prasad Ranchi : झारखंड में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा से पढ़ाई करने वाले छात्रों को काफी मुश्किल हो रही है. झारखंड में कुल 8 विश्वविद्यालय हैं. इन आठों विश्वविद्यालय में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा की पढ़ाई नहीं होती है. कुछ विश्वविद्यालयों में इसके लिए विभाग का गठन का प्रयास किया जा रहा है, तो कुछ विश्वविद्यालय जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा मानविकीय संकाय के अंदर चल रहे हैं. जनजाति व क्षेत्रीय भाषा में एमए करने के बाद कई छात्र पीएचडी कर अपना करियर बनाना चाहते हैं, लेकिन रांची विश्वविद्यालय और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय को छोड़ दें, तो कहीं भी स्थायी शिक्षक नहीं हैं. जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा विभाग अधिकतर गेस्ट या कांट्रैक्चुअल सहायक प्राध्यापकों के भरोसे ही चल रहा है.

केवल तीन विभागों में ही स्थायी प्रोफेसर

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा विभाग में केवल तीन विभागों में ही स्थायी प्रोफेसर हैं. इनमें खोरठा, कुरमाली और कुरुख शामिल हैं. उसके बाद किसी भी विभाग में परमानेंट प्रोफेसर नहीं हैं. वहीं बात पीएचडी की करें, तो केवल दो प्रोफेसर ही पीएचडी करवाते हैं, जिनकी सीट भी फुल है. ऐसे में और विद्यार्थियों के साथ काफी दिक्कत होती है, जो नेट क्वालिफाई करके भी गाइड के लिए दर-दर भटक रहे हैं.

हो में एक भी स्थायी शिक्षक नहीं

रांची विश्वविद्यालय में झारखंड का सबसे पुराना विश्वविद्यालय है. इस विश्वविद्यालय में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा की अलग संकाय है. इस विश्वविद्यालय में नौ भाषाओं की पढ़ाई होती है. लेकिन सभी विभागों में स्थायी शिक्षक नहीं हैं. हो में एक भी स्थायी शिक्षक नहीं हैं. डॉ. यूएन तिवारी के अंदर 7, डॉ. सबिता के अंदर 8, शशिकला के अंदर 8, डॉ. गीता कुमारी के अंदर 8, डॉ. हरि उरांव के अंदर 8 और डॉ. राम किशन भगत के अंदर 8 छात्र पीएचडी कर रहे हैं.

विनोबा भावे विवि में केवल सर्टिफिकेट कोर्स

विनोबा भावे विश्वविद्यालय में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा में केवल सर्टिफिकेट कोर्स ही करवाया जाता है. जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा का कोई विशेष डिपार्टमेंट नहीं है. कोल्हान विश्वविद्यालय में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई होती है, लेकिन वहां एक भी स्थाई शिक्षक नहीं हैं. इस विश्वविद्यालय में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा का कोई विभाग नहीं है. बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय में कुरमाली में दो छात्र पीएचडी कर रहे हैं. बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा स्नातकोत्तर शुरू करने की प्रक्रिया की जा रही है. इसे भी पढ़ें रांची">https://lagatar.in/ranchi-order-for-action-in-the-case-of-theft-of-41-quintal-rice-from-kadru-warehouse/">रांची

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