केवल तीन विभागों में ही स्थायी प्रोफेसर
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा विभाग में केवल तीन विभागों में ही स्थायी प्रोफेसर हैं. इनमें खोरठा, कुरमाली और कुरुख शामिल हैं. उसके बाद किसी भी विभाग में परमानेंट प्रोफेसर नहीं हैं. वहीं बात पीएचडी की करें, तो केवल दो प्रोफेसर ही पीएचडी करवाते हैं, जिनकी सीट भी फुल है. ऐसे में और विद्यार्थियों के साथ काफी दिक्कत होती है, जो नेट क्वालिफाई करके भी गाइड के लिए दर-दर भटक रहे हैं.हो में एक भी स्थायी शिक्षक नहीं
रांची विश्वविद्यालय में झारखंड का सबसे पुराना विश्वविद्यालय है. इस विश्वविद्यालय में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा की अलग संकाय है. इस विश्वविद्यालय में नौ भाषाओं की पढ़ाई होती है. लेकिन सभी विभागों में स्थायी शिक्षक नहीं हैं. हो में एक भी स्थायी शिक्षक नहीं हैं. डॉ. यूएन तिवारी के अंदर 7, डॉ. सबिता के अंदर 8, शशिकला के अंदर 8, डॉ. गीता कुमारी के अंदर 8, डॉ. हरि उरांव के अंदर 8 और डॉ. राम किशन भगत के अंदर 8 छात्र पीएचडी कर रहे हैं.विनोबा भावे विवि में केवल सर्टिफिकेट कोर्स
विनोबा भावे विश्वविद्यालय में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा में केवल सर्टिफिकेट कोर्स ही करवाया जाता है. जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा का कोई विशेष डिपार्टमेंट नहीं है. कोल्हान विश्वविद्यालय में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई होती है, लेकिन वहां एक भी स्थाई शिक्षक नहीं हैं. इस विश्वविद्यालय में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा का कोई विभाग नहीं है. बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय में कुरमाली में दो छात्र पीएचडी कर रहे हैं. बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा स्नातकोत्तर शुरू करने की प्रक्रिया की जा रही है. इसे भी पढ़ें –रांची">https://lagatar.in/ranchi-order-for-action-in-the-case-of-theft-of-41-quintal-rice-from-kadru-warehouse/">रांची: कडरू गोदाम से 41 क्विंटल चावल चोरी मामले में कार्रवाई का आदेश [wpse_comments_template]
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