3 अगस्त को दलादली में श्रद्धांजलि सभा का होगा आयोजन
Ranchi: सीपीआई (एम) की झारखंड राज्य कमिटी की ओर से प्रेस वार्ता कर सुभाष मुंडा की हत्या को राजनीतिक साजिश बताया. प्रेस वार्ता को संबोधित करेंगे हुए पार्टी के राज्य सचिव प्रकाश विप्लव ने कहा कि इस हत्याकांड के खिलाफ सीपीएम सहित अन्य वामदलों, सामाजिक संगठनों, जनसंगठनों व सिविल सोसायटी द्वारा राज्यव्यापी विरोध कार्रवाई का सिलसिला जारी है. इसी कड़ी में आगामी 3 अगस्त को दलादली चौक पर एक विशाल श्रद्धांजलि सभा होगी. जिसे वामदलों के राज्य नेतृत्व के अलावा सीपीएम की पोलिट ब्यूरो सदस्य बृंदा कारात भी संबोधित करेंगी. प्रकाश विप्लव ने कहा कि इस घटना के बाद मुख्यमंत्री सचिवालय से संपर्क करने की लगातार कोशिश की गई ताकि पार्टी का एक शिष्टमंडल मुख्यमंत्री से मिल सके, लेकिन मुख्यमंत्री सचिवालय इतना नाकारा है की दर्जनों बार संपर्क किए जाने के बावजूद कोई जवाब नहीं मिला.
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राजनीतिक साजिश छिपाने के लिए प्रचारित किया जा रहा जमीन कारोबारी
पोलित ब्यूरो सदस्य व पूर्व सांसद डॉ. रामचंद्र डोम ने इस निर्मम हत्याकांड की हर पहलू से जांच किया जाये. दोषियों को एक समय सीमा में सजा दिलाए जाने की मांग की. उन्होंने कहा सुभाष मुंडा केवल जमीन कारोबारी रहते तो उनकी हत्या पर इतना जनाक्रोश नहीं होता और उनकी शव यात्रा में पूरे इलाके से हजारों लोग शामिल नहीं होते. सुभाष मुंडा को लेकर जो बातें प्रचारित की जा रही है कि वे जमीन के कारोबारी थे पूरी तरह तथ्यहीन है. यह राजनीति साजिश को छिपने के लिए प्रचारित किया जा रहा है. सुभाष मुंडा आदिवासियों की हड़पी हुई जमीन को वापस दिलाने,जमीन माफिया द्वारा अवैध तरीके से जमीन की लूट के खिलाफ हमेशा मुखर रहते थे. इस लूट के खिलाफ गरीबों- आदिवासियों के पक्ष में मजबूती से खड़े भी रहते थे.
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सुभाष मुंडा कम्युनिस्ट आंदोलन की तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते थेः रामचंद्र डोम
सुभाष मुंडा दलादली इलाके में कम्युनिस्ट आंदोलन की तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते थे. उनके दादा शुक्रा मुंडा जो एक भूतपूर्व सैनिक थे और युद्ध में उन्होंने अपना एक पैर गंवाया था. सेना से रिटायर होने के बाद वे कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ गए थे. इस इलाके में आदिवासियों और दूसरे गरीबों के शोषण के खिलाफ हमेशा संघर्ष करते रहते थे. उन्हीं से प्रेरणा लेकर रांची के पंचपरगना क्षेत्र में गरीबों और आदिवासियों की भूमि हड़पने वाले महाजनों के खिलाफ 70 और 80 के दशक में एतिहासिक संघर्ष चला था. झारखंड बनने ठीक तीन महीने पहले दलादली का चाय बागान जो कि आदिवासियों की जमीन थी.आजादी के बाद अंग्रेजों ने इस जमीन को अवैध तरीके से स्थानीय भू स्वामियों के हवाले कर दिया था. इसे बचाने की लड़ाई शुक्रा मुंडा के नेतृत्व में लड़ी गई थी.