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झारखंड में जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं का जनक है रांची विश्वविद्यालय

Ranchi: झारखंड में जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई की शुरुआत करने वाला पहला विवि रांची यूनिवर्सिटी है. एकेडमिक पढ़ाई से पहले जनजातीय और क्षेत्रीय भाषा केवल सामान्य बोल-चाल की भाषा हुआ करती थी. पांच जनजातीय और चार क्षेत्रीय भाषाओं की एकेडमिक पढ़ाई नहीं होने के कारण पूर्ण रुप से शैक्षणिक कार्य से बाधित थी. इसे भी पढ़ें-किरीबुरु:">https://lagatar.in/kiriburu-contribution-will-be-allowed-only-after-corona-negative-report-to-sail-employees-on-arrival-from-leave/">किरीबुरु:

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जनजातीय भाषा कैसे हुई पढ़ाई में शामिल

1976 में गोस्नर कॉलेज की प्रोफेसर डॉ. लिर्मल मिंज ने कुडुख और नागपुरी भाषा की पढ़ाई की शुरुआत की. इन से प्रभावित होकर डॉं. प्रफुल कुमार राय,जगत मणि महतो, लाल रणविजय नाथ शहदेव, डॉं एके झा रांची विवि के तत्कालीन कुलपति सुरेश कुमार सिंह के समक्ष प्रस्ताव रखा. संज्ञान लेते हुए 1980 में जनजातीय भाषाओं की पढ़ाई की शुरुआत कर दी गई. पद्मश्री डॉ रामदयाल मुण्डा को यूएसए से वापस बुलाकर रांची विवि में जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं की विकास की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई. इस तरह यहां पहली बार जनजातीय भाषाओं की पढ़ाई एकेडमी में शामिल की गई. इसे भी पढ़ें-पीएम">https://lagatar.in/asha-lakra-told-congresss-well-thought-out-conspiracy-to-lapse-in-pms-security/">पीएम

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