चैंबर के सुंदरीकरण पर खर्चे जा रहे 70 लाख स्टूडेंट्स की बिल्डिंग निजी एजेंसी को सौंप दी, उठ रहे सवाल स्टूडेंट्स की कुर्बानी, एजेंसी पर मेहरबानी...आखिर क्यों? Amit Singh Ranchi : रांची विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अजीत कुमार सिन्हा छात्रों का भविष्य गढ़ने के बजाये निजी एजेंसियों का भविष्य बेहतर करने में लगे हैं. इसके कई उदाहरण हैं, जिससे पता चलता है कि कुलपति एजेंसियों को आर्थिक लाभ पहुंचाने के लिए काम कर रहे हैं. विवि मुख्यालय में कुलपति चैंबर और कांफ्रेंस हॉल के सुंदरीकरण का काम चल रहा है. सुंदरीकरण के नाम पर विवि प्रशासन द्वारा तकरीबन 70 लाख रुपये खर्च किए जा रहे हैं. जिम्मेवार बताते हैं कि जितने में एक सुंदर भवन का निर्माण हो जाएगा, उतना खर्च सुंदरीकरण पर करना उचित नहीं है. यह राशि छात्रों के लिए सुविधा बहाल करने पर भी खर्च की जा सकती थी. विवि प्रशासन द्वारा कई ऐसे काम कराये जा रहे हैं, जिसकी जांच हो जाए, तो कई लोग वित्तीय अनियमितता के दायरे में आ जाएंगे.
200 स्टूडेंट्स के लिए बनी बिल्डिंग पर निजी एजेंसी का कब्जा
रांची विवि के मोरहाबादी कैंपस में 200 स्टूडेंट्स के लिए बनी बिल्डिंग पर निजी एजेंसी ने कब्जा कर लिया है. यह वही एजेंसी है, जिसका नाम भारतीय राष्ट्रीय उपभोक्ता सहकारी संघ मर्यादित है. इसके कंसलटेंट सीबीआई जांच में दोषी ठहराए गए धीरज कुमार हैं. एजेंसी ने बिना राज्य सरकार या नगर निगम से एनओसी लिए ही उसके भवन पर कब्जा कर लिया है, जबकि भवन का निर्माण सामुदायिक शौचालय (200 लोगों के लिए) सह कौशल विकास केंद्र रांची के रूप में हुआ है. रांची नगर निगम द्वारा भवन बनवाने पर तकरीबन ढाई करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं. भवन का उद्घाटन 29 नवंबर 2017 को तत्कालीन महापौर आशा लकड़ा ने किया था. इसका निर्माण कैंपस में आने वाले स्टूडेंट्स को सुविधा मुहैया कराने के उद्देश्य से हुआ था. भवन के निचले तल पर शौचालय, तीन दुकानें और ऊपरी तल पर चार कमरे बनाए गए हैं. वर्तमान में उन कमरों में रांची विवि में परीक्षा आयोजित कराने वाली एजेंसी ने अपना कार्यालय खोल रखा है. एजेंसी को यह भवन रांची विवि के कुलपति डॉ. अजीत कुमार सिन्हा ने वर्कऑडर के साथ दिया है. वीसी ने एक एजेंसी को भवन सौंप दिया. भवन में तीन दुकाने बनाई गई हैं. इनमें स्टेशनरी आदि से संबंधित दुकानें खुलनी थीं, मगर ऐसा नहीं हुआ. एजेंसी के साथ हुआ समझौता मान्य नहीं
स्टूडेंट्स की मार्कशीट में छेड़छाड़ करने वाला धीरज कुमार भारतीय राष्ट्रीय उपभोक्ता सहकारी संघ मर्यादित का कंसलटेंट है. एजेंसी को विवि में काम दिलाने में धीरज की अहम भूमिका बताई जा रही है. एजेंसी ने विवि प्रशासन के साथ समझौता किया है. यह समझौता भी जांच का विषय है. नियमत: विवि प्रशासन की ओर से किसी भी समझौते पर रजिस्ट्रार ही हस्ताक्षर कर सकते हैं. विवि परिनियम के अनुसार, किसी भी समझौते के लिए कुलसचिव को अधिकृत किया गया है. मगर एजेंसी के साथ हुए समझौते पर रांची विवि की ओर से तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक राजकुमार शर्मा ने हस्ताक्षर किया है. ऐसे ही एक समझौते को कुलपति बनने के बाद डॉ. अजीत कुमार सिन्हा ने अपने हस्ताक्षर से समाप्त कर दिया था. भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी द्वारा एक समझौता किया गया था. उस पर रांची विवि की तत्कालीन कुलपति प्रो. कामिनी कुमार ने हस्ताक्षर किया था. लेकिन समझौते को कुलपति बनते ही डॉ. अजीत कुमार सिन्हा ने खारिज कर दिया. ऐसे में एजेंसी के साथ समझौता कैसे मान्य हो सकता है? कदाचार के दोषी की नियुक्ति पर चुप्पी
भारतीय राष्ट्रीय उपभोक्ता सहकारी संघ मर्यादित रांची के ब्रांच मैनेजर प्रिंस कुमार ने बताया कि बिल्डिंग रांची विवि प्रशासन द्वारा दी गयी है. विवि के साथ एग्रीमेंट हुआ, उसी के तहत विवि प्रशासन को स्थान मुहैया कराना था. यह भवन स्टूडेंट्स की सुविधा के लिए बना है, इस विषय में कुछ नहीं बता सकता. आप रांची विवि के परीक्षा नियंत्रक से बात कर लीजिए. जब उनसे पूछा गया कि एजेंसी के कंसलटेंट धीरज कुमार को सीबीआई ने कदाचार के मामले में दोषी पाया है, ऐसे में वह एजेंसी में कैसे नियुक्त हुए? इस पर प्रिंस ने चुप्पी साध ली. विवि प्रशासन ने गलत किया है : आशा लकड़ा
पूर्व मेयर आशा लकड़ा ने कहा कि स्टूडेंट्स की सुविधा के लिए जिस भवन का निर्माण हुआ है, उसे विश्वविद्यालय प्रशासन किसी भी एजेंसी को कार्यालय चलाने के लिए कैसे दे सकता है. भवन का निर्माण नगर निगम ने तकरीबन ढाई करोड़ की लागत से कराया था. भवन में स्टूडेंट्स के कौशल विकास से संबंधित योजना की बात विवि प्रशासन ने बतायी थी. अभी पता चला कि उस पर किसी निजी एजेंसी ने कब्जा कर लिया है. मैं अभी दिल्ली में हूं, रांची लौटने के बाद इस विषय पर कुलपति से बात करूंगी. यह भी जानकारी ली जाएगी कि एजेंसी को भवन सौंपने से पहले विवि प्रशासन ने नगर निगम से एनओसी ली या नहीं. यह बेहद गंभीर मामला है.
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