Ranchi : नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा की सिक्किम शाखा के द्वारा 8 और 9 अगस्त को राँची के आड्रे हाउस में महाकवि भास लिखित प्रसिद्ध नाटक उरूभंगम का मंचन किया जाएगा. खास बात ये है कि इस नाटक को सरायकेला छउ की शैली में प्रस्तुत किया जाएगा. इसके लिए एनएसडी के 20 छात्रों ने एक महीने सरायकेला में रहकर पद्मश्री शशधर आचार्य से सरायकेला छउ का प्रशिक्षण भी लिया. इसके निर्देशक सौति चक्रवर्ती हैं जो एनएसडी के रंगमंडल के निर्देशक भी रह चुके हैं. उन्होंने कहा कि उरूभंगम एक ऐतिहासिक नाटक है जिसकी पृष्ठभूमि युद्ध है. इसके लिए सरायकेला छउ की शैली सबसे उपयुक्त लगी. इस नाटक का नायक दुर्योधन है जिसे आम तौर पर खलनायक के तौर पर देखा जाता है लेकिन महाकवि भास ने इसमें दुर्योधन को सुयोधन के रूप में दिखाने का प्रयास किया है.
इसे भी पढ़ें-जगदीप धनखड़ होंगे देश के नये उपराष्ट्रपति, विपक्ष की मार्गरेट अल्वा को हराया
“सरायकेला छउ के पारंपरिक रूप का प्रयोग”
इसके कोरियोग्राफर पद्मश्री शशधर आचार्य हैं जिन्होने देश ही नहीं पूरी दुनिया में सरायकेला छउ का डंका बजाया है. उनका कहना है कि भास के नाटकों में प्रयोग करने की पूरी गुंजाइश है और इसमें भी सरायकेला के छउ के पारंपरिक रूप को बरकरार रखते हुए कई प्रयोग किए हैं जिसमें नांदी पाठ और भरत वाक्य जो कि पारंपरिक नाटक के आरंभ और अंत में होता है, उसके जगह में सरायकेला छउ की परंपरा को लिया गया है. नाटक में संगीत झारखंड के जाने माने कलाकार नाथू महतो ने दिया है. एनएसडी सिक्किम के केंद्र निदेशक विपिन कुमार ने बताया कि सिक्किम शाखा के एक साल के कोर्स में एक महीने के लिए देश के किसी भी हिस्से के परंपरागत कला का प्रशिक्षण दिया जाता है और ये उसी की कड़ी है.
इसे भी पढ़ें-चाईबासा : कृत्रिम अंग प्रत्यारोपण शिविर में कुल 95 लोगों का हुआ निबंधन
आर्यभट्ट सभागार नहीं मिलने से निदेशक आहत
विपिन कुमार मूल रुप से झारखंड के चंद्रपुरा के ही हैं और झारखंड में रंगमंच के विकास के लिए हमेशा प्रयासरत रहते हैं लेकिन इस बार इन्हें बहुत कड़वे अनुभव का सामना करना पड़ा, जब राँची के आर्यभट्ट सभागार का आरक्षण रद्द हो गया जो कि जून में ही कराया गया था. विपिन कुमार बताते हैं कि जब वे आर्यभट्ट सभागार देखने गए तो उन्हें बताया गया कि उनका आरक्षण रद्द कर दिया गया है और नाटकों के लिए सभागार नहीं दिया जाएगा. इसके बाद जब वे राँची विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ अजित कुमार सिन्हा के पास गए जिसमें उनके साथ प्रसिद्ध रंगकर्मी और राँची विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर अजय मलकानी भी थे तो कुलपति महोदय ने उन्हें बैठने तक नहीं कहा, उनकी एक ना सुनी और सभागार देने से साफ मना कर दिया. विपिन कुमार जो खुद राँची विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं, इससे काफी आहत हैं और कहते हैं कि आखिर ऐसे में रंगमंच का विकास कैसे होगा. आखिरी समय में मंचन स्थल को आर्यभट्ट के बजाए आड्रे हाउस किया गया.
इसे भी पढ़ें-रांची: सावन महोत्सव में कविता बनीं सावन क्वीन, गीत-संगीत पर थिरकीं महिलाएं