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Mumbai : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस )ने कभी हिंसा को स्वीकार नहीं किया है. यह बात आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने कही. श्री भागवत ने कहा कि संघ के नेता हमेशा हिंसा का विरोध करते रहे हैं. मोहन भागवत संघ के दिवंगत नेता लक्ष्मणराव ईनामदार(महाराष्ट्र के सतारा निवासी) की जीवनी के मराठी अनुवाद के विमोचन अवसर पर बोल रहे थे. यह जीवनी कई सालों पहले गुजराती में राजाभाई नेने और उस समय संघ के कार्यकर्ता रहे नरेंद्र मोदी ने लिखी थी. नेशनल खबरों के लिए यहां क्लिक करें
लक्ष्मणराव ईनामदार स्वतंत्रता सेनानी और संघ के पूर्व प्रमुख थे
लक्ष्मणराव ईनामदार स्वतंत्रता सेनानी और संघ के पूर्व प्रमुख थे. वे 1973 से 1994 तक संघ प्रमुख रहे थे. वे 1927 में आरएसएस के संस्थापक केशव बलिराम हेगड़ेवार के नेतृत्व में संघ में आये थे. उनका निधन नवंबर 1994 में हुआ था. आरएसएस चीफ ने कहा कि हिंदुओं को संगठित करने का मतलब मुसलमानों और ईसाइयों का विरोध नहीं है. हालांकि कहा कि कभी-कभी किसी क्रिया की प्रतिक्रिया होती है. जैसे को तैसा वाली प्रतिक्रिया होती है, लेकिन सही अर्थों में हिंदुत्व के मूल्य शांति और सहिष्णुता हैं.
भागवत ने आपातकाल के दौरान बड़ौदा डायनामाइट केस का जिक्र किया
अपनी बात रखने हुए मोहन भागवत ने आपातकाल के दौरान बहुचर्चित बड़ौदा डायनामाइट केस का जिक्र किया. कहा कि वे उस समय करीब 25 साल के थे. इस मामले में समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस की गिरफ्तारी हुई थी.बड़ौदा डायनामाइट मामला सामने आने पर हम युवाओं को लगने लगा कि हम भी कुछ साहसी काम कर सकते हैं. श्री भागवत का कहना था कि युवाओं को संघर्ष और साहस करना अच्छा लगता है. लेकिन उस समय लक्ष्मणराव ईनामदार ने हमें मना किया. कहा कि यह आरएसएस की शिक्षा नहीं है.
नरेंद्र मोदी के जीवन पर ईनामदार का प्रभाव पड़ा
मोहन भागवत के अनुसार ईनामदार ने उनसे कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान का पूरी तरह से अपमान किया है. यह ब्रिटिश राज नहीं है. उन्होंने कहाकि आरएसएस हिंसा को स्वीकार नहीं करता. आरएसएस के जो मूलभूत विचार हैं, वो सकारात्मक है. हम यहां किसी का विरोध करने के लिए नहीं हैं. भागवत ने कहा कि ईनामदार का प्रधानमंत्री मोदी के जीवन पर बड़ा प्रभाव था.
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