Arjun Mandal
Dhanbad : धनबाद में नई दिल्ली नामक एक कॉलोनी के लोग पानी के लिए दशकों से गुहार लगा रहे हैं. आजादी के सात और झारखंड अलग राज्य गठन के दो दशक बाद भी यहां के निवासियों के लिए न तो शुद्ध पेयजल की व्यवस्था है, न स्वास्थ्य की सुविधा. धनबाद के कोयला से बनी बिजली देश के प्रमुख शहरों को रोशनी मुहैया करा रही है. परंतु इस कॉलोनी के लोगों को मुक्कमल बिजली भी नसीब नहीं है. धनबाद शहर के एक छोर पर धनसार के वार्ड नंबर 33 में यह कॉलोनी खुद को उपेक्षित व असहाय महसूस कर रही है. वर्तमान सांसद के आवास से मात्र एक किलोमीटर दूर बसी है नई दिल्ली कॉलोनी. देश की राजधानी नई दिल्ली के नाम से मशहूर इस कॉलोनी के लोग नारकीय जीवन व्यतीत करने को विवश हैं.
कॉलोनी है वैध, निवासी अवैध
कॉलोनी में 600 से अधिक परिवार के लगभग पांच हज़ार लोग निवास करते हैं. इनमें 200 परिवार बीसीसीएल कर्मचारियों के है. 400 ऐसे परिवार हैं, जो दिहाड़ी मजदूर हैं और जिन्होंने कॉलोनी में अवैध रूप से अपना घर बना लिया है. बीसीसीएल ने लगभग 70 साल पहले अपने कर्मचारियों के लिए कॉलोनी का निर्माण कराया था. जो बीसीसीएल कर्मचारी रहते थे, रिटायर होने के बाद धीरे-धीरे अपने घर चले गए. कर्मचारी रिटायर होते गए और क्वार्टर खाली होता गया. वर्तमान हालत ऐसी है कि कॉलोनी में 75 फीसदी लोग अवैध रूप से रह रहे हैं. हालांकि ज्यादातर लोग बीसीसीएल के सेवानिवृत्त कर्मचारियों के परिवार या उनके रिश्तेदार हैं. कुछ वैसे लोग भी हैं, जिनके पास रोजी-रोटी का कोई खास साधन नहीं था. वे धनबाद पहुंचे और यहां मजदूरी करने लगे. क्वार्टर खाली होने पर कब्जा जमा लिया अथवा उसकी बगल में खाली जमीन पर शीट का कमरा बनाकर रहने लगे.
ज्यादातर हैं दिहाड़ी मजदूर
रहने का ठिकाना तो मिल गया, मगर रोजमर्रा की जिंदगी में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. कॉलोनी में मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है. गुजर-बसर के लिए कोई ठोस साधन भी उपलब्ध नहीं है. ज्यादातर लोग दिहाड़ी मजदूर हैं. उनके बच्चे वर्षों से रोजगार के अभाव में कोयला चुनकर पेट पालने को मजबूर हैं. बडे-बुजुर्ग और बच्चे बंद कोयला खदान, परियोजना, साइडिंग और डिपो से कोयला चुनते हैं और उसे बेचकर जीवन यापन करते हैं. पूछने पर कहते है कि इस उम्मीद के साथ जी रहे हैं कि कभी न कभी तो विकास की किरण उनके कॉलोनी तक जरूर पहुंचेगी.
खरीदकर पीते हैं पानी
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शुभम संदेश की टीम ने इस कॉलोनी के लोगों से बातचीत की तो दर्द उनकी जुबां पर छलक आया. इस भीषण गर्मी में पानी और बिजली के बिना जीवन गुजारना कितना कठिन है, इसकी कल्पना से ही सिहरन होने लगती है. परंतु नई दिल्ली कॉलोनी के लोग इस समस्या से जूझ रहे हैं. पीने के लिए पानी भी उन्हें एक- दो किलोमीटर की दूरी तय कर लाना पड़ता है. कुछ लोग दो सौ रुपये में एक ड्रम खरीद कर शुद्ध पेयजल पीते हैं.
बंद खदान का पानी पीने लायक नहीं
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कॉलोनी निवासी अमित पासवान ने कहा कि यहां करीब छह सौ परिवार रहते हैं. पानी की समस्या बहुत ज्यादा है. न तो बीसीसीएल और न ही नगर निगम पानी मुहैया कराता है. बगल में बंद खदान है, जिससे पानी सप्लाई की जाती है. लेकिन वह पानी पीने के लायक नहीं है.
60 साल से निवास, अब भी सुविधा की आस
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स्थानीय वालकेश्वर पासवान ने बताया कि वे लोग यहां लगभग 60 साल से रह रहे हैं. पहले बीसीसीएल के कर्मचारी रहते थे. रिटायर होने के बाद वे लोग अपने घर चले गए. कुछ वैसे लोग भी हैं, जिनके पास रोजी-रोटी का कोई साधन नहीं था. क्वार्टर खाली हुई तो उसमें रहने लगे. कुछ लोगों ने बगल में खाली जमीन पर शीट का कमरा बना लिया व रहने लगे.
गरीब व लाचार लोगों ने क्वार्टर पर जमाया कब्जा
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लखन पासवान कहते हैं कि यहां बीसीसीएल कर्मचारियों को बसाया गया था. लेकिन जब बगल में खनन होने लगा तो यहां कर्मचारियों को क्वार्टर देना बंद कर दिया. जो क्वार्टर बन गए थे, उसमें गरीब एवं लाचार मजदूरों ने कब्जा जमाया और रहने लगे.
बीसीसीएल हो या नगर निगम, कोई नहीं सुनता
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युवा बेरोजगार मंच के अध्यक्ष गुड्डू सिंह ने कहा कि कई बार बीसीसीएल और नगर निगम के पास समस्या रखी. लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है. रोजगार यहां की मुख्य समस्या है. यहां के लोग कोयला चुन कर गुजर-बसर के लिए विवश हैं.
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