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सोशल मीडिया पर इस्तीफे का ड्रामा, आधी हकीकत आधा फसाना

  • गौशाला न्यास समिति के पदाधिकारियों के अजब-गजब खेल
  • समाज के सोशल मीडिया प्लेटफार्म में बरपा है हंगामा
  • अब दोनों पक्ष के लोग कर रहे आरोप-प्रत्यारोप
Rajan Bobby Ranchi : गौशाला न्यास समिति के पदाधिकारियों का सोशल मीडिया में इस्तीफा देना आधी हकीकत आधा फसाना जैसा है. न्यास समिति के माननीयों ने वाट्सऐप ग्रुप में लिखित इस्तीफा तो भेज दिया, लेकिन पद का मोह नहीं छोड़ पाए. यानि इस्तीफे के बाद भी अबतक पद पर बने हुए हैं. गौशाला न्यास के लेटर पैड पर धड़ल्ले से लिखित फरमान भी जारी कर रहे हैं, जबकि कार्यकारिणी का कार्यकाल नवंबर 2023 में ही समाप्त हो चुका है. न्यास समिति के सदस्य बताते हैं कि जब कोई महत्वपूर्ण मामले में फैसला लेने की बारी आती है, तो खुद को पद विहीन बताते हैं, लेकिन जब खुद का कोई मतलब सधता नजर आता है , तो पद के अनुरूप नोटिस जारी करने से लेकर सभा में मंच साझा करने के लिए बेताब रहते हैं. पदाधिकारियों का यह दोहरा रवैया उनके अजब-गजब खेल को दर्शाता है.

सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर तीन फरवरी को ही दे दिया था इस्तीफा

गौशाला न्यास समिति के पदाधिकारियों ने तीन फरवरी को ही सोशल मीडिया पर इस्तीफा दे दिया था, लेकिन यह मात्र दिखावा भर था. सदस्य बताते हैं कि लोगों की सहानुभूति बटोरने के लिए ऐसा किया गया था. एक बुजुर्ग सदस्य बताते हैं कि ऐसा करना उनकी मजबूरी थी, क्योंकि 110 लोगों की सदस्यता का मामला उनके गले में हड्डी की तरह अटका है. पदाधिकारी जानते हैं कि इस मामले का समाधान जब तक नहीं निकलता, तबतक चुनाव कराना संभव नहीं है. ऐसे में इनका इस्तीफा मात्र नाटक है, जबकि हकीकत यह है कि इनकी मंशा येन-केन प्रकारेण पद पर बने रहने की है.

हंगामे के डर से मान्या पैलेस में चुनाव कराने की थी तैयारी

गौशाला न्यास समिति का चुनाव हर दफा हरमू रोड स्थित गौशाला परिसर में ही कराया जाता है, लेकिन हो- हंगामे के डर से पदाधिकारियों ने चुनाव का स्थान बदल दिया. मान्या पैलेस, मोरहाबादी में 28 फरवरी को चुनाव कराने की घोषणा कर दी गयी थी, लेकिन 110 सदस्यों को मान्यता न दिए जाने का मामला तूल पकड़ा, मामला गौ सेवा आयोग तक पहुंचा, तो चुनाव स्थगित करना पड़ा. न्यास के एक और सदस्य नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि ट्रस्टी और पदाधिकारियों को यह बात अच्छी तरह से पता है कि बैगर सदस्यता का मामला निबटाये चुनाव नहीं कराया जा सकता है. इस कारण सोशल मीडिया के माध्यम से इस्तीफा का नाटक भर रचा है और पद पर बने हुए हैं. साफ मन से यदि सार्थक पहल करनी ही थी, तो आमसभा में ही सारे फैसले आसानी से लिए जा सकते थे, लेकिन ऐसा न कर मामले को लटकाये रखना उनकी तानाशाही मंशा को उजागर करता है.

सचिव ने इस्तीफा दिया, फिर नोटिस भी जारी किया

गौशाला न्यास समिति के सचिव प्रदीप राजगढ़िया ने इस्तीफा देने के बाद भी नोटिस जारी कर कार्यकारिणी की बैठक बुलायी. आम सभा को लेकर भी पत्र जारी किया. सदस्यों का कहना है कि जब इस्तीफा पूरे मन से दे ही दिया था, तो फिर उसी मनोभाव से संयुक्त सचिव के हस्ताक्षर से नोटिस भेजना चाहिए था, जबकि ऐसा नहीं किया गया. क्या यही है उनके इस्तीफा के ड्रामे की सच्चाई?

आमसभा की अध्यक्षता करने पर उठ रहे सवाल

मान्या पैलेस, मोरहाबादी में 28 फरवरी को हुई आम सभा की अध्यक्षता अध्यक्ष पुनीत कुमार पोद्दार कर रहे थे. अब आम सदस्य इस पर सवाल उठा रहे हैं. आखिर किस हैसियत से उन्होंने सभा की अध्यक्षता की. मौजूद मेंबरों के सवालों पर उतावला भी हुए. बात संभाली नहीं जाती, तो नोंक-झोंक से शुरू हुआ मामला आगे बढ़ जाता. सदस्य बताते हैं कि नियमानुसार अध्यक्ष के इस्तीफा देने के बाद उपाध्यक्ष के कंधे पर ही सारी जिम्मेवारी होती है.ऐसे में उपाध्यक्ष प्रेम अग्रवाल को सभा की अध्यक्षता करनी चाहिए थी.

आमसभा में मंच साझा करने में भी आगे-आगे रहे

मान्या पैलेस में हुई आम सभा में ट्रस्टी चेयरमैन और उपाध्यक्ष रतन जालान, अध्यक्ष पुनीत कुमार पोद्दार, सचिव प्रदीप राजगढ़िया और उपाध्यक्ष प्रेम अग्रवाल ने मंच साझा किया था. सदस्य बताते हैं कि प्रेम अग्रवाल ने तो इस्तीफा नहीं दिया था, इस कारण उन्हें अध्यक्षता का मौका दिया जाना चाहिए था, लेकिन पद के मद में पुनीत ने यह मौका भी हाथ से जाने न दिया. इससे लगता है कि उनकी कथनी और करनी पर पूरी तरह से भरोसा करना बेमानी है.

कार्यकाल खत्म होने के बाद नहीं रह जाता पद : प्रेम अग्रवाल

गौशाला न्यास समिति के उपाध्यक्ष प्रेम अग्रवाल ने कहा कि कार्यकारिणी का कार्यकाल समाप्त होने के बाद कोई पद नहीं रह जाता. ऐसे में इस्तीफा दें या न दें क्या फर्क पड़ता है. उन्होंने कहा कि चुनाव होगा, तो नयी कार्यकारिणी का गठन होगा. जब तक चुनाव नहीं हो जाता, तब तक अध्यक्ष और सचिव ही गौशाला के दिन प्रतिदिन का काम देखते हैं. पद विहीन होने के बाद हम लोगों को न तो कुछ पूछने का अधिकार है और न ही कुछ करने का दायित्व है. ट्रस्टी और न्यास मंडल के सदस्य ही सारे फैसले लेते हैं. इसे भी पढ़ें : गढ़वा">https://lagatar.in/garhwa-notorious-naxalite-tunesh-oraon-arrested-from-chhattisgarh-5-others-also-arrested/">गढ़वा

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