- AIG के पद से रिटायर्ड प्रवीण कुमार को कारा निरीक्षणालय मे OSD के पद पर काम कर रहे हैं.
- रिटायरमेंट के बाद कमलजीत सिंह आवास बोर्ड में कार्यालय अधीक्षक के पद पर काम कर रहे हैं.
Ranchi : गलत रिपोर्ट देकर उम्रकैद की सजा पाये मुजरिम को समय से पहले रिहा कराने के आरोप में फंसे अफसर रिटायरमेंट के बाद महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हैं. इन अफसरों में प्रवीण कुमार और कमलजीत सिंह का नाम शामिल है. AIG के पद से रिटायर्ड प्रवीण कुमार को कारा निरीक्षणालय मे OSD के पद पर नियुक्त किया गया था. उनका कार्यकाल समाप्त हो गया है. लेकिन वह अनाधिकृत रूप से कार्यालय का काम कर रहे हैं. ऐसी स्थिति में उन्हें दी जाने वाली सुविधाओं का स्रोत क्या है. यह जांच का विषय है.

प्रवीण कुमार की फाईल फोटो
रिटायरमेंट के बाद कमलजीत सिंह झारखंड आवास बोर्ड में कार्यालय अधीक्षक के पद पर काम कर रहे हैं. लोकायुक्त ने इन दोनों अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया था. कमलजीत ने इसके खिलाफ अपील की थी. कोर्ट ने लोकायुक्त के आदेश पर रोक लगा दी है. इसके एक साल बाद भी यह मामला सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं हुआ है.

कमलजीत सिंह की फाईल फोटो
जानकारी के मुताबिक जेल के इन दोनों अधिकारियों पर सजा पुनरीक्षण बोर्ड में गलत रिपोर्ट पेश कर उम्र कैद की सजा पाये पवन तिवारी को समय से पहले जेल से रिहा कराने का आरोप है. वर्ष 2000 में बद्री नारायण प्रसाद की हत्या के आरोपी पवन तिवारी को सत्र न्यायालय ने उम्र कैद की सजा सुनायी थी. सत्र न्यायालय द्वारा वर्ष 2003 में दी गयी उम्र कैद की सजा को हाईकोर्ट ने बहाल रखा था.
जेल में रहने के दौरान इस अपराधी पर अपनी पत्नी का फर्जी डेथ सर्टिफिकेट बना कर अंतरिम जमानत लेने का भी आरोप था. कमलजीत सिंह और प्रवीण कुमार द्वारा सजा पुनरीक्षण बोर्ड को सौंपी गयी रिपोर्ट पर बोर्ड ने पवन तिवारी को समय से पहले रिहा करने का फैसला किया. इस फैसले के आलोक में जून 2017 में पवन तिवारी को जेल से रिहा कर दिया गया.
सजा पुनरीक्षण बोर्ड को रिपोर्ट देते समय कमलजीत सिंह प्रोबेशन ऑफिसर और प्रवीण कुमार जेल अधीक्षक के पद पर पदस्थापित थे. उम्रक़ैद की सजा पाये मुजरिमों को समय से पहले रिहा करने के लिए प्रोबेशन ऑफिसर और जेल अधीक्षक के मंतव्य के साथ सजा पुनरीक्षण बोर्ड को रिपोर्ट भेजी जाती है. इसमें संबंधित न्यायालय और जिले के पुलिस अधीक्षक का मंतव्य भी शामिल होता है. लेकिन पवन के मामले में तथ्यों को छिपाते हुए सजा पुनरीक्षण बोर्ड को रिपोर्ट भेजी गयी थी.
उल्लेखनीय है कि गलत रिपोर्ट के सहारे पवन तिवारी को रिहा कराने के मामले की शिकायत लोकायुक्त के यहां की गयी थी. लोकायुक्त ने मामले की जांच के बाद इस मामले में इन दोनों अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया. साथ ही एक महीने के अंदर कार्रवाई कर उन्हें सूचित करने का निर्देश दिया. लोकायुक्त जस्टिस डीएन उपाध्याय के इस आदेश को कमलजीत सिंह ने हाईकोर्ट में चुनौती दी.
दूसरी तरफ राज्य सकार ने भी एक याचिका दायर कर लोकायुक्त के आदेश को चुनौती दी. हाईकोर्ट ने दोनों याचिकाओं को एक साथ जोड़ कर सुनवाई का फैसला किया. इसके बाद दोनों याचिकाएं न्यायाधीश आनंदा सेन की पीठ में सूचीबद्ध की गईं. आनंदा सेन की कोर्ट ने 4/1/2024 को अपना प्रारंभिक आदेश पारित किया.
आनंदा सेन की अदालत ने लोकायुक्त के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार द्वारा याचिका दायर करने पर आश्चर्य व्यक्त किया. उन्होंने अपने फैसले में कहा कि लोकायुक्त के आदेश से कमलजीत सिंह तो पीड़ित है. लेकिन न्यायालय को यह समझ में नहीं आ रहा है कि लोकायुक्त के आदेश के राज्य सरकार कैसे पीड़ित है.
अदालत ने अपने फैसले में यह भी लिखा कि जब राज्य ने पहले की लोकायुक्त के आदेश को चुनौती दे दी है तो ऐसा नहीं लगता है कि राज्य की ओर से न्यायालय को स्वतंत्र और उचित सहायता मिलेगा. इसलिए जस्टिस आनंदा सेन ने मामले में अधिवक्ता कौशिक सरखेल को Amicus Curiae नियुक्त कर दिया. साथ ही सरकार को यह निर्दश दिया कि वह Amicus Curiae को आवश्यकतानुसार दस्तावेज उलब्ध कराये.
इसके बाद यह मामला न्यायाधीश राजेश शंकर की अदालत में गया. कमलजीत सिंह ने IA दायर किया. इसमें लोकायुक्त के आदेश पर कार्रवाई रोकने का अनुरोध किया गया था. न्यायाधीश राजेश शंकर ने कमलजीत की याचिका खारिज कर दी. इससे संबंधित आदेश 18/6/2024 को पारित किया.
कमलजीत सिंह द्वारा दायर IA रद्द होने के बाद यह मामला न्यायाधीश राजेश कुमार की पीठ में सूचीबद्ध हुआ. उन्होंने 21/8/2024 को याचिका के निष्पादन तक लोकायुक्त द्वारा दिये गये कार्रवाई के आदेश पर रोक लगा दी. इस आदेश के एक साल बाद से यह मामला सुनवाई के लिेए सूचीबद्ध नहीं हुआ है.


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