Dr. Sangeeta Nath
‘आजादी का अमृत महोत्सव’ अर्थात राष्ट्रभक्तों का सम्मान, राष्ट्रभक्ति भावनाओं का सम्मान. उन सभी गुमनाम और मूर्धन्य नामधन्य स्वतंत्रता सेनानियों, वीर क्रांतिकारियों का सम्मान, उनके बलिदान का सम्मान, जिनके कारण घर घर तिरंगा का सौभाग्य आज हमें मिल पाया है. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह धरती राम कृष्ण गौतम नानक के साथ साथ पद्मिनी, पन्ना धाय, रानी लक्ष्मीबाई और न जाने कितनी ही ऐसी वीरांगनाओं की भी जिन्होंने हंसते-हंसते भारत मां की बलिवेदी पर खुद को बलिदान कर दिया. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सन 1857 की क्रान्ति को कौन भूल सकता है.रानी लक्ष्मीबाई के साथ झलकारी बाई और अनगिनत महिलाओं ने सैन्य प्रशिक्षण के पश्चात इस स्वतंत्रता के महायज्ञ में अपनी आहुति देने कूद पड़ी थीं. शायद ही किसी को यह ज्ञात हो कि इसी संग्राम में एक अबोध किशोरी ने भी अपनी आहुति दी थी, जिसका नाम मैना था और वो नानासाहब की पुत्री थी. जब नाना साहब अंग्रेजों की पकड़ से दूर निकल गए तो गलती से एक दिन खेलती हुई मैना उनके हाथ लग गई. अंग्रेज उसे पकड़ कर कानपुर ले गये. नाना साहब का पता ठिकाना जानने के लिए उसे घोर यातनाएं दी गई. पर उस अबोध को कहां कुछ पता था. अंग्रेजों ने प्रतिशोध की ज्वाला में कानपुर के किले में आग लगा दी और मैना को नृशंसतापूर्वक उस आग में फेंक दिया.
स्वाधीनता संग्राम में बंगाल की भूमिका अग्रणी रही है. यहां की बाधाओं ने, मातृशक्तियों ने स्वेच्छापूर्वक अपनी धरती की आन के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर दिया. कुमारी प्रीतिलता वाद्देदार, जो एक विद्यालय की प्रधानाचार्या थीं. वो चटगांव की थीं और वहीं के क्रांतिकारी नेता सूर्यसेन के निर्देश पर उन्होंने चटगांव में बने यूरोपियन क्लब पर आक्रमण के अभियान का नेतृत्व किया, जिसमें बारह क्रांतिकारी साथी साथ गए थे. गोरों की पार्टी चल रही थी. सब शराब पी कर नाच गाने में मस्त थे. प्रीति ने बम फेंका जिसमें एक गोरा मारा गया. अंग्रेजों की तरफ से धड़ -पकड़ होने लगी. गोलियां चलने लगीं. प्रीति ने सभी साथियों को सुरक्षित निकाल दिया, पर खुद घायल हो गईं, अंग्रेजों के हाथों अपमानित होने से बचने क लिए वह सायनाइड की गोली खा कर शहीद हो गईँ. चटगांव की ही क्रांतिकारी वीरांगना कल्पना दत्त थी, जो मुठभेड़ में आखिरी गोली शेष होने तक अंग्रेजों पर गोलियां झोंकती रहीं और गुर्राती रहीं. चटगांव के ही गवर्नमेंट संस्कृत कालेज स्कूल के प्रधानाध्यापक की दो बेटियाँ थीं वीणा दास व कल्याणी दास. दोनों ने मातृभूमि के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. 1932 में 6 फरवरी को कलकत्ता विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में गवर्नर जैक्सन पर अंधाधुंध गोलियां चला दीं. जैक्सन तो बच गया, पर वीणा दास को 10 वर्ष का कारावास मिला.
1931 24 सितंबर को जब अंग्रेज मजिस्ट्रेट सीजीबी स्टिवेन्स क्रांतिकारियों के डर से छिप कर बैठा था तभी दो युवतियां उससे मिलने पहुंची. संतरी ने गेट पर बच्चियां समझ कर उन्हें नहीं रोका, उनके हाथ में एक प्रार्थना पत्र था जिसके दावारा वह तैराकी प्रतियोगिता में भाग लेने की अनुमति चाहती थीं. पर वह तो मजिस्ट्रेट की मौत का परवाना था. कागज की ओट से रिवॉल्वर निकाल कर मजिस्ट्रेट के उपर गोली चला दी. मजिस्ट्रेट वहीं ढेर हो गया. दोनो ने भागने की कोशिश नहीं की, पकड़ी गईँ . उनके नाम थे सुनिती चौधरी और शांति बाला घोष. उनकी उम्र 16वर्ष से कम थी अतः उन्हें फांसी की जगह आजीवन कालेपानी की सजा हुई. क्रांतिकारी अमूल्य मुखर्जी की बहन थी पारुल उमारूप निहार मुखर्जी जो लगातार क्रांतिकारियों के साथ मिलकर कार्य करती रहीं. सन 1936 ई में 20 जनवरी को टीटागढ़ में पकड़ ली गयीं. उन्हें पांच वर्ष की सजा हुई. 1930 में कलकत्ते की 18 वर्षीया शोभारानी दत्त क्रांतिकारी केश में गिरफ्तार होनै वाली शायद पहली महिला थीं. पुलिस ने उन्हें दो बम केशों में 31 अगस्त 1930 में हिजरा रोड पर पकड़ा था. इसी वर्ष 8 सितम्बर को बनारस में दुर्गा कुंड के समीप बम विस्फोट हुआ, जो पुलिस चौकी को उड़ाने के लिए फेंका गया था. इसमें तीन महिला क्रांतिकारी मृणालिनी दास और उनकी बेटियां मायारानी सेन एवं योगमाया दास बंदी बनायी गयीं. बम बनाने के सामान के साथ एक संदूक भी उनके घर से मिला , जो राधारानी नाम की महिला का था.राधारानी काशी विश्वविद्यालय की छात्रा थीं,और काशी के ही क्रांतिकारी मणीन्द्र बनर्जी की बहन थी . इस केश में मृणालिनी दासी को 14 वर्ष का कठिन कारावास मिला.
कलकत्ता में क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए धन की आवश्यकता अंग्रेजी संपत्ति पर डाके डाल कर पूरी की जाती थी. विमल प्रतिभा देवी बंदी बनायी गयीं. ये कलकत्ता की प्रख्यात कांग्रेस कार्यकर्ता की पत्नी थीं, इस केश में कई क्रांतिकारी पकड़े गये. पुटु दी,जिनका पूरा नाम था सुहासिनी गांगुली. इनका अपराध यह था कि ये अंग्रेजों से छिपने वाले कैदियों को आश्रय देती थीं उनकी हर संभव मदद करतीं थीं. एक दिन अंग्रेजों ने इनके घर पर छापा मारा. खूब गोलियां चली, अनेक क्रांतिकारी मारे गये.पुटु दी बंदी बना ली गईं. दो वर्षों की सजा हुई, पर अंग्रेजों ने इन्हें कई वर्षों तक जेल में रक्खा.इनके अतिरिक्त बंगाल की प्रतिभा भद्र, इन्द्रसुधा घोष, आशा दास गुप्त, अरुणा सान्याल, सुरमा दास, अनिता सेन,रेणुका सेन,लीलावती नाग,कल्याणी देवी को अनेक वर्षों का कारादंड दिया गया .कल्याणी देवी के पिस पिस्तौल पकड़ी गयी थी.
क्रांतिकारी वीरांगनाओं की बात चले और दुर्गा भाभी एवं सुशीला दीदी को कोई कैसे भूल सकता है, जिनका भारत माता के लिए त्याग और समर्पण अप्रतिम है. पंजाब, दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में क्रांतिकारी दल में रहकर इन दोनों मातृशक्तियों ने खूब काम किया. जेल की सजा काटी, अनेक वर्षों तक भूमिगत रहीं. सुशीला दीदी आजाद, भगत सिंह आदि सभी क्रांतिकारियों की दीदी थीं और दुर्गा देवी वोहरा भाभी. भगतसिंह को उनकी पत्नी बनकर दुर्गा भाभी ने ही लाहौर से कलकत्ता पहुंचाया था. असम की 14 वर्षीया कनकलता बरुआ,12 वर्षीया फुलेश्वरी, योगिश्वरी, रत्नमाला, इन सभी ने तिरंगे की रक्षा में अपनी जान दे दी. अनगिनत नाम हैं घरेलू महिला हों या छात्राएँ . बनारस में सन 1942 हिंदू विश्वविद्यालय की छात्राएं स्नेहलता के नेतृत्व में आगे आयीं. आजाद हिंद फौज की लक्ष्मी सहगल और भारती चौधरी का योगदान अविस्मरणीय है. ननी बाला देवी, सरस्वती देवी, फूलो-झानो, नीरा आर्य, तारा रानी श्रीवास्तव, रानी लक्ष्मी बाई, सावित्रीबाई फुले, बेगम हजरत महल, मैडम भीकाजी कामा, कस्तूरबा गांधी, एनी बेसेंट, सरोजनी नायडू, अरुणा आसफ अली, विजय लक्ष्मी पंडित आदि अनगिनत ऐसे नाम हैं, जिन्होंने तन मन धन से भारत के स्वाधीनता संग्राम में अपने आपको न्योछावर कर दिया . धन्य हैं क्रांतिकारी ये मातृशक्तियां, जो रणचंडी बन कर अंग्रेजों से लोहा लेती रहीं. यातनाएं झेलीं, प्राणों की बाजी लगा दी, पर अंग्रेज आततायियों के समक्ष हार नहीँ मानीं. भारत मां की इन सभी वीरांगनाओं को कोटि-कोटि नमन.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.
Leave a Reply