Ranchi: रिम्स में मरीजों को जन औषधि के जरिये सस्ती दवा मिलने पर ग्रहण लग सकता है. टेंडर फाइनल होने के बाद भी अबतक बिंध्या मेडिको को संचालन का जिम्मा नहीं दिया जा सका है. वहीं संचालन का जिम्मा मिलने से पहले ही टेंडर में भाग लेने वाली दूसरी पार्टी जीपी इंटरप्राइजेज टेंडर प्रक्रिया में वेंडर के चयन में गड़बड़ी को लेकर अदालत पहुंच गई है. जीपी इंटरप्राइजेज का कहना है कि दूसरे बिडर से बाद में कागज मांगा गया था जो गलत है. हलांकि रिम्स में टेंडर के नोडल पदाधिकारी डॉ राकेश रंजन ने बताया कि सपोर्टिंग कागजात की मांग की जा सकती है. साथ ही उन्होंने कहा कि कोर्ट में जीपी इंटरप्राइजेज के जाने से इसके संचालन में किसी तरह का कोई व्यवधान नहीं होगा. जल्द से जल्द जन औषधि केंद्र का संचालन शुरु कर दिया जाएगा. हालांकि बिंध्या मेडिको का कहना है कि अब तक रूम तक अलॉट नहीं किया गया है.
अब तक नहीं हो सका है त्रिस्तरीय एमओयू
रिम्स में प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र के संचालन के लिए त्रिस्तरीय एमओयू होना है. रिम्स के जरिये टेंडर के माध्यम से वेंडर का चयन होने के बाद भी अब तक त्रिस्तरीय एमओयू नहीं हो सका है. एमओयू रांची डीसी, बीपीपीआई और वेंडर के बीच एमओयू होना है. रांची डीसी ने सिविल सर्जन को अधीकृत किया है. नियमों के अनुसार जब तक यह एमओयू नहीं होगा रिम्स परिसर में जन औषधि केंद्र का संचालन नहीं शुरू हो सकेगा.
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जन औषधि केंद्र के लिए संचालक ने मांगी जगह
बिंध्या मेडिको के संचालक ने बताया कि हमने अलग से एक रूम के लिए रिम्स प्रबंधन को आवेदन दिया है. फिलहाल जितना स्पेस दिया जा रहा है उतने में ही संचालन करेंगे. शुक्रवार को एमओयू के लिए सदर अस्पताल बुलाया गया है. अगर एमओयू हो जाता है तो हम जल्द इसे शुरू कर देंगे. वहीं रूम एलॉट करने को लेकर डॉ राकेश रंजन ने कहा कि जिस रूम में दवाई दोस्त का संचालन हो रहा था उसपर केस हुआ है. इसलिए वह जगह प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र को एलॉट नहीं किया जा सकता है.
जन औषधि केंद्र सही से संचालित नहीं होने से मरीजों के खरीदनी पड़ रही महंगी दवाई
रिम्स में आने वाले अधिकतर मरीज आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं. इसलिए रिम्स में मरीजों को सस्ती दवाई उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र संचालित किया जाना है, वर्तमान में रिम्स अपने स्तर से इसका संचालन कर रही है तो मरीजों को सभी दवाईयां उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं. वेंडर के संचालन करते ही एक हजार से अधिक तरह की जेनरिक दवाईयां मरीजों को सस्ती दरों पर मिल जाएंगी. पर, ऐसा नहीं होने से मरीजों को महंगी दवाईयां खरीदनी पड़ रही हैं.
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