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महर्षि विश्वामित्र ने इस पीठ का नाम तारा रखा था
बताया जाता है कि जहां-जहां सती के शरीर का खंड गिरा उसे शक्तिपीठ माना गया. सासाराम का ताराचंडी मंदिर भी उन्हीं शक्तिपीठों में से एक है. मंदिर की प्राचीनता के बारे में कोई लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं है. लेकिन मंदिर के शिलालेख से स्पष्ट होता है कि 11वीं सदी में भी यह देश के विख्यात शक्ति स्थलों में से एक था. कहा जाता है कि महर्षि विश्वामित्र ने इस पीठ का नाम तारा रखा था. यहीं पर परशुराम ने सहस्त्रबाहु को पराजित कर मां तारा की उपासना की थी. इस शक्तिपीठ में मां ताराचंडी बालिका के रूप में प्रकट हुई थीं और यहीं पर चंड का वध कर चंडी कहलाई थीं. नवरात्र में लगभग दो लाख श्रद्धालु मां का दर्शन करने पहुंचते हैं. आज भी भक्त अपनी मनोकामना लेकर मंदिर पहुंचते हैं और पूजा करते हैं. इसे भी पढ़ें- बिहारः">https://lagatar.in/bihar-10-friends-went-to-bathe-in-old-gandak-six-drowned-search-continues/">बिहारःबूढ़ी गंडक में नहाने गए थे 10 दोस्त, छह डूबे, खोजबीन जारी [wpse_comments_template]
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