Ranchi: रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय भाषा विभाग में शिक्षकों की गंभीर कमी बनी हुई है. कुडुख विभाग के अध्यक्ष डॉ. हरि उरांव 31 मार्च 2024 को सेवानिवृत्त हो चुके हैं. उनके सेवानिवृत्त होने के बाद से विभाग समन्वयक (कोऑर्डिनेटर) का पद खाली पड़ा है और अब तक इस पद के लिए कोई योग्य शिक्षक नहीं मिल पाया है.इस स्थिति के कारण जनजातीय भाषा विभागों के बीच समन्वय स्थापित करने में कठिनाई हो रही है. विभाग के अंतर्गत चार क्षेत्रीय भाषाएं - पंचपरगनिया, कुरमाली, नागपुरी और खोरठा और पांच जनजातीय भाषाएं - मुंडारी, संथाली, कुडुख, हो और खड़िया पढ़ाई जाती हैं.हो और संथाली भाषा विभाग की जिम्मेदारी वर्तमान में प्रोफेसर प्रेम मुर्मू को सौंपी गई है, जो दोनों विभागों के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं. अन्य भाषाओं के अपने-अपने विभागाध्यक्ष तो हैं. लेकिन कोऑर्डिनेटर के अभाव में विभागीय गतिविधियों और समन्वय में बाधा उत्पन्न हो रही है.
नेट क्वालीफाई करने वाले छात्रों को नहीं मिलते गाइड
यह स्थिति खासकर उन विद्यार्थियों के लिए चिंता का विषय है, जो नेट (NET) क्वालीफाई करते हैं. उन्हें शोध कार्य के लिए मार्गदर्शक (गाइड) नहीं मिल पाता, जिसके कारण उन्हें भटकना पड़ता है और उनका अमूल्य समय व्यर्थ चला जाता है.
कुडुख विभाग में केवल एक शिक्षक, 80 विद्यार्थी
कुडुख भाषा विभाग की स्थिति अत्यंत दयनीय है. यहां केवल एक ही शिक्षक के भरोसे 80 विद्यार्थी और 15 शोधार्थी पढ़ाई कर रहे हैं. यह विभाग राज्य का एकमात्र केंद्र है, जहां जनजातीय भाषाओं की धर्म, संस्कृति और परंपराओं पर गंभीर शोध होता है, लेकिन शिक्षकों की नियुक्ति न होने से यह विभाग भी संकट की ओर बढ़ रहा है.राज्य में जनजातीय भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए रांची विश्वविद्यालय की भूमिका महत्वपूर्ण रही है. लेकिन वर्तमान हालात में ये भाषाएं धीरे-धीरे हाशिये पर जाती दिख रही हैं. यदि जल्द ही शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई, तो जनजातीय भाषाओं की शिक्षा और शोध दोनों ही गंभीर रूप से प्रभावित होंगे.