Dr. Ganga Prasad Jha
भारत में इंडीजीनस दिवस को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है. प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को इस दिन भारत के विभिन्न हिस्सों में आदिवासी या जनजाति संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन की बात की जाती है. विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से संरक्षण के साथ विकास के लिए भी चिंतन मनन किया जाता है. भारत में कुल जनसंख्या (2011) का आठ प्रतिशत जनजाति जनसंख्या है. इंडियन एंथ्रोपॉलजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के द्वारा प्रायोजित परियोजना, पीपुल्स ऑफ़ इंडिया के अनुसार भारत में कुल 4635 अंतर्विवाही समूह या जाति हैं, जिसमें अनुसूचित जनजाति भी शामिल है. हो सकता है किसी कारण बस या भूल से इसमें कुछ समूहों को शामिल न किया गया हो, लेकिन संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत भारत में 705 समूहों को अनुसूचित जनजाति के रूप में अनुसूची बद्ध किया गया है. इनके लिए संविधान में संरक्षण की बात कही गई है और इन्हें मुख्य धारा में जोड़ने का सतत प्रयास किया जाता रहा है. इन जनजातियों में कुल 75 ऐसी जनजातियां हैं, जो विशेष रूप से कमजोर या कहें वुलनरेबल हैं. इन्हें 2006 से पहले आदिम जनजाति कहा जाता था, जिसे बाद में पार्टिकुलर वुलनरेबल ट्राइब्स पीवीटीजी कहा जाने लगा. पूरे भारतवर्ष में सबसे ज्यादा उड़ीसा में है. झारखंड में निवास करने वाली 32 प्रकार की जनजातियों में से आठ पीवीटीजी हैं.
झारखंड की कुल जनसंख्या का 26% जनजाति जनसंख्या है, जिनकी अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान है . प्रकृति की गोद में बेसन वाली इन जनजातियों का जीवन बहुत ही सरल होता है. यही कारण है कि मानव वैज्ञानिक इन्हें सरल समाज कह कर संबोधित करते हैं. जनजातियों के बीच में ही कुछ ऐसी जनजातियां हैं, जो विकास से कोसों दूर अस्तित्व की रक्षा के लिए दिन-रात संघर्ष कर रही हैं. इनके बीच 25% से भी कम साक्षरता दर है. इनका जीवन आज भी कंदमूल संग्रह पर निर्भर है. जंगल पर आश्रित जनजातियों के बीच जन्म दर से अधिक मृत्यु दर रहने के कारण इनकी जनसंख्या स्थिर है. झारखंड में निवास करने वाली आठ पीवीटीजी मल पहाड़िया, सौरिया पहाड़िया, कोरबा, असुर, बिरजिया, परहिया, बिरहोर तथा सबर हैं. सबसे अधिक जनसंख्या मल पहाड़िया की है. झारखंड के पीवीटीजी में सबसे दयनीय स्थिति बिरहोर और सबर की है. यहां बिरहोर की जनसंख्या मात्र 10000 है. झारखंड में सबर की जनसंख्या मात्र 9688 है. यहां निवास करने वाली सबर महिलाओं की जनसंख्या 4824 है, जिनमें 3749 महिलाएं साक्षरता से दूर हैं.
झारखंड में कुल सबर जनसंख्या का 92% पूर्वी सिंहभूम और सरायकेला खरसावां में वास करते हैं. जंगल के अलावे इनका मुख्य पेशा भी मजदूरी है. इन्हें डाकिया योजना का लाभ अवश्य मिलता है, जिसके अंतर्गत मुफ्त में इन्हें चावल दिया जाता है, लेकिन प्रश्न यह है कि केवल चावल से इनका जीवन कैसे कटेगा? जंगल से पत्तल लाकर और जलावन के लिए सुखी लड़कियां चुनने के अलावे इनके पास और कोई रोजगार नहीं है. इनके बीच कुपोषण जनित बीमारियां विकराल रूप धारण की हुई है. जागरूकता की कमी के कारण इन्हें योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पाता. जीवन के लिए संघर्ष जारी है. गुणवत्तापूर्ण जीवन की बात तो इनकी समझ से भी परे है. इन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि राज्य और कल्याणकारी राज्य व्यवस्था क्या है? इन्हें अगर पता है तो बस इतना कि इनके पूर्वज जंगल से जीते थे और ये भी जंगल के आश्रय में ही जी रहे हैं. वहीं से फल -फूल मिलता है, पत्ते मिलते हैं, जिसका दोना बनाकर ये नजदीक के हाट -बाजार में बेचते हैं और जो कुछ नगद मिलता है, उसी से दवा और जीने के लिए अन्य आवश्यक चीजें खरीदनी पड़ती हैं. इन्हें यह भी नहीं मालूम कि आजादी के 78 वीं वर्षगांठ का मतलब क्या है? झारखंड में 24 वर्ष के अबुआ दिसुम अबुआ राज में पीढ़ी दर पीढ़ी जल जंगल जमीन की रक्षा करने वाली जनजातियों के लिए अबुआ दिशुम अबुआ राज में क्या-क्या हुआ.
सबर जनजाति के बीच भले ही गरीबी और कुपोषण जनित बीमारियां हों और उनके पास सुख-सुविधाओं के सामान न हों, लेकिन इनके पास जो है, वह जटिल समाज के पास नहीं है. इनके पास परंपरागत औषधि ज्ञान है. इनके बीच समाज में मिलजुल कर रहने की अद्भुत कला है. सामाजिकता और मानवता पर आधारित सबर समाज को, एक दूसरे को किस तरह से सहयोग दिया जाए, यह कला प्रकृति ने सिखायी है. जंगल से कंदमूल एकत्र करना हो या फिर से गृह निर्माण, सभी कुछ एक दूसरे के सहयोग पर निर्भर करता है. इनके बीच अकूत संपत्ति या फिर एक दूसरे को ठगने की प्रवृत्ति नहीं है. एक दूसरे को सम्मान देकर बराबरी के साथ समाज में कैसे रहा जाता है, कोई इनसे सीखे.
प्रकृति पूजक सबर जनजातियों के बीच बुजुर्गों और महिलाओं को विशेष सम्मान दिया जाता है. इस समाज को दहेज की जानकारी नहीं है और न ही वृद्धाश्रम की. किसी भी प्रकार के आपसी विवाद का हल समाज के परंपरागत प्रधान द्वारा सरल तरीके से कर लिया जाता है, जो सर्वमान्य होता है. इस कार्य हेतु बैठक बुलाने में समाज के गोराईत सहयोग देते हैं. अशिक्षा के कारण समाज में अंधविश्वास और स्वास्थ्य समस्याओं से निजात पाने के लिए जादू टोना पर विश्वास करने वाले लोगों की संख्या काफी अधिक है.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.
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