Ranchi: बालू आपूर्ति की व्यवस्था को सामान्य बनाने के लिए झारखंड चैंबर ऑफ कॉमर्स ने मुख्यमंत्री को पत्राचार कर हस्तक्षेप का अनुरोध किया. यह कहा कि बालू घाटों की नीलामी प्रक्रिया अब तक पूर्ण नहीं होने के कारण सामान्य से अधिक दरों पर बालू मिल रहे हैं. बालू की अनुपलब्धता और दरों में बेतहाशा वृद्धि से एक तरफ जहां संवेदक व डेवलपर्स के प्रोजेक्ट्स अधूरे रह जा रहे हैं, वहीं निर्माण कार्य में संलग्न श्रमिक बंधुओं की भी आजीविका प्रभावित हो रही है. पड़ोसी राज्य बिहार पर बालू की निर्भरता के कारण लोग बेतहाशा दरों पर बालू खरीदकर निर्माण कार्य कराने के लिए विवश हैं, जिस क्रम में इसकी कालाबाजारी भी चरम पर है तथा इसकी अतिशीघ्र समीक्षा आवश्यक है.
चैंबर अध्यक्ष परेश गट्टानी ने कहा कि एनजीटी की प्रभावी रोक हटने के बाद भी प्रदेश में बालू आपूर्ति की समस्या बने रहने का प्रमुख कारण बालू घाटों की नीलामी प्रक्रिया पूर्ण नहीं होना है. खान एवं भूतत्व विभाग द्वारा उपलब्ध कराये गये आंकडें भी चौंकाने वाले हैं. जहां यह स्पष्ट होता है कि इस मद में सरकार को प्राप्त होनेवाला राजस्व लगातार कम होता जा रहा है. वित्तीय वर्ष 2015-16 में राजस्व का संग्रह 32 करोड रुपया तथा अगले वित्तीय वर्ष 2016-17 में 8 करोड रुपया था.
परेश ने कहा कि शेष 7 वर्षों का राजस्व संग्रह इन वित्तीय वर्षों की तुलना में काफी कम है और यह निरंतर घटता ही जा रहा है. उन्होंने कहा कि वित्तीय वर्ष 2015-16 में बालू घाटों की नीलामी की गई थी, फिर वर्ष 2016-17 में भी कुछ घाटों की नीलामी की गई थी. वर्ष 2017 में बालू घाटों का अधिकार जेएसएमडीसी को हस्तांतरित कर दिया गया, जहां बालू की वैध रूप से बिक्री नगण्य है तथा इससे सरकार को भी राजस्व की हानि हो रही है.
समस्या का हो स्थाई समाधान
चैंबर द्वारा आग्रह किया गया कि निरंतर चली आ रही इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए विभाग को यथोचित निर्देश जारी करे ताकि राज्य में बालू आपूर्ति की व्यवस्था सामान्य हो. सरकार के राजस्व संग्रह में वृद्धि हो तथा उचित दर पर लोगों को बालू की उपलब्धता सुनिश्चित हो. राज्य में स्थिर सरकार के गठन से विकास कार्यों को गति मिलने की प्रबल संभावना बनी है. ऐसे में बालू की पर्याप्त और सुगम उपलब्धता से बिना किसी व्यवधान के विकास कार्यों को गति देने में सहायता मिलेगी. चैंबर द्वारा यह भी कहा गया कि यदि जेएसएमडीसी बालू की आपूर्ति करने के लिए सक्षम नहीं है. तब सरकार द्वारा कोई अन्य सरल और वैकल्पिक व्यवस्था पर भी विचार किया जाना चाहिए.
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