Lagatar Desk
Ranchi : प्रस्तावित सारंडा सेंक्चुरी को लेकर सरकार की दिक्कत बढ़ी हुई है. सुप्रीम कोर्ट की कानूनी कार्रवाई को टालने के लिए सरकार को मंत्रीमंडलीय समूह का गठन करना पड़ा. यह सब हुआ है कि वन विभाग के पूर्व पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ सत्यजीत सिंह की वजह से.
जानकारी के मुताबिक प्रस्तावित सारंडा सेंक्चुरी का मामला नहीं सुलझा तो सरकार को करीब 13 लाख करोड़ के नुकसान उठाना पड़ सकता है. आयरन ओर माइंस से जुड़े कारोबारी तबाह हो जायेंगे. खुदाई, लोडिंग व ढ़ुलाई से जुड़े हजारों लोगों का रोजगार खत्म हो जायेगा.
प्रस्तावित सारंडा सेंक्चुरी को लेकर पूर्व पीसीसीएफ (वाइल्ड) सवालों को घेरे में हैं. पूर्व पीसीसीएफ (वाइल्ड) ने प्रस्ताव में अधिक क्षेत्रफल को सेंक्चुरी में शामिल करने का प्रस्ताव दिया. साथ ही सुप्रीम कोर्ट में भी शपथ पत्र दाखिल कर दिया. शपथ पत्र दाखिल करने से पहले उन्होंने किसी तरह का मंतव्य सरकार से नहीं लिया. इस मामले में सरकार की नजर तब पड़ी जब सरयू राय ने विधानसभा में इसे लेकर मामला उठाया.
सुप्रीम कोर्ट ने जब प्रस्तावित सेंक्चुरी को लेकर कड़ाई की, तब वन सचिव ने 29 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र दाखिल कर दिया. उन्होंने वही शपथ पत्र दाखिल किया, जो पीसीसीएफ (वाइल्ड) ने अपने प्रस्ताव में भेजा था. यहीं से मामला सरकार के खिलाफ चला गया. क्योंकि पीसीसीएफ (वाइल्ड) ने जो प्रस्ताव भेजा था, उसमें 575 स्क्वायर किलोमीटर को सेंक्चुरी घोषित करने का उल्लेख है. जबकि ऐसा करने से सारंडा क्षेत्र की तमाम खनन परियोजनाएं बंद करनी पड़ेगी. दरअसल, प्रस्ताव देना था करीब 400 स्क्वायर किमी का.
राज्य सरकार को जब इस शपथ पत्र की जानकारी हुई तब मुख्य सचिव के स्तर से इस मामले की समीक्षा की गई. मुख्य सचिव ने प्रस्तावित सेंक्चुरी के क्षेत्रफल को संशोधित करने के लिए एक समिति का गठन किया. सुप्रीम कोर्ट ने इस कार्रवाई को टालमटोल की नीति मानते हुए 17 सितंबर को हुई सुनवाई के दौरान यह तक कह दिया कि अगर अधिसूचना जारी नहीं की जाती है, तो मुख्य सचिव को जेल जाना होगा. इस मामले की सुनवाई अब 8 अक्टूबर को है.
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