Ranchi : आदिवासी समाज के लिए जनगणना कॉलम में अलग सरना धर्म कोड बनाने की मांग अब तेज होने लगी है. सरना धर्म के लिए अलग कॉलम को लेकर अब झारखंड की राजनीतिक पार्टियां इस दिशा में राष्ट्रपति से कदम उठाने की मांग करने लगी हैं. इसी दिशा में गुरूवार को सूबे के जनजातीय कल्याण मंत्री चंपई सोरेन की अध्यक्षता में विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल रमेश बैस से मिलकर राष्ट्रपति के नाम उन्हें एक ज्ञापन सौंपा. प्रतिनिधिमंडल में जेएमएम से विधायक स्टीफन मरांडी, दीपक बिरूआ, विकास मुंडा, कांग्रेस से बंधु तिर्की, राजेश कच्छप, नमन विक्सल कोंगाड़ी, आजसू से लंबोदर महतो, आजसू के केंद्रीय प्रवक्ता देवशरण भगत के अलावा आरजेडी और वाम दल के नेता उपस्थित थे. वहीं, बीजेपी ने इससे दूरी बनायी थी. राज्यपाल से मुलाकात के बाद चंपई सोरेन ने कहा है कि आज आदिवासियों के भविष्य, उसकी भाषा-संस्कृति, सरना स्थल की सुरक्षा और पहचान के लिए जनगणना कॉलम में अलग सरना कोड की आवश्यकता है.
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चंपई सोरेन ने कहा, झारखंड के हर प्रमंडल का अपना इतिहास रहा है. यह इतिहास 200 साल पुराना है. जल-जंगल-जमीन का जो संघर्ष कई साल पहले शुरू हुआ, वह आजादी के बाद भी हुआ. अलग झारखंड राज्य बनने के अलावा अपनी पहचान के लिए कई तरह के संघर्ष हुए. खरसांवा गोलीकांड तो जालियावाला बाग कांड से भी बड़ा था. फिर भी आदिवासी अपनी आइडेंटिटी के लिए लड़ते रहे. आज आदिवासी समाज की संस्कृति केवल झारखंड में ही नहीं, बल्कि कई राज्यों के अलावा नेपाल और बांग्लादेश में भी है. अब जरूरत है कि जनजणना में अलग सरना कॉलम की. इसकी मांग को लेकर आज सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल से मिल राष्ट्रपति के नाम एक ज्ञापन सौंपा है.
कांग्रेसी विधायक बंधु तिर्की ने जनगणना में अलग सरना कॉलम आने से होने वाले कई फायदों की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि एक तो आदिवासियों की सही तरह से जनगणना हो पाएगी. साथ ही उनके विकास के लिए जो राशि केंद्र (ट्राइबल सबप्लान के तहत) देती है, उसका सही उपयोग हो पाएगा. उन्होंने कहा कि जब हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई की अपनी आइडेंटिटी है, तो वही आइडेंटिटी सरना आदिवासियों के लिए क्यों नहीं हो. जनगणना में अगर इनके लिए अलग कॉलम नहीं होगा, तो वे अपना धर्म कहां बताएंगे. ऐसा नहीं होने से लाखों आदिवासियों के साथ न्याय नहीं हो पाएगा.
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