New Delhi : सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने आज राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गये 14 संवैधानिक सवालों पर अहम फैसला सुना दिया.
CJI बीआर गवई के नेतृत्ववाली पीठ ने SC के पूर्व के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें राज्यपाल और राष्ट्रपति को राज्य के बिलों पर तीन माह के अंदर निर्णय लेने को बाध्य किया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल को निर्णय देने की समय-सीमा तय करने की मांग खारिज कर दी. CJI गवई ने कहा, अनुच्छेद 200 और 201 का हवाला देते हुए कहा अदालत या विधानमंडल किसी निश्चित टाइमलाइन को राज्यपाल या राष्ट्रपति पर थोप नहीं सकते.
पीठ ने माना कि संवैधानिक पदधारियों पर समय-निर्धारण लागू करना न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र से बाहर है. हालांकि स्पष्ट किया कि बेवजह देर किया जाना न्यायिक जांच के दायरे में आ सकता है
सुप्रीम कोर्ट कहना था कि लोकतांत्रिक देश भारत में राज्यपाल के लिए समयसीमा तय करना संविधान की भावना के खिलाफ है. पीठ के अनुसार राज्यपाल के पास अनुच्छेद 200 और 201 के तहत तीन संवैधानिक विकल्प हैं.
पहला बिल पर मुहर लगाना, दूसरा बिल को फिर से विचार के लिए विधानसभा को लौटाना और तीसरा उसे राष्ट्रपति के पास भेजना.
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि राज्यपाल बिलों को अनिश्चितकाल तक रोककर विधायी प्रक्रिया बाधित नहीं कर सकते. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया कि न्यायपालिका कानून बनाने की प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं कर सकती.
अपने फैसले मे CJI बीआर गवई के नेतृत्ववाली पीठ ने राज्यपाल के विवेकाधिकार की संवैधानिक सीमाओं को रेखांकित किया. कहा कि राज्य सरकार के बिलों को एकतरफा रोकना संघवाद का उल्लंघन होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने सलाह दी कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को टकराव या बाधा पैदा करने के बजाय संवाद और सहयोग की भावना अपनानी चाहिए
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