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SC ने कहा, हम काला धन और मनी लॉन्ड्रिंग रोकने के समर्थन में, पर एक्ट के दो नियमों पर विचार जरूरी, केंद्र सरकार को नोटिस भेजा

NewDelhi : खबर आयी है कि प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) पर दिये गये अपने पूर्व के फैसले का सुप्रीम कोर्ट रिव्यू करेगा. आज गुरुवार को रिव्यू पिटीशन की सुनवाई के क्रम में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम काला धन और मनी लॉन्ड्रिंग रोकने के समर्थन में हैं, लेकिन हमें लगता है कि कुछ मुद्दों पर फिर से विचार करने की जरूरत है. सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के दो नियमों को लेकर केंद्र सरकार को नोटिस भेजा. PMLA को लेकर CJI एनवी रमना, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने सुनवाई की. बता दें कि सुनवाई ओपन कोर्ट में हुई. मीडिया सहित आम लोगों को कोर्ट की कार्यवाही देखने के लिए आने दिया गया. इसे भी पढ़ें : एजेंसियों">https://lagatar.in/misuse-of-agencies-by-bjp-leaders-is-not-good-for-indian-democracy-cm-awas/">एजेंसियों

का भाजपा नेताओं द्वारा दुरुप्रयोग भारतीय लोकतंत्र के लिए सही नहीं – सीएम आवास

पूर्व में SC ने ED का गिरफ्तारी के अधिकार को बरकरार रखा था

SC ने 27 जुलाई को PMLA के विभिन्न प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली 241 याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए इस एक्ट के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ED) को मिले गिरफ्तारी का अधिकार बरकरार रखा था. कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग के तहत गिरफ्तारी मनमानी नहीं है. इसे लेकर सांसद कार्ति पी चिदंबरम ने कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दाखिल की थी, जिस पर आज सुनवाई हुई. इसे भी पढ़ें :  सुप्रीम">https://lagatar.in/supreme-court-issues-notice-to-gujarat-government-for-the-release-of-convicts-in-bilkis-bano-case/">सुप्रीम

कोर्ट ने बिलकिस बानो केस के दोषियों की रिहाई को लेकर गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया

तीन जजों की बेंच का था फैसला

27 जुलाई को जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने विजय मदनलाल चौधरी v/s यूनियन ऑफ इंडिया केस और 240 याचिकाओं पर फैसला सुनाया था.पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम, महाराष्‍ट्र सरकार के पूर्व मंत्री अनिल देशमुख, जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने याचिका दायर कर ED की गिरफ्तारी, जब्ती और जांच प्रक्रिया को चुनौती दी थी.

याचिका में कहा गया कि गिरफ्तारी, कुर्की, जब्ती का अधिकार गैर-संवैधानिक

याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि PMLA के तहत गिरफ्तारी, जमानत, संपत्ति की जब्ती या कुर्की करने का अधिकार क्रिमिनल प्रोसीजर एक्ट के दायरे से बाहर है.याचिकाओं में गुहार लगाई गयी थी कि PMLA के कई प्रावधान गैर संवैधानिक हैं, क्योंकि इनमें संज्ञेय अपराध की जांच और ट्रायल के बारे में पूरे प्रोसेस फॉलो नहीं किये जाते, इसलिए ED को जांच के समय CrPC का पालन करना चाहिए. इस मामले में सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी समेत अन्य वकीलों ने अपना पक्ष रखा.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के फैसले में ED का गिरफ्तारी करने, सीज करने, संपत्ति अटैच करने, रेड डालना और बयान लेने के अधिकार बरकरार रखे गये हैं. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार शिकायत ECIR को FIR के बराबर नहीं माना जा सकता है. यह ED का इंटरनल डॉक्यूमेंट है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ECIR रिपोर्ट आरोपी को देना जरूरी नहीं है. गिरफ्तारी के दौरान केवल कारण बता देना ही काफी है. PMLA में 2018-19 में हुए संशोधन क्या फाइनेंस एक्ट के तहत भी किये जा सकते हैं? इस सवाल पर 7 जजों की बेंच मनी बिल के मामले के तहत विचार करेगी. [wpse_comments_template]

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