डांट को `इरादतन अपमान` मानने से ऑफिस का अनुशासनपूर्ण माहौल होगा प्रभावित
दरअसल राष्ट्रीय मानसिक दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान के एक सहायक प्रोफेसर ने कार्यवाहक निदेशक पर अपमानित करने का आरोप लगाया था. शिकायतकर्ता का कहना था कि निदेशक ने उसे सार्वजनिक रूप से डांटा. इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि कार्यस्थल पर सीनियर्स की डांट-फटकार (अपशब्दों या बदतमीजी) को भारतीय दंड संहिता की धारा 504 के तहत अपराध या अपमान के रूप में नहीं देखा जा सकता. क्योंकि इसे अपराध के दायरे में लाने पर गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं. ऐसा करने से ऑफिस का अनुशासनपूर्ण माहौल प्रभावित हो सकता है. इसलिए इस तरह की फटकार को कार्यस्थल की अनुशासनात्मक प्रक्रिया का हिस्सा माना जाना चाहिए.
सीनियर का जूनियर से काम को निष्ठा के साथ करने की उम्मीद एक सामान्य अपेक्षा
जस्टिस संजय करोल और संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि आरोप केवल कयास हैं और कार्यस्थल पर प्रबंधन द्वारा दिये गये निर्देशों का पालन करना अपेक्षित है. कोर्ट ने कहा कि `यह एक सामान्य अपेक्षा है कि जो व्यक्ति कार्यस्थल पर प्रबंधन करता है, वह अपने जूनियर से अपने पेशेवर कर्तव्यों को पूरी निष्ठा और समर्पण से निभाने की उम्मीद करेगा. बता दें कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 504 में शांति भंग करने के इरादे से अपमान करने का प्रावधान है. इसमें दो साल तक की सजा हो सकती है. इसे जुलाई 2024 से भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 352 के तहत बदल दिया गया है.
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