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आत्मविश्वास और पॉजिटिव सोच ने बनाया स्वस्थ, पढ़ें कैसे दी कोरोना को मात

Ranchi: कोरोना ने कई परिवारों की खुशियां छीन ली. कई परिवारों का चिराग बुझ गया. घर की जिम्मेवारी जिस कंधे पर थी उसे ही कोरोना लील लिया. लेकिन इस महामारी को मात देकर कई लोग ऐसे भी हैं, जो सबको एक विश्वास दिला रहे हैं कि हिम्मत रखिये. ऐसे ही दो परिवार हैं, जिन्होंने अपनी हिम्मत और आत्मविश्वास से कोरोना को मात दी है. कोरोना पॉजिटिव होने से लेकर होम क्वारेंटाइन और आइसोलेशन जैसी विकट परिस्थितियों को भी पूरी हिम्मत से पार किया. आज दोनों परिवार स्वस्थ है.

खबरों को देखकर मन घबराया, लेकिन हिम्मत बनाये रखा

सबसे पहले बात करेंगे रांची के एक ऐसे दपंति की. जिन्होंने एक दूसरे का सहारा बनकर कोरोना को मात दी. इस दंपति की जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद इन्होंने खुद को होम आइसोलेशन में रख कर डॉक्टरों के निर्देश का पालन किया. समय पर दवा लेने और अन्य जरुरी चीजों के सेवन करने के बाद कोरोना से लगभग 15 दिनों तक लड़ाई लड़ी. और आखिरकार कोरोना को हराकर उम्मीद छोड़ते लोगों के लिए मिसाल बने.

पति-पत्नी ने होम आइसोलेशन में एक दूसरे का बखूबी ख्याल रखा और एक दूसरे को हिम्मत देते रहे. जब ये पति पत्नी होम कोरोंटाइन पीरियड में थे, तो अखबार समेत अन्य माध्यमों से इन्हें कोरोना की खबरें मिलती थीं. मरते लोगों की तस्वीर इन्हें कई बार विचलित भी करती थीं. लेकिन दोनों ने अपना मनोबल टूटने नहीं दिया. जिसका नतीजा है की आज इस दंपति ने कोरोना के खिलाफ इस लड़ाई में जीत हासिल की.

दोस्तों ने हमेशा बढ़ाया मनोबल

अब बात दूसरे परिवार की करते हैं. जिसकी खबर हमने पहले भी प्रकाशित की थी. ये परिवार है रांची सिविल कोर्ट के अधिवक्ता संजय विद्रोही का. जब ये पॉजिटिव हुए तो इनका मनोबल भी काफी हद तक टूट चुका था. अस्पताल में बेड और ऑक्सीजन के लिए चल रही जद्दोजहद के बीच संजय विद्रोही और उनके परिवार के सदस्यों ने होम कोरोंटाइन में ही अपना इलाज कराना बेहतर विकल्प समझा. और पॉजिटिव सोच के साथ आखिरकार इन्होंने भी कोरोना को मात देकर दोबारा जिंदगी हासिल की. संजय विद्रोही कहते हैं कि जब वो घर में रहकर कोरोना से जूझ रहे थे.

उस दौरान उनके शुभचिंतकों ने समय-समय पर उनका हाल चाल जाना और उनके मनोबल को बढ़ाया.जिससे उन्हें ऊर्जा मिली.अब वो पूरी तरह स्वस्थ हैं और एक बार फिर लोगों की मदद के लिए तैयार हैं. लेकिन इस बार इन्होंने अपने बुते लोगों की मदद करने का निर्णय लिया है क्योंकि लगभग 25 दिनों के होम कोरोंटाइन के दौरान इन्होंने जो महसूस किया. उसके बाद इन्हें लगता है कि मौजूदा परिस्थिति में पूरी व्यवस्था ध्वस्त हो गयी है.