Soumitra Roy
बुधवार को रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने ब्याज़ दरें बढ़ाकर आने वाले कल के हालात और बुरे होने के संकेत दिए हैं. वहीं, भारत सरकार ने देश की सबसे बड़ी कंपनी यानी LIC को बेचना शुरू कर दिया. सिर्फ आधी कीमत पर. 12 लाख करोड़ की देश की सबसे बड़ी कंपनी 6 लाख करोड़ में बाजार के हवाले है.
ये दोनों ही परिस्थितियां यह बताती हैं कि महंगाई को रोकना अब नरेंद्र मोदी सरकार के बस में नहीं. लिहाजा श्रीलंका जैसी स्थिति का सामना करने को तैयार रहें, जहां रोटी तो होगी, लेकिन सिर्फ़ सूखी. बाकी चीजें खरीदने की हैसियत 80 करोड़ लोगों की न रहे. दूसरी तरफ, जनता के 36 लाख करोड़ के निवेश वाली कंपनी LIC की बिकवाली का मतलब है कि अब नरेंद्र मोदी सरकार के पास ऐसा कुछ नहीं बचा, जिसे बेचकर वह किसी बड़ी सरकारी/निजी कंपनी/ बैंक को डूबने से बचा सके.
मतलब, मोदी सरकार ने आखिर में अपनी सबसे कीमती धरोहर (1956 से ज़िन्दगी के साथ और जिंद्दगी के बाद भी) बेच दी. वहीं LIC जिसका NPA 2014 में 3.3% था और आज 8.17% (35 हज़ार करोड़ से अधिक) है. नरेंद्र मोदी सरकार ने जनता के 36 लाख करोड़ निवेश का बेजा इस्तेमाल अपने पूंजीपति मित्रों- ILFS, एस्सार शीपिंग, भूषण इंडस्ट्रीज, वीडियोकॉन, यूनिटेक, ABG शिपयार्ड, जेट एयरवेज, एक्सिस बैंक आदि को लोन खाने में मदद के लिए किया.
यह सब LIC के 30 करोड़ निवेशकों के जमा किये हुए 36 लाख करोड़ में से 34 लाख करोड़ की रकम का इस्तेमाल गलत जगह करने का नतीजा है, जिसे अब सरकार वसूल नहीं पाएगी. यह पैसा हिंदुओं का भी है, मुसलमान और दलित का भी. बाभन पंडित का भी और मौलवी/ पादरी का भी. संघियों का भी, बजरंग दल वालों का भी.
RBI गवर्नर ने साफ़ कहा कि महंगाई आगे और बढ़ेगी. खाद्य पदार्थों और खाने के तेल का भाव आसमान छुएगा. 8 जून को मौद्रिक समिति फिर बैठक करके 25-50 बेसिस प्वाइंट में ब्याज़ दरें बढ़ा सकती है. RBI के आज के कदम से बैंकों में 80 हज़ार करोड़ रुपये की लिक्विडिटी चली गई. होम लोन पर सालाना 12-18 हज़ार का झटका लग गया. शक्तिकांत दास ने यह भी कहा कि सरकार की समावेशी नीति के बाद भी आगे ऐसे कई झटके लगेंगे.
कैसे गुज़ारा होगा? कब तक होगा?
क्या आप जानते हैं कि सेना से रिटायर्ड फौजियों को अप्रैल की पेंशन नहीं मिली? या फिर यह बात कि भारत दुनिया का दूसरे नंबर का देश है, जहां से विदेशी निवेशकों ने बीते 7 महीने में शेयर बाज़ार से 1.76 लाख करोड़ रुपये निकाल लिए हैं. यानी उन्हें बखूबी पता है कि इस साल के आखिर तक भारत की स्थिति श्रीलंका जैसी हो जाएगी.
क्या तब अपने मज़हबी उसूलों को नजरअंदाज कर श्रीलंकाई लोगों की तरह आप महंगाई के ख़िलाफ़ या बदलाव के लिए 80 करोड़ गरीबों के साथ सड़कों पर उतर पाएंगे? क्या आज सोशल मीडिया पर राहुल गांधी या ढोल पीटते मोदी की वीडियो पर मौज कर रहे संपन्न लोग देश के हालात से मुंह मोड़ सकेंगे, क्योंकि अगला नंबर उन्हीं का है. जरा सोचिए. फिर सोचिए. सोचते रहिये. और इसी सोच-विचार में आप खुद को श्रीलंका में पाएंगे.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.