Seraikela (Bhagya Sagar Singh) : दशकों से चली आ रही परंपरा के तहत दशहरा बीतने के साथ ही गांव-गांव में क्षेत्र के लेबर सप्लायर मजदूरों से संपर्क साधने में जुट गए हैं. ये लेबर सप्लायर पलायन करने वाले मजदूरों को अन्य जिलों एवं राज्य में मजदूरी दिलाने का माध्यम बनते हैं. गांव के श्रमिक वर्ग में इनका बहुत अधिक रुतबा होता है. इनके गांव में आते ही मजदूरों के साथ पीने-खाने का दौर शुरू हो जाता है. जाते-जाते खर्च के नाम पर ये मजदूरों को कुछ अग्रिम राशि भी दे जाते हैं, जिसकी कटौती बाद में उनके मजदूरी से की जाती है. इसके बाद निर्धारित तिथि को सप्लायर वाहन लेकर आते हैं व मजदूरों को नजदीकी रेलवे स्टेशन या बस पड़ाव लेकर चले जाते हैं.
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मकर त्योहार के दो-चार दिनों पूर्व होती है मजदूरों की घर वापसी
मजदूरों की घर वापसी मकर त्योहार के दो-चार दिनों पूर्व होती है. ऐसे में कुछ कमाई करके आते हैं तो कोई दुर्घटना या किसी बीमारी का शिकार होकर या प्रताड़ित होकर लौटते हैं. मजदूरों को एकत्रित कर ले जाने तक जो आत्मीयता इन्हें ले जाने वाले एजेंट रखते हैं, उन्हें ले जाने के बाद वो आत्मीयता समाप्त हो जाती है. अपना कमीशन लेकर वे अपने मोबाइल का सिम कार्ड ही बदल डालते हैं.
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स्थानीय प्रशासन पलायन करने वाले मजदूरों के बारे में रहते हैं अनजान
वहीं, बाहर रोजगार के लिए गए श्रमिकों पर अगर कोई दुर्घटना, बीमारी या संकट आती है तो वे संकट उन्हें स्वयं झेलने पड़ते हैं. विदित हो कि मजदूरों से संबंधित जानकारी कि वे कहां जा रहे हैं, क्या मजदूरी मिलेगी, रहने-खाने, बीमारी या दुर्घटना की स्थिति में उन्हें नियोक्ता से क्या सहयोग मिलेगा, इसकी खबर किसी को नही रहती है. यहां तक की ग्राम प्रधान, मुखिया एवं स्थानीय प्रशासन भी पलायन करने वाले मजदूरों के बारे में अनजान रहती है.
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